कविता संग्रह "हमिंग बर्ड"

Monday, April 27, 2015

लघु प्रेम कथा - 6



दसवीं बोर्ड परीक्षा का था अंतिम दिन, यानि दोपहर बारह बजे के बाद फुल मस्ती टाइम !

लड़के को मिल गयी थी परमिशन, परीक्षा केंद्र के पास के ही सिनेमा हाल में "एक दूजे के लिए" देखने के लिए !

लड़की की माँ भी मान गयी - जा परीक्षा के बाद वही नजदीक वाले टाकिज में सहेलियों के साथ "गंगा मैया तोहरे पियरी चढ़ईबो" देख कर सीधे घर आना !

पर, ये बात दीगर थी, दोनो परीक्षा केंद्र से दूर वाले टाकिज में "लैला-मजनू" देखते पाए गये !
थोड़े डरे, सहमे ! हाथों में हाथ धरे !

अंतिम प्रश्नपत्र पर दोनों ने "लव यू" लिख कर एक दुसरे को दिया था !!
--------------------
बेहतरीन छात्र के रूप में रहने वाले लड़के को
 50 अंक वाले उस विषय में सिर्फ 7 नंबर मिले थे, औसत छात्रा रूपी लड़की ने 26 अंक प्राप्त किये थे !! :)

Friday, April 24, 2015

शारदा झा के शब्दों में हमिंग बर्ड ......... (समीक्षा)

हिन्द युग्म प्रकाशन की छत्रछाया में प्रकाशित मुकेश कुमार सिन्हा जी की कविता संग्रह 'हमिंग बर्ड' एक बहुत ही सराहनीय उपलब्धि है। यूँ तो लोग कविता से दूर ही भागते हैं ये समझ कर की 'कविता है, intellectuals के लिए होती है, हमें क्या समझ आएगी', लेकिन मुकेश जी की कोशिश और उनकी रचनाएँ इतनी सरल और सुगम हैं की उनमे कही गयी बात बड़ी ही आसानी के साथ पाठक के मन को छूती हैं।
उनके द्वारा कही गयी बातें हमारे रोज़मर्रा की ज़िन्दगी की दास्तान है।मध्यम वर्गीय परिवार के जीने की कोशिश, अपने सपनों को बचाकर उनमे उड़ान देने का जज़्बा, कर्मठ होकर अपने भाग्य को चुनौती देने की चेष्टा, कभी कभी थक हार कर घर लौट आना और फिर से एक नए कल के सपने सँजोना... ये सब कुछ बखूबी लिखा है।अपने आसपास के जीवन का भी बहुत ही व्यापक चित्रण किया है। क्यूँकर कविता का जन्म होता है कवि के मन में,किन परिस्थितियों में उसकी भावनाएं आवेग में आकर शब्दों का रूप धारण करती हैं, ये उनकी कविताओं को पढ़ कर बहुत ही आराम के समझ जा सकता है।
मुकेश जी ने क्लिष्टता का सहारा न लेकर अपने आसपास की चीज़ों का सहारा लेकर जिन बातों को समझाया है, वो सचमुच बधाई के पात्र है। उनके कहे अनुसार,"दोस्ती में buttering allowed नहीं है" इसलिए बिल्कुल सच्ची बात कहूँगी.. उनकी सभी कवितायें अच्छी लगी, लेकिन उनमे से भी जो मेरी पसंदीदा कविताओं में रही, वो हैं- हमिंग बर्ड, आवाज, लाइफ इन मेट्रो, कैनवस, बूढ़ा वीर, मेरे अंदर का बच्चा, मेरा शहर, जूते के लेस, डस्टबिन, सिमरिया पुल, सड़क पे बचपन।
और अंत में, जिस कविता ने जीवन जीने की इच्छा और जिजीविषा को सलाम किया, और हमिंग बर्ड को पूरा का पूरा sum up किया और मेरे personal choice के हिसाब से show stopper रहा.. वो है 'मनीप्लांट'।
"मनी प्लांट की लताएँ
हरी-भरी होकर बढ़ गयी थीं
उली पड़ रही थीं गमले के बाहर
तोड़ रही थीं सीमाएँ
शायद पौधा अपने सपनों में मस्त था
चमचमाए हरे रंग में लचक रहा था
ढूंढ रहा था उसका लचीला तना
आगे बढ़ने का कोई जुगाड़
मिल जाये कोई अवलंब तो ऊपर उठ जाए
या मिल जाए कोई दीवार तो उसपर छा जाए
पर तभी मैंने हाथ में कटर लेकर
छाँट दी उसकी तरुणाई
गिर पड़ी कुछ लंबी लताएँ
जमीन पर,निढाल होकर
ऐसे लगा मानो हरा रक्त बह रहा हो
कटी लताएँ, थीं थोड़ी उदास
परन्तु थीं तैयार, अस्तित्व विस्तार के लिए
अपने हिस्से की नयी ज़मीन पाने के लिए
जीवनी-शक्ति का हरा रंग वो ही था शायद
और गमले में शेष मनी प्लांट
था उद्धत अशेष होने के लिए
सही ही तो है, जिंदगी जीने की जिजीविषा
आखिर जीना इतना कठिन भी नहीं।"
-- हमिंग बर्ड


Monday, April 20, 2015

लघु प्रेम कथा - 5


फिजिक्स के क्लास में प्रोफ़ेसर का इन्तजार, अगली पंक्ति में एक थोडा खडूस, थोडा बेवकूफ व थोडा पढ़ाकू !!
बाहर, एक खुबसूरत-मोटी, थोड़ी बदतमीज!!
क्लास से आई हलकी सी आवाज, लड़की के कानो तक - आ भी जाओ, कोई कर रहा इन्तजार, पहले बेंच पर, बेसब्री से !
लग गयी उसके तनबदन में आग !!
क्लास के बाद, हो गया केमिकल रिएक्शन
क्रिया- प्रतिक्रिया !
बस चाहते - न चाहते निकल गया आंसू !!
बन गयी "बेचारी"!! बस क्या था !!
न्यूटन का तृतीय सिद्धांत एप्लाइड ! लड़के का चेहरा कुछ ने मिल कर कूट दिया !
------------------
अंतिम दृश्य - फूटे चेहरे के साथ लड़के ने देखा लड़की को ऐसे जैसे कह रहा हो - अब खुश न! हो गया तेरे लिए शहीद !
उफ़! कौन न मर जाए ! लड़की की नम आँख !!
(अगले दिन से कॉलेज में एक प्रेम जोड़ी बन गयी थी) :-)

Thursday, April 2, 2015

#लघुप्रेमकथा . 4


दो महीने पहले रेलवे टिकट लिया था उसने, होली पर अम्मा-बाबा-दोस्तों से जो मिलना था !
एस-7 के बर्थ न. 17 पर खिड़की के साथ लग कर आने वाले गाँव की होली के सतरंगी मस्ती को फील ही कर रहा था कि
झपाक से एक तीखी मीठी आवाज -
प्लीज मुझे भी बैठने दीजियेगा ! पटना जाना है, पर टिकट ही कन्फर्म नही हुई .....
उफ्फ्फ!! नजर है जो हटती नही !! बेचारा लड़का ।।
बैठिये न!!
एक पल में लड़की की नजरों की  तिर्यक रेखा से ऐसा घायल हुआ कि ज्यामिति के सारे नियमों को धता बता कर 180 डिग्री के कोण के साथ बिछते हुए जगह छोड़ चुका था !!
--------------------
रात में लड़की उस बर्थ पर सो रही थी और बेचारा लड़का उसके पांव के पास सकुचाते हुए बैठ कर रविश कुमार की "इश्क में शहर होना" पढ़ रहा था !!!!