कविता संग्रह "हमिंग बर्ड"

Tuesday, October 27, 2015

हमिंग बर्ड की समीक्षा: अलका शर्मा के शब्दों में


अलका शर्मा जी 

मुकेश कुमार सिन्हा का कविता संग्रह हमिंग बर्ड एक आम इंसान केमन की पीडा,कसक और विद्रोह की प्रभावशाली अभि व्यक्ति है।समाज में घटितविसंगतियों पर इंसान की महत्वाकांक्षाओं पर,अपने चारों तरफ घटित घटनाओं पर पैनी नजर और कभीअपनी ही अनदेखी पर विक्षोभ होना लगता है कि जैसे हमिंग बर्ड सुदूर आकाश मेंउडान भरती हुई जीवन की हर छोटी बडी घटना पर उद्वेलित हा कवि के ह्रदय को आलोडित कर मजबूर कर देती है कि वो कभी डस्टबिन तो कभी 'जूते के ले स' 'अभिजात स्त्रियाँ' और कभी अपनी प्रेयसी पर कुछ कहने को आतुर दिखता है। इंसान की रोजमर्रा की जिंदगी का एक एक पल जैसे मुकेश जी ने साकार प्र.स्तुत कर दिया है। सबसे बडी विशेषता उनकीआम बोलचाल की भाषा है जिसमें अंग्रेजी केशब्दों को भीबहुत सहजता व सरलता से प्रयोग किया है और भाषा कोबहती नदी सा सहज प्रवाह दिया है।
साधिकार तथा प्रभावशाली भावामिव्यक्ति के बावजूद कवि द्वारा स्वयं कहना कि 'मैं कवि नहीं हूँ'उनके'पांच मिलीग्रामछुटकू'से मन की विशालता ही सिद्ध करता है।मे री शुभकामना है कि हमिंग बर्ड जन जन तक पहुंचकर मुकेश जी को सर्वप्रिय बनाने में सहायक हो।
हमिंग बर्ड
भरे ऊंची उडान
जग में नाम।

लोकायत के संपादक बलराम सर 



Thursday, October 15, 2015

प्रतिलिपि कविता सम्मान 2015




प्रतिलिपि कविता सम्मान 2015 के अंतर्गत चयनित मेरी दो कविता "पहला प्रेम" और "मैं कवि नहीं हूँ" के शीर्षक से, उनके साईट पर पोस्ट हुई हैं जिनको आपका प्यार, लाइक और कमेंट की अत्यधिक जरुरत है !! मैं ही विजयी रहूँ, ये तो सोच भी नहीं सकता, क्योंकि मेरे अलावा और सबों की कवितायेँ विशिष्ट हैं, फिर भी मित्रतावस बस इत्ती सी उम्मीद की लाइक और कमेंट करें !! अगर पोस्ट शेयर कर वाइरल करने में सहयोग करते हैं तो आपका प्यार हर समय याद रखूँगा .............. अग्रिम शुक्रिया ....


लिंक ये रहा...:


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कर भी दीजिये


(बधाई नहीं , सहायता चाहिए )

Thursday, October 8, 2015

प्रवेश सोनी के शब्दों में हमिंग बर्ड



दैनिक जागरण में हमिंग बर्ड  से छपी खबर

पुस्तक मेले दिल्ली से फेसबुक मित्र मुकेश कुमार सिन्हा की किताब "हमिंग बर्ड " खरीदी कविता संग्रह है बहुत साधारण और सरल भाषा में लिखी जीवन की विसंगतिया ,संघर्षमय मानवीय आह्सासो का चित्रण हैदिल्ली शहर की भागती दोड़ती जीवन शेली से ना जाने कितने विषय उठाकर उन्हें संवेदनाओ के रंग में रचा है रिश्तों के बहुरूप उकेरे है मन की कोमल भावनाओ से उन्हें सजाया भी है |कुछ उदास कविताये भी लिखने की कोशिश की मगर जीवन की सकारात्मकता को सहज कर उसमे भी हास्य का पुट दिया |

मुझे मुकेश के लेखन की एक बात अच्छी लगती है की वो विषय कोई भी साधारण चुने लेकिन उसमे जो सन्देश देते है वो मन में दबी संवेदनाओ की परत को छू लेता है |

शुभकामनाये Mukesh Kumar Sinha ...आपका लेखन नित्य निखरता रहे !


माला सिंह जी के हाथों में हमिंग बर्ड