कविता संग्रह "हमिंग बर्ड"

Monday, May 27, 2019

नजफ़ खां का मकबरा

पिछले कुछ दिनों से मोर्निंग वाक के चक्कर में रूट बदल बदल कर लोधी कॉलोनी के हर कोने को देख रहा हूँ, महसूस रहा हूँ।  लोधी कॉलोनी और इसके इर्द गिर्द बेहद खुबसूरत हरियाली के साथ बहुत से जाने पहचाने स्मारक/बिल्डिंग/साईं मंदिर/गार्डन/स्टेडियम के साथ हेबिटेट सेंटर और इंडिया इंटरनेशनल सेंटर भी स्थित हैं, इस वजह से हर नए दिन में नए रुट पे निकलना कुछ तो अलग फीलिंग भरता है ☺️...!
हर दिन कम से कम दो किलोमीटर पैदल चलूँ, इस हौसले के साथ निकलता हूँ | मेरे घर से करीबन डेढ़ किलोमीटर दूर नजफ़ खां का मकबरा के बारे में मित्र ने बताया, जो चार बाग़ के नाम से स्थानीय लोगों में पहचाना जाता है और ये एक खुबसूरत वर्गाकार पार्क के अन्दर स्थित है | तो इन दिनों कई बार इस मकबरे तक घुमने के लिए पहुंचा हूँ | खुबसूरत हरियाली व शांति में सिमटा ये मकबरा एक बेहद सामान्य से वर्गाकार दो तल वाले लाल पत्थर वाले महल में स्थित है | हमने तो बस इसके चारो और कई बार चक्कर लगाया | वो बात दीगर है कि ज्यादा कुछ खास नहीं लगा 😊|
बेशक नजफगढ़ बाहरी दिल्ली का एक पहचाना हुआ जगह है | पर जिस नजफ़ खां के नाम पर नजफ़ गढ़ है, उसका मकबरा लोधी कॉलोनी में सफ़दरजंग एअरपोर्ट के पास कर्बला क्षेत्र में स्थित है | विकीपीडिया बताता है मिर्ज़ा नजफ़ खां (1722-1772) मुगल बादशाह शाह आलम द्वितीय के दरबार में एक फारसी एडवेंचरर था। इसके सफ़ावी वंश को नादिर शाह ने 1735 में पदच्युत कर दिया था जिस वजह से नजफ़ खां भारत 1740 में आया था। इसकी बहन का विवाह अवध के नवाब से हुआ था। इसे अवध के उप-वज़ीर का पद भी मिला था। मिर्ज़ा 1722 से मृत्यु पर्यन्त तक ये मुगल सेना का सिपहसालार रहा था। अप्रैल, 1772 में इसकी मृत्यु हुई।
मित्र Renuka Chitkara का कहना है, ये रात के समय haunted place कहलाता है 😊😊
~मुकेश~


Thursday, May 9, 2019

पांच लाख पेज व्यू (जिंदगी की राहें) और ब्लोगर ऑफ़ द इयर अवार्ड के लिए नॉमिनेशन



बात 2008 की थी, उन दिनों ऑरकुट का जमाना था, तभी एक नई बात पता चली थी कि "ब्लोगस्पॉट" गूगल द्वारा बनाया गया एक अलग इजाद है, जिसके माध्यम से आप अपनी बात रख सकते हैं और वो आपका अपना डिजिटल डायरी होगा | जैसे आज भी कोई नया एप देखते ही डाउनलोड कर लेता हूँ, तो कुछ वैसा ही ब्लॉग बनाना था। दीदी ने बताया था ब्लॉग भी गूगल की एक फेसिलिटी है जो एक तरह से इंटरनेटीय डायरी सी है। पहली पाठक भी वही थी।

ये सच्चाई है कि ब्लॉग के वजह से ही हिंदी से करीबी बढ़ी, टूटे-फूटे शब्दों में अपनी अभिव्यक्ति को आप सबके सामने रखने लगे। ये भी सच है पर कि इन दिनों ब्लॉग पर जाना कम हो गया है, फेसबुक पर संवाद ब्लॉग के तुलना में थोडा श्रेयस्कर है। पर, आज भी मेरा लिखा सब कुछ ब्लॉग पर देर सवेर पोस्ट होता है, बेशक हर रचनाकार के तरह उनको कागज़ पर प्रकाशित होना देखना चाहता हूँ ! पर मेरा ब्लॉग मेरे साहित्यिक जीवन की अमूल्य थाती है।

ये भी आज की सच्चाई है कि बहुत से नामी गिरामी साहित्यिक ब्लोग्स के बीच चुप्पी साधे मेरा ब्लॉग "जिंदगी की राहें" अपने पाठक संख्या में उतरोत्तर वृद्धि को दर्ज करते हुए पांच लाख पेज व्यू के बैरियर को पार कर गया है ! मेरा दूसरा ब्लॉग "गूँज...अभिव्यक्ति दिल की" है।

आंकड़े बताते हैं कि एक समय करीब 200 कमेंट्स तक पोस्ट पर आवागमन होता था जो किसी सामान्य हिंदी पत्रिका से कम नहीं था। आज भी ट्रैफिक की संख्या बताती है साइलेंट पाठक की संख्या में इजाफा हुआ है पर लोग प्रतिक्रिया देने से हिचकिचाते हैं।

अपने 382 फोलोवर्स की संख्या के साथ इस ब्लॉग ने कछुए के चाल के साथ अपने पाठक के संख्या (viewers) को पांच लाख पर करते हुए देख रहा है जो बहुत से सामूहिक ब्लॉग् मैगजीन के तुलना में भी बहुत आगे है, पिछले वर्ष हिंदी दिवस के ही दिन ये संख्या तीन लाख से ज्यादा थी | हर दिन करीबन 500 पाठक इस ब्लॉग पर आते हैं| तो इन वजहों से आज धीरे से कह पा रहा है कि गिलहरी के मानिंद हम भी साहित्यिक पुल को बनाने में लगे हैं।

इसी ब्लॉग से बने आकर्षण के वजह से आज मेरे हिस्से में भी दो तथाकथित बेस्ट सेलर, एक कविता संग्रह "हमिंगबर्ड", एक लप्रेक संग्रह "लाल फ्रॉक वाली लड़की" और छः साझा संग्रहों - कस्तूरी, पगडण्डीयाँ, गुलमोहर, तुहिन, गूँज और 100कदम का सह संपादन (अंजू चौधरी के साथ) है | करीबन 300 नए/पुराने साथियों को अपने साझा संग्रह के माध्यम से प्रकाशन का सुख दे पाए, जिसकी पहुँच भी ठीक ठाक रही | अब एक नया साझा संग्रह "कारवां" के नाम से लाने की योजना है, जो बस कार्यान्वित होने ही वाली है, प्रेस से आने की उम्मीद में पहले से ख़ुश हो रहे हैं | हिंदी से जुड़े अधिकतर पत्रिकाओं ने कभी न कभी कागज़ का कोई एक कोना मेरे नाम भी किया है | आल इंडिया रेडिओ/आकाशवाणी/टीवी के माइक के सामने अपनी हकलाती हुई आवाज भी रख पाया हूँ |

तो इन सबसे इतर बस ये भी जोर देकर कहना है - हाँ, इस ब्लॉगर के अन्दर छुटकू सा हिंदी वाला दिल धड़कता है, जो हिंदी की बेहतरी ही चाहता है !

अब ब्लॉगर ऑफ़ द ईयर के लिए नॉमिनेशन मिली है, आपका स्नेह चाहिए !