रोहित रूसिया जी के फेसबुक वाल से साभार |
याद आ रहा वो कीमती क्षण
प्रधानमन्त्री कार्यालय में वाजपेयी जी के कार्यकाल में, एक सामान्य दिन के तरह मैं
पहले लिफ्ट में घुसा था सेकंड फ्लोर पर चाय पीने के लिए तभी दूर से आते कलाम साहब
को देख किसी ने दरवाजे में हाथ डॉल कर लिफ्ट रोका . मुझे कुछ भी नही पता था, एक दम से साथ आकर खड़े हो गए
एक घुंघराले लंबे वाल वाले शख्सियत ! उन्हें पहले तल पर जाना था पर उन्होंने बटन
नही दबाया ! लिफ्ट सीधे सेकण्ड फ्लोर पहुंची!! बाहर निकलने को हुए तो गलती का
अंदाजा हुआ !! डरते डरते मैंने उन्हें फिर फर्स्ट फ्लोर छोड़ा !!
कहीं अंदर तक भिंगो गया वो क्षण !!
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नमन व श्रद्धांजलि कलाम साहब को !!
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बहती हवा सा था वो,
उड़ती पतंग सा था वो
कहाँ गया उसे ढूँढ़ो
हमको तो राहें थी चलाती
वो खुद अपनी राह बनाता
गिरता संभलता, मस्ती
में चलता था वो
हमको कल की फ़िक्र सताती
वो बस आज का जश्न मनाता
हर लम्हें को खुलके जीता था वो
कहाँ से आया था वो,
छू के हमारे दिल को
कहाँ गया उसे ढूँढ़ो
सुलगती धूप में छाँव के जैसा
रेगिस्तान में गाँव के जैसा
मन के घाव पे मरहम जैसा था वो
हम सहमे से रहते कुए में
वो नदियाँ में गोते लगाता
उल्टी धारा चीर के तैरता था वो
बादल आवारा था वो,
यार हमारा था वो
कहाँ गया उसे ढूँढ़ो
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गीत स्वानंद किरकिरे, शान-शांतनु मोइत्रा के आवाज में 3-इडियट्स का ये गाना कलाम साहब के लिए सुनने का दिल कर रहा !!
उम्मीद है लोग इसको गलत तरीके से नही लेंगे
पता नही क्यों इसके बोल कलाम साहब के जिंदादिली और राष्ट्रभक्ति पर
आज के नए दौर में फिट करते हुए लगती है !!
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