पिछले कुछ दिनों से मोर्निंग वाक के चक्कर में रूट बदल बदल कर लोधी कॉलोनी के हर कोने को देख रहा हूँ, महसूस रहा हूँ। लोधी कॉलोनी और इसके इर्द गिर्द बेहद खुबसूरत हरियाली के साथ बहुत से जाने पहचाने स्मारक/बिल्डिंग/साईं मंदिर/गार्डन/स्टेडियम के साथ हेबिटेट सेंटर और इंडिया इंटरनेशनल सेंटर भी स्थित हैं, इस वजह से हर नए दिन में नए रुट पे निकलना कुछ तो अलग फीलिंग भरता है ☺️...!
हर दिन कम से कम दो किलोमीटर पैदल चलूँ, इस हौसले के साथ निकलता हूँ | मेरे घर से करीबन डेढ़ किलोमीटर दूर नजफ़ खां का मकबरा के बारे में मित्र ने बताया, जो चार बाग़ के नाम से स्थानीय लोगों में पहचाना जाता है और ये एक खुबसूरत वर्गाकार पार्क के अन्दर स्थित है | तो इन दिनों कई बार इस मकबरे तक घुमने के लिए पहुंचा हूँ | खुबसूरत हरियाली व शांति में सिमटा ये मकबरा एक बेहद सामान्य से वर्गाकार दो तल वाले लाल पत्थर वाले महल में स्थित है | हमने तो बस इसके चारो और कई बार चक्कर लगाया | वो बात दीगर है कि ज्यादा कुछ खास नहीं लगा 😊|
बेशक नजफगढ़ बाहरी दिल्ली का एक पहचाना हुआ जगह है | पर जिस नजफ़ खां के नाम पर नजफ़ गढ़ है, उसका मकबरा लोधी कॉलोनी में सफ़दरजंग एअरपोर्ट के पास कर्बला क्षेत्र में स्थित है | विकीपीडिया बताता है मिर्ज़ा नजफ़ खां (1722-1772) मुगल बादशाह शाह आलम द्वितीय के दरबार में एक फारसी एडवेंचरर था। इसके सफ़ावी वंश को नादिर शाह ने 1735 में पदच्युत कर दिया था जिस वजह से नजफ़ खां भारत 1740 में आया था। इसकी बहन का विवाह अवध के नवाब से हुआ था। इसे अवध के उप-वज़ीर का पद भी मिला था। मिर्ज़ा 1722 से मृत्यु पर्यन्त तक ये मुगल सेना का सिपहसालार रहा था। अप्रैल, 1772 में इसकी मृत्यु हुई।
~मुकेश~
ब्लॉग बुलेटिन की दिनांक 29/05/2019 की बुलेटिन, " माउंट एवरेस्ट पर मानव विजय की ६६ वीं वर्षगांठ - ब्लॉग बुलेटिन “ , में आप की पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
ReplyDeleteरोचक। दिल्ली में भूतिया जगहें काफी हैं। भूत हो न हो लेकिन किस्सों से उन जगहों की रोचकता बढ़ जाती है।
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