कविता संग्रह "हमिंग बर्ड"

Monday, February 23, 2015

पुराने जर्द पन्ने की एलआईसी की एक है डायरी मेरे पास तबकी, जब शब्द कम क्या बहुत कम थे पर अरमानों का ज्वारभाटा ज्यादा ही उच्छ्रिन्खल था :-)
उसके शब्दों को पढने से लगता है उन शब्दों को धक् धक् साँसों के साथ जी रहा होता हूँ :-)
अधिकतर उडाये हुए शायरी हैं पर हर शेर में दिल :-D फड़क फड़क कर कहता है मुक्कू क्या मस्त फाके के दिन थे न :-)
खाली पॉकेट की मस्तीखोरी यादगार :P
मेरे लिए शब्दों का ताजमहल मेरी डायरी
उसमें दफ़न एक बेहतरीन मुक्कू :-)
अब तो मुझे खुद स्वयं से नफरत है
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कितना जलनखोर हो गया मैं :-)
कोई नही झेलिये :-D

Wednesday, February 4, 2015

हमिंग बर्ड - समीक्षा रंजू भाटिया के शब्दों में !!


हमिंग बर्ड
सबसे छोटी चिड़िया इसे हिन्दी में शकरखोरा और फुलचुकी कहते हैं। और इसका वैज्ञानिक नाम नैक्टरीनिया ऐशियाटिका है। इसके नामों से आपको अनुमान तो हुआ होगा कि ये नाम क्यों रखे गए? जी हाँ, यह फूलों का पराग मिश्रित मधु चूसती है, यानी नैक्टर।अरे अरे आप कहेंगे की यह क्या अपना ज्ञान बघार रही है पर नहीं जनाब मैं बात कर रही हूँ अपने मित्र "मुकेश कुमार सिन्हा "की कविता की किताब "हमिंग बर्ड "की. अब वो हमिंग बर्ड तो पराग लेती है पर इनकी लिखी कविताएं दिल में घर बना  लेती हैं ,सरल इंसान और सबकी मदद करने को हर समय रेडी ,मैं इन्ही "मुकेश" को जानती हूँ।  यह संग्रह आये बहुत समय हो गया पर मैं अपनी व्यवस्ताओं के कारण अब पढ़ पायी इसको इंफीबीम से आर्डर कर के। देर आये दुरुस्त आये। पहली कविता की कुछ पंक्तियाँ इनके कलम की हमिंग का गुंजन कुछ यूँ सुनाई देता है 
मेरी ज़िन्दगी के ज़िंदादिली के चौखट पर 
जब भी कोई एहसास देता है दस्तक 
मेरा ५ मिलीग्राम छुटकू सा :मन "
मारता है कुलांचे 
सीमित शब्दों से भरता है रंग 
आसमान से कैनवस पर .. अब यह रंग भरेगा तो आसमाँ निखर के ही सामने आएगा न ?जिसमें प्रेम कविता के रंग भी हैं मनुहार ,रूठना सरल रोज़मर्रा की भाषा में तो लाइफ इन मेट्रो के आज के हालात भी हैं ,दिल्ली के दिल में उम्मीद का भी ज़िक्र है तो नौकरीपेशा इंसान के लिए पहली तारीख का महत्व भी है ,है न ज़िन्दगी के हर रंग ,ठीक हमिंग बर्ड चिरइया के माफिक आपके दिल में भी दस्तक देने लगते हैं ,इंसान वही अच्छा है जिसके दिल के अंदर आज भी छोटा बच्चा है उस पर लिखी उनकी इस कविता की यह पंक्तियाँ बहुत मासूम लगी 
आज भी वो बच्चा 
कभी कूकता कान में 
तो कभी खींचता बाल 
इस कठोर से जीवन में भी 
कभी तो लाता है मासूमियत ,यही मासूमियत पढ़ने वाले को अपने दिल की बात लगती है एक पल राहत देती है ज़िन्दगी की भागदौड़ से इस लिए अपने अंदर का बच्चा जाएगा रहे यह अहम बात है। फेसबुक आज के सोशल मिडिया की सबसे बड़ी लोगो को जोड़ने वाली कड़ी है इस विषय पर भी बहुत सुन्दर कविता लिख दी गयी है प्रोफाइल चित्र ,लाइक ,कॉमेंट आदि पर सच पढ़ते ही बरबस मुस्कान आ जाती है होंठो पर ,दिदिया भाई रिश्तो पर भी लिखते हुए वह रिश्तो की खूबसूरती से कह गए हैं, कोख से बेटी की पुकार आज बेटी की पुकार करती सुनाई दी। सब कविताओं पर लिखना यहाँ मुमकिन नहीं ज़िन्दगी का सरल फलसफा है सरल शब्दों में। जानती हूँ बहुत से दोस्त इसको पढ़ चुके होंगे ,मैं लेट हो गयी इसको पढ़ने में आपने अब तक नहीं पढ़ा है तो हिन्द युग्म प्रकाशन का यह संग्रह ऑनलाइन या आने वाले पुस्तक मेले में ले सकते हैं
रंजू भाटिया