Thursday, July 30, 2020
बेस्ट फ्रेंड
Wednesday, July 15, 2020
ऋषभ : मेरा बेटा
मुझे स्वयं से अत्यधिक नाराजगी की एक वजह ये दिखती है कि यश-ऋषभ पर उनके बचपन में मैंने उनपर हाथ चलाये। शायद इसका कारण मेरे अंदर तथाकथित गुस्से वाले पापा का बैठा होना था, साथ ही अत्यधिक उम्मीदों की गठरी भी, इनके सर पर रखना भी था । पर समय के बदलते रुख के साथ व फेसबुक पर ही अन्य पैरेंटिंग टिप्स ने मुझमे इस नजरिए से, अत्यधिक बदलाव आया। कुछ बरसों बाद से ही, कभी कान मरोड़ना भी हो तो ये काम अंजू का होता है । बदलते समय और अनेकों उदाहरण ने ये भी विश्वास दिलाया कि बच्चे जो मन से करेंगे वो ही बेहतरीन होगा और अब के बच्चे अपने भविष्य के लिए ज्यादा सजग हैं। बस इस विश्वास को दोनों ने बनाये रखने की कोशिश की, इतना देखना ही सबसे सुखद होता है। हर बच्चे का टैलेंट एकदम जुदा है, यश को कम नम्बर आते हैं पर उसको शानदार खेलते देख कर किसी मित्र ने कहा जो शानदार स्पोर्ट्समैन है, वो कमजोर या लल्लू हो ही नहीं सकता। बस मेरे नजरिये में वो बेस्टेस्ट हो गया।
ऋषभ एक दम अलहदा है, जो करेगा पागलपन के हद तक करेगा। एक बार यश को शानदार टीटी के लिए स्कूल में शाबाशी मिलते देख इसको धुन चढ़ गया कि शायद पढ़ाई से बेहतर टीटी है, और बस क्लासेज बंक कर उसके समय टीटी टेबल पर लगने लगे। फिर स्कूल के नंबर 1 और 2 यश-ऋषभ हो गए।
मैंने इन्हें स्कूल के अलावा कभी ट्यूशन का ऑप्शन ही नहीं दिया। और इसके वजह के रूप में इनको अपनी पे-स्लीप दिखाता रहा और बजट बताता रहा। मैंने अपने जिंदगी से जाना है कि कमियां जरूरी ही होती है, क्योंकि चैन लेने नहीं देती। हां पिछले कई वर्षों से मेरिटनेशन के ऑनलाइन क्लासेज के लिए रजिस्ट्रेशन जरूर करवा देता था ताकि कुछ जरूरी सब्जेक्टिव if-buts क्लीयर होते रहे। एक और वजह ये थी कि दोनो एक ही क्लास में टेंथ तक थे, तो एक के ही रजिस्ट्रेशन से दोनो का काम हो जाता था। दोनो ने टेंथ का हर्डल पार किया।
बेहद अच्छे नम्बरों से ऋषभ ने ग्यारहवीं में कदम रखा था। पर मेरे दिमाग में ये समझ नहीं आई थी कि JEE इंजीनियरिंग के लिए किसी अच्छे इंस्टीटूट में दाखिला जरूरी है। वो तो साल बीत जाने पर भाग्य चमका जो जनवरी 2019 में स्कूल के फिजिक्स टीचर ने नारायणा इंस्टिट्यूट के टीचर को मेरे घर भेजा और एक वर्ष के फीस में 60% की छूट की पेशकश की।
हम सरकारी बाबू की फितरत है कि डिस्काउंट में कुछ मिले तो दिमाग चौंधियाने लगता है। फिर ये नहीं सोचे कि 40% फीस भी कम नहीं है, बल्कि 60% जो राशि नहीं देनी पड़ी उसने आकर्षित कर लिया। पर इस एडमिशन ने भी मुझमे कोई खास उम्मीद नहीं बनाई थी । हां मैडम के दिमाग मे कुछ ज्यादा चलने लगा, इसने अपनी 15 वर्ष पुरानी नौकरी झटके में छोड़ दी, जबकि बजट के अब लड़खड़ाने की बारी थी। लेकिन वो अडिग रही। अब फुल टाइमर गार्जियन घर में होता था, जबकि दोनो ने पूरी जिंदगी क्रेच में गुजारी थी।
समय बढ़ा, और ऋषभ में बदलाव ऐसा था कि स्टूडेंट लाइफ में मुकेश जितने घण्टे पढ़ता था, उसका तीन गुना वो पढ़ने लगा। पूरी-पूरी रात लगातार की पढ़ाई के उसके बदलाव में हम सबकी उम्मीदें कुछ चमकी। पर जो सिलेबस दो साल का था, उसको एक वर्ष में करना, इतना हल्का भी नहीं था। नारायणा के टीचर ने कहा था - सर आपने गलती की जो पहले एडमिशन नहीं दिलवाया,और मुझे तब लगा शायद अपने तरह वाला स्नातक बेटा ही बना पाऊंगा। हर वीक टेस्ट के मार्क्स SMS आते जो 15-20% होते जो धीरे धीरे बढ़कर 40% तक गए। फिर PTM में इंस्टिट्यूट के टीचर ने चुपके से बताया अगर ये 40% 55+ तक जाए तो खुश हो जाना। JEE एंट्रेंस और 12वीं दोनो ही साथ करना, कम तो नहीं ही था।
जनवरी में JEE Mains का पहला एग्जाम हुआ और लड़के ने छक्का तो नहीं मारा पर जो आया वो उसके माथे को चूमने के लिए उपयुक्त था। एक औसत लड़के ने 97 परसेंटाइल लाकर चकित किया और इस तरह JEE एडवांस के परीक्षा में बैठने के लिए अहर्ता प्राप्त कर ली, पर मेरे अंदर का बेवकुफ बाप इसलिए परेशान होगया क्योंकि पता चला 12वीं में जब 75% मार्क्स होंगे तभी JEE क्लीयर होना कहलाता है। धुकधुकी तो जिंदगी भर की बात है । मेंस के बाद वो एडवांस की तैयारी ज्यादा करता और मैं बस उससे डेली पूछता - 12वीं में 75% आ जाएंगे न।
खैर, JEE Mains का दूसरा ऑप्शन और Advance का exam date तो अब ऐसे बढते जा रहा है कि पता ही नहीं चल रहा कि भविष्य में क्या छिपा है।
कल जब 12वीं का रिजल्ट निकालने के क्रम में CBSE की वेबसाइट क्रेश हो रही थी, तो सांसे मेरी थम जा रही थी। अंततः घण्टों भर बाद जब रिजल्ट निकला तो मैंने सबसे पहले जोड़कर देखा कि 75% तो है न।
अत्यधिक समय विज्ञान और गणित में इन्वॉल्व रहने के कारण और 12वीं में 5th सब्जेक्ट अर्थशास्त्र से फिजिकल एडुकेशन करने के वजह से इनमें ही कम आ गए पर विज्ञान जिंदाबाद ने ऐसा नारा लगाया कि स्कूल के पहली पंक्ति का छात्र ही रहा। फिजिक्स केमिस्ट्री टॉपर इन स्कूल।
अभी भी अनेक तरह की दिक्कतें हैं, अब तक पता नहीं कि कब एडवांस का एग्जाम होगा, कौन सा इंजीनियरिंग कॉलेज मिलेगा, कैसे क्या करना है, पर खुशियां इन कठिन वजहों के बीच से मुस्कुरा रही है।
आप सबका स्नेह जरूर मुस्कुराहट से भरे होंठ को लंबी करेगा । .... है न।।
~मुकेश~
(तस्वीर 12वीं के अंतिम परीक्षा के बाद वाले दिन की है, जब वो अकेले पहली बार अपने दोस्त के साथ घूमने गया)
Monday, May 18, 2020
मदर्स डे पर पिता को बधाई !
Friday, March 27, 2020
जिंदगी, कोरोना के भय में
देर अंधेरी रात, जब हवाएं भी बह-बहा कर ठंडी होने लगी थी, प्रेम और जिंदगी के मिक्स वेज जैसे सपनों के साथ एक गहरी नींद ले चुका था, कि सपने में ही किसी रोमांटिसिज्म से भरी कविता को सुनते हुए ऐसे लगा जैसे किसी ने कहा - सुनो! और बस अंधेरे में टुकुर टुकुर ताकने लगे 😊 । अब आँखों ने भी हड़ताल घोषित करते हुए कहा - नहीं सोना तो नहीं सोना, जो करना है कर लो। 😊
सपनो में खुश रहना हो तो मुझ से मिलें ;)
वर्ना सफलता के मन्त्र वाचने वाले अनगिनत मिलेंगे :P
नींद कोसो दूर जाकर ठिठकते हुए बाय कर रही थी, हल्की-हल्की ठंड, कहीं दूर से कुत्ते के कुंकने की आवाज़, पुलिस के सायरन और फिर एक-दो कार की बेवजह की आवाजें, इत्ती रात को भी कहाँ चैन मिलता है किसी को | 😊
साला इन सबके बीच सोच की बत्ती भी भक्क से बुझ जाती है और फिर अंदर-बाहर हर तरफ अंधेरा ही अंधेरा ! लग रहा था जैसे ब्लैक होल की यात्रा पर कोई अन्तरिक्ष यात्री आया हो । मन कहता है - क्या करें क्या न करें कि ऐसी मुश्किल हाय, कोई तो बताये इसका हल हो मेरे भाय 😊
ऐसे में, अपने घर में ही चोरों की तरह उठो, किचेन का दरवाजा हौले से खोल कर काफी मग मे भर कर काली चाय बनाई जाय (आखिर कौन दूध ढूँढे), गैस लायटर की पिट की आवाज भी ऐसे लगी जैसे अंजू को बता रही हो, देखो भाभी साहब चुपके से चाय बना रहे :) । दरवाजे की खटक ऐसी लगी जैसे सच्ची में वो ही निहारी, चिंहुकते हुए फिर धीरे से बालकनी में आकार चाय के सिप के साथ दूर दिख रही सप्त ऋषि तारे के समूह को निहारा रहा था तो.....? पर बालकनी पहुंचने के समय फिर से दिमाग ने कोरोना की ओर गुलाटी मारी और चुपचाप लौट आये 😊
चाय सुड़कते हुए फिर स्कूल/कॉलेज के सात लम्पट और प्यारे दोस्त याद आ गए!! साले कितने कमीने थे, और मैं ........... महा................ :D :) :P मर खप गए होंगे साले :) और क्या, जब याद नहीं करते तो गालियाँ ही देनी होंगी !
गर बचे हुए होंगे, तो पुलिस प्रशासन से निवेदन है कि मेरे ये कमीने दोस्त कहीं दिखें तो 4 की जगह 6 लठ मारना और घर पहुंचा देना ! क्यूंकि जान है तो जहान है व मेरे दोस्त मुझे बहुत प्यारे हैं 🥰 ... है न !!!
हल्की मुस्कुराह्ते सहेजे, छत की ओर गया, तो वहां गमलों के पेड़ों के बीच लगा कोई हाई लेवल मीटिंग चल रही हो, और मैंने वहां पहुँच कर उनके तारतम्य को तोड़ा था ! सुबह कौन सी कली खिलखिलाएगी, कौन सा पत्ता चटख हरे रंग में लहराएगा, हवाओं में कितना स्नेह घोला जाएगा आदि आदि।
महसूस हुआ जैसे करोटन के पौधे ने कहा हो - अच्छा मुक्कू बाबू अकेले अकेले चाय, हमें तो बस सड़ी हुई चाय पत्तियां डाल जाते ही, खूब मजे हैं आपके तो ....... !! अंधेरे में गेंदे/डालियां के मुस्काते फूल भी बस मटकियां मारने लगे। 😊
हमें भी लगा, चलो इसके साथ ही बतियाएं, कुछ मैं कहूँ कुछ वो कहे | कलरफुल करोटन के साथ रंगीन गलाब में रंग बिरंगी फ्रॉक पहने वो ही तो नहीं जो छमक कर बस मेरी खिंचाई में लग गयी हो । होगी जरूर वही होगी, उसका हमें शब्दों से पटकने की अदा भी तो दिल गुलाबी करने वाली ही होती थी।
अंततः पौधों का सान्निध्य ऐसा जैसे लाल दुपट्टा हो मल मल का या हरा आँचल दूर तक फैलाये मुस्कुराहट या फिर साथ में मेरा खडूसपन ............सबके साथ कुछ घंटे बीत चुके थे और चाय भी उदरस्थ हो चुका था, फिर से काली रेटिना पलकों के अंदर से बोली, चलो यार कुछ देर खवाबों की दुनिया में चलें ..........! भोर निकलने ही वाली है :)
किसी ने कहा कुछ लोग सफलता के सपने देखते हैं जबकि अन्य व्यक्ति जागते हैं, कड़ी मेह्नत करते हैं :)
मुझे या तो नींद गहरी आती है तो सपने में अकादमी पुरस्कार ले चुका होता हूँ या फिर नींद नहीं आती तो बस ऐसे ही बात जोहते हुए हुए बतियाता हूँ, कॉफी/चाय के सिप लेता हूँ और तो और चांद सितारे निहारते हुए अपने लिए आसमान का टुकड़ा भी रजिस्ट्री करवा लेता हूँ, ताकि मरने के बाद किसी खास जगह से टिमटिमाते हुए सबपर नजर रखूं 😊
तो बेशक मर जाऊं, मुझे मरने से पहले वाला कुछ घण्टा सबसे अधिक परेशान करता है। इसलिये जीने की ही कोशिश करते हैं। आप लोग भी जीने की जिजीविषा को समेटे रहना। ...है न!! 😊
दुआएँ !💐
~मुकेश!~
Friday, March 6, 2020
लाल फ्रॉक वाली लड़की की समीक्षा - बबली सिन्हा
"लाल फ्राक वाली लड़की" ( पुस्तक)
लेखक- मुकेश कुमार सिन्हा
हां ! यही नाम है प्रेम के हर उस एहसास का जिसे कहीं न कहीं अपने उम्र के दौर में कुछ पल के लिए ही सही पर जीते हम सभी हैं
जी हाँ ! कुछ ऐसी ही है लाल "फ्राक वाली लड़की" नादान मन की भोली ख्वाइश कच्चे पक्के जज्बातों की गठरी जिसकी गिरह पन्ना दर पन्ना जैसे जैसे खुलता है, मन का सुकून एकबार फिर से बीते पलों को जीता चला जाता है
वाकई ! साहित्यिक क्षेत्र में अपने बेहतरीन कविताओं के बल पे एक नई सख्सियत पहचान बनाने वाले मुकेश कुमार सिन्हा जी जिन्हें साहित्य के क्षेत्र में शायद ही कोई ऐसा नया होगा जो इन्हें नहीं जानता होगा, इनकी पहली पुस्तक" हमिंग बर्ड"
मानवीय संवेदनाओं की खुली किताब बनकर हम पाठकों के सामने आई, जिसे पढ़कर मन ही नहीं बल्कि आत्मा भी भावनाओं से भर उठी,और जिसे जितनी बार भी पढ़ो हर बार उतनी ही मार्मिकता के एहसास जीवंत कर देती है
इसे पढ़ते हुए पाठक कभी रोता है तो कभी हँस भी पड़ता है, कविता के शब्द-शब्द मानो पाठकों को अंत तक भावनाओं के जरिए अपने में बाँधे रखता है, यही "हमिंग बर्ड" की सफलता का राज है जो हर पाठक की जुवां पे आज भी मचलता है
कुछ ऐसी ही "लाल फ्राक वाली लड़की"
जाड़े की गुनगुनी धूप सी छोटी-छोटी लघु प्रेम कथाओं में वर्णित सुर्ख लाल गुलाबी रंगत लिए प्रेम की सुनहरी चंचल कथाएं❤
सच, इसे पढ़ना शुरू करना अपने हांथ में है पर छोड़ना अपने बस में नहीं ज्यो-ज्यो आप कहानी का आनन्द लेते है त्यों-त्यों और आगे और आगे... पढ़ने की लालसा बढ़ती चली जाती है, पाठकों का यही उतावलावन लेखक को पूर्ण करता है
"लाल फ्राक वाली लड़की" (पुस्तक) इसका तत्कालीन उदारण है, हाल ही में "अंतराष्ट्रीय पुस्तक मेला" में विमोचन के पहले ही दिन इसकी हजारों प्रतियां पाठकों के नाम हुई, एक प्रति मेरी भी और उस पल की प्रत्यक्षदर्शी भी।
जी हां हर उम्र, हर वर्ग के लिए एक साफ-सुथरी बिल्कुल शाकाहारी टाइप पुस्तक जिसे आसानी से हजम किया जा सकता,आप भी पढ़िए यकीन है होठो पे एक खास मुस्कुराहट जरूर बिखर जाएगी....हाँ दोस्तों, आज की भागदौड़ भरी जिंदगी में हर कोई यही तो तलाशता है एक छोटी सी हंसी
तो बस ! आपकी तलाश पूरी करेगी "लाल फ्राक वाली लड़की"💕
मेरे और मेरे तमाम फेसबुक मित्रों की ओर से एक खास कलाकृति के रचनाकार आदरणीय मुकेश कुमार सिन्हा जी को ढेरों बधाई शुभकामनाएं💐💐
- बबली सिन्हा