कविता संग्रह "हमिंग बर्ड"

Tuesday, March 7, 2023

जटिल वैज्ञानिक शब्दावली की सहज सरल काव्यमय प्रस्तुति है, ...है न! - इन्दु सिंह

 



पुस्तक मेले के दौरान ही सुश्री इंदु सिंह ने न्यूज़ क्लिपिंग्स भेजी थी, आज शेयर कर रहा हूँ

😊
जब कोई मित्र आपके संग्रह पर इस तरह विस्तृत समीक्षा करके, प्रकाशित भी करवाये, तो खुशी की इस वजह को सहेजना बनता है न 😊
जटिल वैज्ञानिक शब्दावली की सहज सरल काव्यमय प्रस्तुति है, ...है न!
मुकेश कुमार सिन्हा ने अपनी अलग तरह की अभिव्यक्ति और रचनाओं से साहित्य जगत में अपने लिए एक ऐसी पहचान बनाई जिसकी वजह से आज बड़े-बड़े साहित्यकार भी उनके नाम से परिचित हैं । उनकी कविताएं साधारण होकर भी अपने भीतर असाधारण अर्थ छिपाए रहती व वैज्ञानिक शब्दावली के प्रयोग के बावजूद भी सहज ही लगती हैं । उन्होंने अपने विज्ञान विषय का जानकार होने का सदुपयोग अपने लेखन में कर उसे विशिष्टता प्रदान कर दी है । जिसने उन्हें भी आम से खास बना दिया कि जहां विज्ञान शब्द सुनकर माथे पर बल पड़ जाते वहीं उनकी रचनाओं में जब वैज्ञानिकों बिम्बों को पढ़ते तो काव्य चित्र ही साकार नहीं जो जाते बल्कि, विज्ञान के कठिन सूत्र व नियमावली भी आसानी से समझ में आ जाती क्योंकि, वह उनके जरिये मनोभाव को साकार कर देते हैं । उनके नये काव्य संग्रह है न में भी जिन कविताओं का समावेश उनमें विविधता के साथ ही उन विषयों को भी शामिल किया गया जिनकी वजह से उनको पाठक जानते हैं । वह प्रेम व संववदनाओं के वह चितेरे जो अंतर में होने वाली हलचल को पन्नों पर शब्दों में उकेरने में माहिर तो उसे पढ़ते-पढ़ते अनायास ही हम उस माहौल में स्वयं को पाते जिसका चित्रण वह अपनी कविता में कर रहे होते हैं । इस तरह कह सकते कि तो वह अपने सृजन से कल्पना को हकीकत बना देने का कौशल रखते हैं । काव्य संग्रह की पहली कविता प्रेम का अपवर्तनांक में जब वह लिखते विज्ञान का दिल धड़कता ही नहीं धधकता भी है और प्रेम अपने चरम पर पहुंचने से पहले असफल हो जाये तो प्रेमी मन की निराशा चंद्रयान की लैंडिंग की तरह अंतिम पलों में लड़खड़ाने के अहसास से अपने दर्द को जोड़कर पढ़ने वालों को अपने दुख से जोड़ लेती है । इसके बाद दो कप चाय के बहाने वह अपने अंदर की उथल-पुथल को दर्शाने में कामयाब रहे व प्रेम भी तो युद्ध ही है न के जरिये उन्होंने प्रेम की तुलना युद्ध से करते हुए अपने जज्बातों को जिस तरह से व्यक्त किया वह काबिले तारीफ है कि प्रेम व जंग में सब जायज होने के बावजूद भी मर्यादा व नियमों का पालन भी जरूरी और पराजय के बाद भी उम्मीद की डोर को थामे रहना कि कभी-कभी कुछ जीतने के लिए कुछ हारना भी पड़ता है और हारकर जीतने वाले प्रेम सिकन्दर को अपना मनोवांछित परिणाम हासिल होता है ।
अगली कविता सुनो न में वह ग्रह-नक्षत्रों व खगोलीय पिंडों को माध्यम बनाकर अपनी प्रेयसी को सम्बोधित करते हुए मन की बात करते है तो अजीब लड़की कविता में वह प्रेमिका की आदतों व स्वभाव को जो प्रेमी को आकर्षित करती का बयान करते हुए कह देते कि कितनी भी अजीब हो पर सबकी अपनी प्रेयसी बेहद अलहदा होती जिसके लिए तमाम ऊपमायें कम पड़ जाती हैं ।स्टिल आई लव हर कविता में जीवन से प्रस्थान कर गई प्रेमिका का स्मरण करते हुए लिखते है, प्रेम तो पतंगों का ही होता है अमर / आखिर, जलन से होती मृत्यु / फिर भी यादों में जलना और / दीपक की लौ में आहुति देना है प्रेम अपनी प्रेमिका को न भूल पाने की कसक शब्दों में बड़ी तीव्रता से उभरी है । आगे खुशियों भरा सितंबर, परिधि, देह की यात्रा और प्रेम की भूलभुलैया कविताओं में भी कवि मन का दर्द व अनुराग शब्द बनकर बाहर निकला और पढ़ने वालों के अन्तस् को छू गया । सितम्बर का महीना ग्रीष्म व शीत का संगम जिसमें प्यार की कलियां खिलना शुरू हो जाती पर रविवार के बाद आने वाला सोमवार जिस तरह अलसाये मन को बोझिल बना देता उसी तरह यह मिलन को आतुर प्रेमियों को भी उदास कर देता है । एक निश्चित परिधि में में ही पनपता प्रेम जो स्वप्न में देह की यात्रा करता व प्रेम कविता रचता क्योंकि, कवि स्वयं कहता है - हाँ फिर सब कह रहा हूँ / मुझे प्रेम कविता लिखते रहना है / हर नए दिन में नए-नए / झंकार एवं टंकार के साथ / समझी न इसलिए कवि मन देह की यात्रा के बाद प्रेम की भूलभुलैया में भ्रमण करता हुआ हृदय की कंदराओं से नयनों की गलियों और गालों के डिम्पल में गिरता-पड़ता जुल्फों में अटक जाता प्रेमिका की मुस्कुराहट का सौदाई बन जाता है ।
अब तक तरह-तरह की संज्ञाओं से प्रेमी-प्रेमिका को नवाजा गया लेकिन, चश्मे की डंडियों में कोई उन्हें देख सकता तो वह मुकेश कुमार सिन्हा ही है जो लिखते हैं कि, तुम और मैं / चश्मे की दो डंडियाँ / निश्चित दूरी पर / खड़े-थोड़े आगे से झुके भी और ये भी तो सच / एक ही ज़िंदगी जैसी नाक पर / दोनों टिके हैं / बैलेंस बनाकर से वह दूरियों को नजदीकी में परिणित कर देते हैं । प्रेम कविता में प्रेम की भिन्न-भिन्न तरह से व्याख्या करते हुए उसे कभी तस्वीर तो कभी घड़ी की सुइयां तो कैलेंडर तो कभी विंड चाइम तो कभी ऑफिस फ़ाइल की वेल्क्रो स्ट्रिप तो कभी फोन के रिसीवर तो कभी लिफ्ट का दरवाजा बताते हुए अपने अनूठे अंदाज में परिभाषित करते हैं । मित्र कविता में वह अपने मीत को संबोधित करते हुए कहते हैं - सुनो, ज़िंदगी लाती है परिवर्तन / बदल जाना, बदल लेना सब कुछ / पर, मत बदलना / नजरिया और एहसास / अरे, वही तो हैं खास तो नहीं लगता इस गुजारिश को कोई मित्र अनसुना कर सकता है । अगले पन्ने पर वह बोसा कविता में वह लाल फ्रॉक वाली लड़की को याद कर रहे तो पिघलता कोलेस्ट्रॉल कविता में प्रौढ़ प्रेम को दर्शाते हुए होने वाले अनुभवों का शब्द चित्रण जैसे दो किशोर हाथ पकड़कर उम्र की चढ़ाई चढ़ें और थककर पीछे पलटकर देखें कि यात्रा लम्बी भले ही रही पर हमराही ने रास्ते के उतार-चढ़ाव को मायने दे दिये तो वजह बदलने पर भी प्रेम कायम है । एहसासों का आवेग एक ऐसी कविता जिसमें कवि मन किस तरह अपनी उलझन व भावनाओं को शब्दों में पिरोकर काव्य माला गूंथता का दर्शन दर्शाया गया है । असहमति कविता में सुंदर तरीके से कवि ने उसके पर्याय को अभिव्यक्त किया कि - असहमतियाँ / नहीं होती हर समय / सहमति का विपरीत / असहमति भी प्रेम है केवल उसे समझने का दृष्टिकोण विकसित करने की आवश्यकता तब न कहे जाने पर बुरा न महसूस होगा कि उसके पीछे छिपे भाव को प्रेमी समझ सकेगा जो सदैव मनाही नहीं होता है ।
रुमानियत से भरी डायरी कविता हर उस किशोर के लड़कपन की गाथा जो अपनी डायरी में मन को छूने वाली हर छोटी-छोटी बात को दर्ज करता चाहे गीतों की पंक्तियां हो या अपनी कहानी जो अधूरी रह जाए तो पन्नों को पलटकर फिर दोहराई जा सकती है । बेहद मार्मिक कविता जिसमें अल्हड़ उम्र की अधूरी दास्तान के खालीपन को एक बिटिया की चाहत जिसे प्रेयसी का नाम देकर भरा जा सके के जरिये बयां करना कोमल मन की गहरी चोट को दर्शाता है । ब्यूटी लाइज इन बिहोल्डर्स आईज़ कविता भी कवि की तीक्ष्ण दृष्टि का चित्रण है तो चमकते रहना में अपनी प्रेमिका के लिए दुआ की गई कि कोई मौसम हो या कोई हालात या कितनी भी दूरियां ग़म न करना बस, चमकते रहना और चक्रव्यूह कविता में प्रेयसी के रुदन पर आपत्ति जताई गई कि उसके फफकने से प्रेमी के अंदर भी हूक सी उठती पर, कहीं न कहीं यह एक दिलासा भी देता कि आंसू बेवजह नहीं प्रेम की ही प्रतिक्रिया कि प्रेम यादगार होता है / तभी तो प्रेम / ताजमहल बनाता है । आगामी कविताओं प्रेम का भूगोल, स्किपिंग रोप - प्रेम का घेरा, प्रेम का ग्रैंड ट्रंक रोड, प्रेम यानी उम्मीदें एवं उम्रदराज प्रेम में भी प्रेम के विविध आयामों का काव्यमय चित्रण जहां प्रेम को भौगोलिक परिस्थितियों, रस्सी कूदने की क्रिया, नेशनल हाइवे, अंत तक की उम्मीद व उम्र से जोड़कर देखा गया और फिर जो अनुभव हुआ उसे कवि ने कागज पर लिख दिया कि प्रेम ही केवल प्रेम ही वह शय जिसके सहारे जीवन बिताया जा सकता और हर एक शय में उसे अनुभव कर जीवन को नीरस होने से भी बचाया जा सकता है ।
ऐसे ही रेटिना, झील का किनारा, प्रेम रोग, पाइथोगोरस प्रमेय, टू हॉट टू हैंडल कविताएं भी प्रेम के बहुआयमों को प्रस्तुत करती हैं । रेटिना में कवि कहता है समझ गया / तुम्हारे साथ के लिए / नींद का ओढ़ना-बिछौना होता है जरूरी / और गहरी नींद में होना शायद, प्रेम होता होगा तो झील का किनारा कविता में जल में फेंके गए पत्थर से बनने-बिगड़ने वाले दायरों के माध्यम से प्यार को यूँ व्यक्त किया कि, आखिर, दो मचलते पानी के गोले / सपने सरीखे / टकराए / जैसे हुआ / गणितीय शब्दों में, वेन डायग्राम का सम्मिलन तो विज्ञान की शब्दावली को काव्य में पिरोकर दोनों को सहज करने वाली कविताएं हैं । ऐसे ही प्रेमरोग कविता में गज़ब ही कर दिया जहां प्रेम को एंटीबायोटिक की संज्ञा देकर एक नई परिभाषा गढ़ दी जो निश्चित ही कल्पना के आकाश में एक नूतन बिम्ब है तो पाइथोगोरस प्रमेय कविता में किसी गणितीय सिद्धांत की तरह मानकर प्रेम को सिद्ध करने का काव्यमय प्रयास रोचक व प्रेमिल है कि कवि को सर्वत्र प्रेम ही प्रेम नजर आता है । जिसे वह कविता के द्वारा इस तरह से रचता कि जड़ वस्तु को भी पाठक अलग नजरिये से देखना शुरू कर उसमें प्रेम का पुट खोज सकता इस तरह वह पढ़ने वाले की कल्पनाशक्ति को भी उड़ान देते हैं । टू हॉट टू हैंडल भी अपनी तरह की एक अलग रंग की प्रेम कविता जिसमें कवि गर्मी की गर्म दोपहर में प्रेमिका को याद करते हुए कोल्ड ड्रिंक से मिलने वाले सुखद अहसास को उसकी उपस्थिति से जोड़कर देखता है ।
हर कविता प्रेम का एक नया दृष्टिकोण पेश करती हुई आगे बढ़ती जाती और इसी क्रम में बारिश और प्रेम, प्रेम से झलकती पलकें, पहला प्रेम, प्यार कुछ ऐसा होता है क्या? स्पेसिफिक कोना कविताएं सामने आती हैं । जिनमें मोबाइल के पहले वाले जमाने के प्यार की स्मृति को शब्दों में ढालकर कविता का रूप दिया गया जो बारिश की तरह कभी भी चली आती और अंदर-बाहर दोनों भिंगो देती है पर, प्रेम से झलकती पलकें हर एक क्षण को अपने नयनों के कैमरे में कैद कर लेती जिन्हें आंख बंद कर कभी भी फिर से देखा जा सकता है । हर व्यक्ति को किसी न किसी पर कभी न कभी आकर्षण महसूस होता और ज्यादातर छात्रों तो उनकी खुबसूरत टीचर से मोहित हो जाते बिना ये जाने कि यह सही नहीं बस, शरीर के रसायन में होने वाली हलचल को प्रेम समझने लगते तो ऐसे ही एक किशोर मन को पहला प्रेम कविता में कुशलता से उभारा गया है । प्यार कुछ ऐसा होता है क्या? कविता में कवि मन कभी सायकिल तो कभी प्रेशर कुकर तो कभी एयरोप्लेन और कभी फेसबुक इनबॉक्स से प्रेम की तुलना कर उसकी व्याख्या करता हुआ लिखता प्यार तो ऐसा ही कुछ भी होता है / जो सोचो, जिसको सोचो / सब में प्यार ही प्यार / बस, नजरिये की बात / सोच की बात / सम्प्रेषण की बात / दिल से दिल को जोड़ने की बात मतलब बस, प्यार भरी नजर का होना जरूरी फिर हर जगह वही नजर आएगा तो स्पेसिफिक कोना में भी प्रेम की बयार बह रही और बता रही कि जीवन में सबके एक अनछुआ और विशेष कोना होता जिसमें सबसे बचाकर-छिपाकर प्रेम की कीमती स्मृतियों को सहेजकर रखा जाता है ।
इस किताब में 36 प्रेम कविताओं के अलावा अन्य कविताओं विस्थापन, उम्र के पड़ाव, बेटे यश को चिट्ठी, गुड बाय पापा, पिता व बेटे की उम्मीदें, चाहतें, फ़ितरत, महलों-सा घर, अलविदा, मठाधीश, अमीबा, प्रस्थान, राजपथ, अपाहिज प्रार्थना, आईना, फ्लेमिंगो, उम्मीद, मृत्यु, अर्ध निर्मित घर में भी कवि के लेखन कौशल की प्रशंसा की जानी चाहिए कि वह अपने कवि को किसी भी हाल में चुप नहीं रहने देते अमीबा पर भी कविता लिख डालते हैं । इसके अलावा इस काव्य संग्रह में कुछ क्षणिकाएं व गणितीय शब्दों पर क्षणिकाएँ भी सम्मिलित जो मुकेश कुमार सिन्हा की विस्तृत लेखनी, विविध विषयों पर पैनी दृष्टि, समग्रता व व्यापक सोच को ज़ाहिर करती कि किस प्रकार अपनी नौकरी, परिवार व बेटों के मध्य उन्होंने संतुलन बनाते हुए अपने शौक को न केवल जीवित रखा बल्कि, सोशल मीडिया पर भी सक्रिय रहते हुए अपना अलग नाम व पहचान बनाई है ।
उनकी इस किताब में वरिष्ठ कलमकारों ममता कालिया, चित्रा मुद्गल, हृषिकेश सुलभ, प्रभात मिलिंद, अनुराधा सिंह, अनिल अनलहातु, अंजना सिन्हा, स्वाति सिंह, ज्योति खरे व अरुण चन्द्र राय के आशीष वचन व इंडिया टुडे, दैनिक जागरण, लोकमत समाचार, जनवाणी जैसे समाचार पत्रों व पत्रिकाओं की समीक्षात्मक टिप्पणियों को भी शामिल किया गया तो उम्मीद है कि आप सब भी पढ़कर इसे अपना प्रेम देंगे
... हैं न ।
सुश्री इंदु सिंह
नरसिंहपुर (म.प्र.)