कविता संग्रह "हमिंग बर्ड"

Tuesday, July 28, 2015

नमन व श्रद्धांजलि कलाम साहब को !! (27 जुलाई 2015)

रोहित रूसिया जी के फेसबुक वाल से साभार

याद आ रहा वो कीमती क्षण

प्रधानमन्त्री कार्यालय में वाजपेयी जी के कार्यकाल में, एक सामान्य दिन के तरह मैं पहले लिफ्ट में घुसा था सेकंड फ्लोर पर चाय पीने के लिए तभी दूर से आते कलाम साहब को देख किसी ने दरवाजे में हाथ डॉल कर लिफ्ट रोका . मुझे कुछ भी नही पता था, एक दम से साथ आकर खड़े हो गए एक घुंघराले लंबे वाल वाले शख्सियत ! उन्हें पहले तल पर जाना था पर उन्होंने बटन नही दबाया ! लिफ्ट सीधे सेकण्ड फ्लोर पहुंची!! बाहर निकलने को हुए तो गलती का अंदाजा हुआ !! डरते डरते मैंने उन्हें फिर फर्स्ट फ्लोर छोड़ा !!

कहीं अंदर तक भिंगो गया वो क्षण !!
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नमन व श्रद्धांजलि कलाम साहब को !!

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बहती हवा सा था वो, उड़ती पतंग सा था वो
कहाँ गया उसे ढूँढ़ो
हमको तो राहें थी चलाती
वो खुद अपनी राह बनाता
गिरता संभलता, मस्ती में चलता था वो
हमको कल की फ़िक्र सताती
वो बस आज का जश्न मनाता
हर लम्हें को खुलके जीता था वो
कहाँ से आया था वो, छू के हमारे दिल को
कहाँ गया उसे ढूँढ़ो
सुलगती धूप में छाँव के जैसा
रेगिस्तान में गाँव के जैसा
मन के घाव पे मरहम जैसा था वो
हम सहमे से रहते कुए में
वो नदियाँ में गोते लगाता
उल्टी धारा चीर के तैरता था वो
बादल आवारा था वो, यार हमारा था वो
कहाँ गया उसे ढूँढ़ो
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गीत स्वानंद किरकिरे, शान-शांतनु मोइत्रा के आवाज में 3-इडियट्स का ये गाना कलाम साहब के लिए सुनने का दिल कर रहा !!

उम्मीद है लोग इसको गलत तरीके से नही लेंगे

पता नही क्यों इसके बोल कलाम साहब के जिंदादिली और राष्ट्रभक्ति पर आज के नए दौर में फिट करते हुए लगती है !!

Thursday, July 23, 2015

डॉ. भावना शेखर के शब्दों में "हमिंग बर्ड"


हमिंगबर्ड यानि लगभग 250 प्रजातियों वाली … 500 फ़ीट ऊंचाई तक उड़ने वाली, रग बिरंगी नन्ही सी चिड़िया जो जहाँ से गुज़र जाए आँखों में बस जाए। एक हमिंगबर्ड कुछ दिनों से मेरे सिरहाने रहती है। आज उस पर कुछ कहने का मन है। मुकेश कुमार सिन्हा ने अपनी कविताओ के पुलिंदे को नाम दिया है -- हमिंगबर्ड। बड़ा माकूल शीर्षक है। 

कवि का मन हमिंगबर्ड की तरह उड़ान भरता है। ज़िंदगी की हर अदा, हर पहलू हर चीज़ उसकी लेखनी को चंचल बना देती है। वह बहुत कुछ या मानें तो सब कुछ कहना चाहता है। क्या कोई डस्टबिन, तकिए, जूते के लेस या अख़बार पर भी कविता रच सकता है!! मुकेश की संवेदना का कोई ओर - छोर नहीँ....इनकी कविता का आकाश निस्सीम है। एक ओर ये प्रेम को परिभाषित करते हैं, रिश्ते-नाते , पुल, मकान और शहर को व्याख्यायित करते हैं तो दूसरी ओर चालीस और पचास की वय के बीच की चुहल …चोरी चोरी उमगते और फिर फुस्स हो जाते अरमानों को सार्वजनिक करने का माद्दा भी रखते हैं। इनकी शब्दयात्रा दैनन्दिन जीवन के हर पड़ाव से गुज़रती है। क़तरा भर ज़िंदगी भी इस सहज कवि के लिए अस्पृश्य, वर्जित या अनदेखी नही।


सहज भाव सुबोध भाषा … न लाग न लपेट, न रंच भर प्रपंच और बन गयी कविता। मुकेश की सृजनभूमि रमणीय …निस्संदेह हमिंगबर्ड पठनीय। अशेष मंगलकामनाएँ !!! 
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Dr. Bhavna Shekhar

Wednesday, July 22, 2015

"प्रतिलिपि" पर मुकेश कुमार सिन्हा की कवितायेँ

प्रतिलिपि (pratilipi.com) ने मेरे कुछ कविताओं को ई-बुक का शकल दिया, और इसमें मेरे मित्र वीणा वत्सल सिंह का पूर्ण सहयोग रहा !!
उम्मीद रखूँगा आपके नजरों से गुजरें, आप मेरे कविताओं को सराहें या आलोचना करें, पर प्रतिलिपि के संपादक मंडल को सिर्फ शुक्रिया ही कह पाएंगे, ऐसा मुझे लगता है !! एक बेहतरीन प्रयास !!
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आपका कमेन्ट हमें व प्रतिलिप टीम को संबल प्रदान करेगा !!



Wednesday, July 15, 2015

शब्दांकन पर मुकेश कुमार सिन्हा की कवितायेँ



भरत तिवारी जी के समूह ब्लॉग शब्दांकन पर मेरी कुछ कवितायेँ प्रकाशित हुई है
जिसका लिंक इस हाई लाइटेड शीर्षक पर क्लिक करने से खुलेगा
शब्दांकन पर मुकेश कुमार सिन्हा की कवितायेँ

इनमे से अधिकतर कवितायेँ मेरे कविता संग्रह 'हमिंग बर्ड ' में प्रकाशित हो चुकी है, जो अधिकतर ऑनलाइन साइट्स पर 100/- में उपलब्ध है .

धन्यवाद् !!











Tuesday, July 7, 2015

अपर्णा शाह के शब्दों में ....... हमिंग बर्ड






मेरे आँगन चहकने की आवाज?दौड़ी गई तो देखी मुकेशजी की "हमिंग बर्ड।"तो आख़िरकार इतने देर से ही सही तुम मेरे पास पहुँच ही गई। "इतने रमणीक जगह आप रहते हो कि बस मन भटकता रहा ,मैं घूमती,आनन्द लेती आराम से आपके यहाँ पहुंची।"आह-हा !

मुकेशजी की अधिकांश कवितायेँ तो पहले पढ़ चुकी हूँ,बाकी सब भी पढ़ गई। सहजता-सरलता इनकी खासियत है ,इतने समर्पित भाव से कविता परोसते हैं कि मन को बांध लेती है अभिव्यक्ति। ग्राह्य होनेवाली आम भाव के आशुकवि हैं यें। जहाँ न पहुंचे रवि वहां पहुंचे कवि वाली उक्ति को चरितार्थ करते हैं "शेर सुनाऊँ,मेरे अंदर का बच्चा,पगडण्डी,हाथ की लकीरें----गम्भीर भाव,हल्के से शब्द। प्रेमगीत रचते शब्द,सच पूछिये तो प्यार के कितने आयाम। इतनी तन्मयता,ईमानदारी से उद्घोषणा की मैं कवि नहीं हूँ।

इनकी 'हमिंग बर्ड"की पहुँच हर सुधी मन,हर आँगन हो ऐसी ही फुदकती हुई ऊँचाई पे पहुंचे। मेरी ढेर सारी शुभकामनायें।
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