स्कूल - कालेज के दिनों में, कितने थेथर से होते थे न दोस्त ! साले, चेहरा देख कर व आवाज की लय सुनकर परेशानी भाँप जाते थे । एक पैसे की औकात नहीं होती थी, खुद की, पर फिर भी हर समय साथ खड़े रहते थे । और फिर फीलिंग ऐसी आती थी जैसे अंबानी/टाटा हो गया हूँ, पता नहीं किस किस से लड़ लेते थे। साले झूठ मूठ का पिटवा भी देते पर बाद में मलहम भी लगाने आ जाते, ऊपर से कमीने चाय भी पी जाते।
गाँव से 2 किलो मीटर दूर हाई स्कूल था, छोटा सा 4 कमरे का। छोटे से स्कूल में निक्कर पहने, बड़ी बड़ी कारस्तानी करते और वो थेथर दोस्त बड़े प्यार से अपना पीठ आगे कर देते......... काहे का फ्रेंडशिप बैंड, पजामे की डोरी से ही काम चल जाता था उन दिनों ☺️
पर उम्र के बढ़ते कदमों के साथ, ऐसी दूरी बन गई कि एक दूसरे के चिंता को भाँप कर भी अनदेखी करना तो दूर की बात है, ये तक नहीं पता कि इन दिनों कौन कहाँ क्या कर रहा, उसे भी कभी फिक्र है भी या नहीं। पर जिंदगी के रोडवेज़ पर ऐसे ही चल रहा सबकुछ, जो सहज सा लगता है अब......... है न यही सच !
वैसे भी दोस्तों से इतर, जिनको हम दुश्मन जैसा समझते हैं या जिनके लिए मन में जलन रखते हैं, सामान्यतः उनके पीछे भी उनके प्रति बदजुबानी दिखाते हैं।
पर कुछ से ट्यूनिंग पहले दिन से ऐसी होती है कि हर वक़्त बेवक्त उनके लिए स्नेह ही झड़ता है। ऐसे कुछ, जिन को हम बेहद अपना सा मानने लगते है, अपने बेहद करीबी परिधि में दिखने वाले ऐसे दोस्तों या ऐसे घरवालों के लिए सामान्यतः सामने से तो झिड़क देते हैं, लड़ लेते हैं या कोई ऊलजलूल सा सम्बोधन दे देते हैं या फिर अपने अनुसार ऑर्डर देने वाले जुबान में बात करते हैं पर अपने सभी कठिनाइयों के लिए भी पहले उन्हें ही ढूंढते हैं।
स्नेह जताने का ये अजब गजब तरीका सबसे अधिक मेरे में है। ऐसा ही घर वालों के साथ भी कर बैठते हैं। शायद कहीं इसको हक़ ज़माना भी कह सकते हैं | ऐसे दोस्त जैसे लोग कहीं भी हो सकते हैं, ऑफिस में, फेसबुक पर या घर वाले तो होते ही हैं |
हक जताने से याद आया, हमें खुद में बॉक्सर सी फीलिंग भी बहुत आती है और अपने बेहद करीबी यानी बेहद अपने से दोस्त पंचिंग बैग सी फीलिंग्स देते हैं । हम बेवकुफ, जब चाहे दे दमादम 😊, अपना सुनाने लगते हैं। शायद कहीं मेरे अंदर का शख्सियत धीरे धीरे उनपर अपना मालिकाना हक सा जताने लगता है। सही-गलत से इतर बात तब बस ये होती है कि उसको मेरी बात मान लेनी चाहिए | पर मानता कोई नहीं, ये भी पूर्णतया सच।
बहुतों बार, पंचिंग बैग भी रिटर्न किक बॉक्सर के चेहरे पर मार देता है। और चोट के परिमाण से इतर वो एकाएक लगने वाला किक बेहद घातक होता है। अंदर तक हिला देता है।
खैर, ऐवें हैप्पी फ्रेंडशिप डे कह कर खुद को खुश कर लेते हैं, कोई कैसा भी हो जाये, खुद को ख़ुश करने के लिए इतना तो सोच रखेंगे ही कि
मुझमे बेस्ट फ्रेंड मटेरियल भाव की अधिकता है
है न 😊😊😊
ब्लॉग बुलेटिन की दिनांक 19/08/2019 की बुलेटिन, "इनाम में घोड़ा लेंगे या सेव - ब्लॉग बुलेटिन “ , में आप की पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
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