पुराने जर्द पन्ने की एलआईसी की एक है डायरी मेरे पास तबकी, जब शब्द कम क्या बहुत कम थे पर अरमानों का ज्वारभाटा ज्यादा ही उच्छ्रिन्खल था :-)
उसके शब्दों को पढने से लगता है उन शब्दों को धक् धक् साँसों के साथ जी रहा होता हूँ :-)
अधिकतर उडाये हुए शायरी हैं पर हर शेर में दिल :-D फड़क फड़क कर कहता है मुक्कू क्या मस्त फाके के दिन थे न :-)
खाली पॉकेट की मस्तीखोरी यादगार :P
मेरे लिए शब्दों का ताजमहल मेरी डायरी
उसमें दफ़न एक बेहतरीन मुक्कू :-)
अब तो मुझे खुद स्वयं से नफरत है
---------------------
कितना जलनखोर हो गया मैं :-)
कोई नही झेलिये :-D
उसके शब्दों को पढने से लगता है उन शब्दों को धक् धक् साँसों के साथ जी रहा होता हूँ :-)
अधिकतर उडाये हुए शायरी हैं पर हर शेर में दिल :-D फड़क फड़क कर कहता है मुक्कू क्या मस्त फाके के दिन थे न :-)
खाली पॉकेट की मस्तीखोरी यादगार :P
मेरे लिए शब्दों का ताजमहल मेरी डायरी
उसमें दफ़न एक बेहतरीन मुक्कू :-)
अब तो मुझे खुद स्वयं से नफरत है
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कितना जलनखोर हो गया मैं :-)
कोई नही झेलिये :-D
Bhut hi badhiya likha hai apne
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