कविता संग्रह "हमिंग बर्ड"

Friday, June 1, 2018

’लाल फ़्रॉक वाली लड़की’ – समीर लाल 'समीर' के शब्दों में

Setu ....................... सेतु: ’लाल फ़्रॉक वाली लड़की’ – मुकेश कुमार सिन्हा: किताब: ‘ लाल फ़्रॉक वाली लड़की ’ लेखक: मुकेश कुमार सिन्हा मूल्य:  ₹ 120 रुपये प्रकाशक: बोधि प्रकाशन, जयपुर (राजस्थान)



'लाल फ़्रॉक वाली लड़की' – मुकेश कुमार सिन्हा

किताब: ‘लाल फ़्रॉक वाली लड़की
लेखक: मुकेश कुमार सिन्हा
मूल्य:  ₹ 120 रुपये
प्रकाशक: बोधि प्रकाशन, जयपुर (राजस्थान)

समीक्षक: समीर लाल ’समीर’


हालांकि मुकेश कुमार सिन्हा 2008 से ब्लॉगर मित्र रहे हैं मगर जैसा मुझे ख्याल आता है वह सही  तरह से सक्रिय सन 2010 में आकर हुए और तभी से उनको ब्लॉग के माध्यम से नियमित पढ़ना शुरु किया। अतुकांत एवं छंदमुक्त कविताओं के माध्यम से वह दिल कहने की कला में पारंगत रहे हैं। अतुकांत कवितायें दिल के भावों की अभिव्यक्ति को जस का तस प्रस्तुत करती हैं बिना किसी भाषाई एवं व्याकरण साधने की मिलावट के। शायद इसीलिए मुझे यह ज्यादा प्रभावित करती हैं। यूँ तो भाषा से समृद्ध एवं व्याकरण में पारंगत लोग उतनी ही सरलता से गीत, गज़ल और छंदबद्ध कविता में भी भाव उतार देते हैं।

समीर लाल 'समीर'
कुछ वक्त पहले मुकेश ने अपना कविता संग्रह ‘हमिंग बर्ड’ भी मुझे भेजा था। एक ही बार में सारी कवितायें पढ़ गया था मगर तारीफ के शब्द ईमेल तक सीमित होकर रह गये थे। कभी इत्मीनान से बैठकर किताब के बारे में विस्तार से लिखेंगे का विचार आलस्य के कुचक्र में फंसकर अन्य अनेकों कार्यों के साथ पेण्डिंग फाइल में रखा हुआ है। सरकारी पेण्डिंग फाइलों का सा उनका भी हाल न हो जाये कि सदा के लिए उसी फाईल में दफन होकर रह जायें। कुछ खुद को व्यस्थित कर अनुशासित करना होगा उन्हें दिन की रोशनी में लाने के लिए।
इस बीच उनकी नई किताब आ गई ‘लाल फ़्रॉक वाली लड़की’। मुकेश हमेशा से मुझे परिवार के बड़े सदस्य का दर्जा देते आये हैं और पिछली किताब के साथ पूरा इन्साफ न करने के बावजूद भी उन्होंने पुनः अपनी यह नई किताब मुझे उपलब्ध करवाई।

मित्र रविश कुमार की एक किताब आई थी ‘इश्क में शहर होना’। लप्रेक याने लघु प्रेम कथाएँ थी उसमें। कभी मौका नहीं आया कि पढ़ पाऊँ हालांकि रविश फोन पर वादा करके दिल्ली में उस पते पर पहुँचवाना भूल गये जहाँ से मुझ तक पहुँच पाती। मगर उनके विडियो के माध्यम से किताब का एक बड़ा हिस्सा सुना है।
छोटी-छोटी प्रेम कथायें रोजमर्रा की जिन्दगी से। कभी सड़क पर चलते, कभी मेट्रो में तो कभी रेल से गाँव जाते राह में, बहती हुए भावनायें और हसरतों भरे मोहब्बत के किस्से, यही तो है मुकेश की इस नई किताब ‘लाल फ़्रॉक वाली लड़की’ में भी।

मुकेश कुमार सिन्हा
छोटे-छोटे से 50 से 100 शब्दों के किस्से, आशिक दिल के, पढ़ते-पढ़ते आप बेवजह मुस्करायेंगे, उदास हो जायेंगे, खुद ही अहसास जगायेंगे किसी बीते लम्हे का और बेसाख्ता कह उठेंगे, अरे! ये तो मेरा किस्सा है, और फिर एकाएक जानेंगे कि यह तो हर उस दिल का किस्सा है जिसे सही मायने में धड़कना आता है। जगह जगह ऐसे शब्द आप पायेंगे जिसे आप जानते तो हैं, बोलते भी हैं कभी कभी मगर कोई उन्हें इतनी खूबसूरती से लिख जायेगा, यह शायद आप नहीं सोचते होंगे, इसका एक उदाहरण देखें:
‘थेथरई दोस्तों की’,
कॉलेज के दिनों में कितने थेथर होते थे न दोस्त!
कमीने, साले। चेहरा देखकर व आवाज की लय सुनकर भाँप जाते थे कि कुछ तो पंगे हैं।
-क्या हुआ? काहे मुँह लटकाए हुए हो रे?
उसके घर में चाय के लिए नहीं पूछा क्या?

इसके आगे फिर आम बातचीत के लहजे में बिना रुकावट के अंग्रेजी शब्दों की मिलावट को मंजिल देते हुए कहते हैं कि तभी तो वह प्रेम से लबरेज सामान्य बातचीत बाद के दिनों में सिहरन भरती हैं।

ट्रिगनोमेट्री, फिजिक्स, केमिस्ट्री जैसी बातों से मोहब्बत का गणित और इजहार, किस्सागोई का एक अलग लयात्मक अंदाज कि मात्र 4 बाई 6 के 104 पन्नों में पसरा मोहब्बत का पूरा संसार,  आज के ट्वेन्टी ट्वेन्टी क्रिकेट के जमाने को चरितार्थ करता आपको रोमांचित करेगा, यह दावा है। किताब यूँ तो 124 पन्नों की है मगर पहले के 20 पन्ने भूमिका और साहित्यकारों के विचारों के हैं इस किताब के बारे में।

‘रेनिंग विथ केट्स एण्ड डॉग्स’ , ‘नोटबंदी’, ‘क्या इतवार भी शनिचर हो सकता है’ जैसे रोचक शीर्षक और उनमें समाहित इश्क की बातें, मोहब्बत दिल के किस्से हैं, मुकेश शब्द सजाना जानते हैं, उनको पिरोना जानते हैं, फिर वो चाहे गध्य हो या पध्य में, माला सुन्दर सजकर आयेगी ही। आप अहसासेंगे कि आपने यह माला खुद पिरोई है खुद के लिए।

इसे पढ़ते पढ़ते मुझे याद आया कि मेरी भी लप्रेक (लघु प्रेम कथाएँ) संग्रह उसी पेंडिंग फाईल में है। धन्यवाद मुकेश का कि उसने याद दिलाया, जल्द काम शुरु करते हैं उस पर। तब तक आप जरुर पढ़ें: ‘लाल फ़्रॉक वाली लड़की’। मेरा वादा है आप निराश नहीं होंगे और पायेंगे कहीं न कहीं खुद का कोई किस्सा।