कविता संग्रह "हमिंग बर्ड"

Friday, January 22, 2016

कविताएँ ” विषय – विज्ञान और कविता ” : मुकेश कुमार सिन्हा

मेरी  कुछ  ऐसी कवितायेँ  जिनमे प्रेम व विज्ञान  का  थोडा मोड़ा  घालमेल  है, उनको  चुन  कर  International News & Views . Com (लिंक पर क्लिक करें) पर Sonali Bose​ के सौजन्य से पोस्ट किया गया है  !!

मेरी छोटी  सी  विनती. और  आमंत्रण वहां  आने  के  लिए !!
http://bit.ly/1P9IovY (इसको पॉप अप विंडो में पेस्ट कर ओपन कर सकते हैं )
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सुनो !!  आकर कमेन्ट भी करना :)


हिन्द युग्म के काउंटर पर  विश्व पुस्तक मेले में दीदी समता सहाय और .... 

Tuesday, January 19, 2016

गूँज के बैनर तले पुस्तक मेले में कवि गोष्ठी



कल का दिन था हम नवोदितों का दिन
हम टूटी फूटी कविता लिखने वालों के लिए एक अहम् दिन

बस एक बात कह सकते हैं जो सबसे बेहतरीन रही - "गूँज" के नए-पुराने कवियों (कवि न कहो तो भी चलेगा) को सुनने के लिए बड़ी संख्या में लोग उपस्थित थे,  सारी कुर्सियां ही नहीं भरी थी,  दूर तक लोग खड़े रहकर अंत तक रुके रहे !!

हर प्रतिभागी खुश था,  क्योंकि उनके लिए विश्व पुस्तक मेले के लेखक मंच पर शिरकत करना सपने सा है,  तो इस वजह से चारों और सिर्फ खुशियाँ थी !

कैसी भी कवितायेँ रही हो, तालियों की गडगडाहट बता रही थी,  हमारा दिन आने वाला है !! रद्दी सञ्चालन के बावजूद सभी अपने सराह रहे थे !! और यही सबसे बड़ी वजह थी की हम कह सकते हैं हमारे 'गूँज'  का कार्यक्रम सफल रहा !!

कार्यक्रम की शुरुआत एक झटके से भरी रही,  Laxmi Shankar Bajpai​ सर अपने अकस्मात निजी कारणों के वजह से आकर चले गए !! पर, Lalitya Lalit​ भैया का सहयोग जाने माने वरिष्ठ व्यंग्यकार और अट्टहास के संपादक Anup Srivastava​,  वरिष्ठ गीतकार और कवियत्री रमा सिंह और कैलिफोर्निया से पधारी हमारी प्रिय Manju Mishra​ दी ने मंच को अपने उपस्थिति से चमकाया !!

तत्पश्चात, लखनऊ से आये Nivedita Srivastava​ (दी) और Amit Kumar Srivastava​ की Shailesh Bharatwasi​ के हिन्दयुग्म से प्रकाशित संयुक्त कविता संग्रह "कुछ खवाब, कुछ खवाइशें" का लोकार्पण हुआ !! और उन दोनों ने अपनी कवितायेँ सुनाई !!

फिर उसके बाद तो सबने अपने कविताओं से समाँ बाँध दिया !!

कैलिफोर्निया से मंजू मिश्रा,  लखनऊ से आई Abha Khare,  मध्य प्रदेश के वारासिवनी से Priti Surana​, अहमदाबाद से प्रीति 'अज्ञात'​, मुजफ्फरपुर से Abhijeet​, हाजीपुर से Amit Ambashtha​, मूलतः मैथली में लिखने वाले पति-पत्नी द्वय जो हैदराबाद से पहुंचे थे Manoj Shandilya​ व Sharda Jha​, कानपुर से आई Abha Dwivedi​, गुडगाँव से Anshu Tripathi​, दिल्ली से Abha Chaudhery​, Neelima Sharrma​, Pawan Arora​, Tej Pratap​, Bharti Singh​, धीरज मिश्र और दो-तीन लोगो ने अपनी दो-तीन कवितायेँ सुनायी | चूँकि सबकी कवितायेँ अलग अलग तेवर और रंग थी, इसलिए पूरा प्रोग्राम कभी भी बोरियत भरा नहीं लगा, ऐसा लोगो का मानना है !

मित्र  Anju Choudhary​ अपने  निजी  व्यस्तता से, पटना से Kumar Rajat ऑफिस से छुट्टी न मिल पाने के वजह से, ऋषिकेश से Maneesh Kothari​ दुर्घटना में घायल हो जाने के वजह , नीलू पटनी अपने बिमारी के वजह से,   मित्र Aparna Anekvarna​ अपने निजी कारणों से व भिलाई से पुस्तक मेले  में आ चुकी Abha Dubey​ भी किसी खास वजह से मंच तक नहीं पहुँच पाए,  हमें इसका मलाल रहेगा !!

एक बात  और  नहीं  भुला  जा  सकता  कि मेरी  पत्नी Anju Sahai हर  समय  एक्टिवली साथ रही  ! :)
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तो शुक्रिया सभी अभिन्न मित्रों का जो आये,  जो नहीं आ पाए,  जिन्होंने शुभकामनायें दी,  जिन्होंने पीछे से कसीदे पढ़े, जिन्होंने खूब मजाक बनाया  !!

उम्मीद रखेंगे, हमारा कारवां बढेगा,  हम रचेंगे, हम सार्थक रचेंगे और साथ मिल कर आगे बढ़ेंगे !! :) :)


Wednesday, January 6, 2016

डॉ. नितिन सेठी के शब्दों में हमिंग बर्ड.

हमिंग बर्ड : कविता की मनमोहक गुनगुनाहट

मुकेश कुमार सिन्हा का कविता संग्रह ‘हमिंग बर्ड’ उनकी कुल 110 कविताओं का संग्रह है | ये कवितायेँ विभिन्न पत्र पत्रिकाओं में यथा समय स्थान पाती रही है | ह्रदय के उदगार जब शब्दचित होते हैं तो काव्य का रूप ले लेते हैं | बाले ही वह काव्य छंदबद्ध हो  या  छंदमुक्त | ‘अज्ञये’ ने लिखा है कि कविता ही कवि का परम वक्तव्य है | भावों का ऐसा ही सरस अनुगुंजन ‘हमिंग बर्ड’ में हमें सुनाई देता है | पहली कविता शीर्षक कविता ही है | कवि ने एक सुन्दर कल्पना का शब्दीकरण यहाँ किया है | कवि अपनी ही धुन में बैठा है, हमिंग बर्ड के सपनों में | तभी उसकी तन्द्रा भंग होती है और कवि भविष्य के मार्ग पर अपनी कविता को छोड़ देता है –
फिर कभी लिख लेंगे कविता / मुझे लिखनी है ऐसी ही
बहुत-सी बेवजह की कविता / जिंदगी के हर रूप की कविता

‘प्यार, प्यार और प्यार’ में कवि का रोमांटिक भाव कदाचित दार्शनिकता के पुट में रंग गया है –
किया नहीं जाता प्यार/सिर्फ जिया जाता है प्यार
किसी के नाम के साथ / किसी के नाम के खातिर

जीवन की यात्रा में सुख-दुःख, हर्ष-विषाद सभी की समान आवश्यकता है | ‘कैनवस’ में यही भाव है| ‘ये दिल्ली है मेरी जान’ में महानगरीय विस्तार व जीवन संकुचन की दशाएं दर्शायी गयी है | कवि कहता है –
ये दिल्ली है मेरी जान / कहने को है ‘दिल वालों की दिल्ली’
लेकिन सब चुप रहते हैं / जब हादसे में रूकती है / किसी की धड़कन

महंगाई की समस्या ने मध्यमवर्गीय व्यक्ति का जीना मुश्किल कर रखा है, ‘महीने की पहली तारीख’ आदमी को कब ‘ठन ठन गोपाल’ कार जाती है, देखिये
बदलती है तो जरूरते, बदलती है तो फरमाइश
बदलती है तो एक और नए महीने की पहली तारीख

कवि की कल्पना शक्ति को दर्शाती अनेक सुन्दर कवितायेँ हैं जिनमें ‘समय’, ‘सब बदल गया न’, पगडण्डी, ‘अभिजात स्त्रियाँ’, ‘उदास कविता’ आदि मुख्य है| ‘उदास कविता’ में कवि उदासी की परिकल्पना करता है, फिर स्वयं ही प्रश्न करता है –
क्या जरुरी है उदास होना
एक उदास कविता के सृजन हेतु ...

आत्मानुभूति भी यहाँ अपने चरम पर दिखाई देती है | कवि ने अपने हिस्सा का आसमान ‘एक टुकड़ा आसमान’ में देखा है –
आज खवाबों में, शायद कल होगा इरादों में
और फिर वजूद होता मेरा मेरे हिस्से का आसमान
आत्मानुभूति (या सेल्फ रियलआइजेशन) ‘मैं कवि नहीं हूँ’ में भी प्रकट हुआ है -
अंततः धड़कती साँसों व लरजते अहसासों के साथ
करता हूँ में घोषणा मैं कवि नहीं हूँ

वस्तुतः कवि इस ‘आत्मानुभूति’ के तत्वा को एक अस्त्र के रूप में प्रयुक्त करता है | ऐसा ही एक तत्व ‘प्रेमानुभूति’ भी है जो अनेक कविताओं का मूल उत्स है | ‘मैंन विल बी मैंन’ में प्रेम की अबुभुतियाँ प्रतिपल कवि पर छाई जाती है, वह स्वयं स्वीकारोक्ति की दशा में कह उठता है –
मैंन विल बी मैंन, जानते हो न / नहीं याद करता तुम्हे
याद तो उन्हें करते हैं, जो नहीं होते साथ
तुम तो हो हरदम साथ / मेरे अहसासों में साथ-साथ

‘ज्ञान-विज्ञानं-स्वाभिमान’ कविता एक प्रेरणापुंज है| कवि जीवन में तीनों ही तत्वों की साम्यावस्था पर बल देता है –
 ज्ञान-विज्ञानं-स्वाभिमान / अगर है उनसे जुडाव
तो उठो ! बैठो !! जागो !!!
ज्योतिर्मय बनो !

कवि ने प्रकारांतर से उपनिषद के अमृत बचनो को हमारे समक्ष ला रखा है | ‘अजीब सी लड़कियां’ नारी जाति की दैहिक पीड़ा का दस्तावेज है|

एक विशिष्ट कविता ‘डस्टबिन’ भी है, आज की कविता व कवि – दोनों की यह विशेषता है कि इनमें दैनिक जीवन के स्वर सुनाई देते हैं | कवि ने डस्टबिन और स्वयं की सार्थक तुलना की है | कवि की नजर में डस्टबिन कहीं अधिक अच्छी व उपयोगी वस्तु है –
साफ़ हो जाता है डस्टबिन / एक फिक्स आवर्ती समय पर /
पर मेरे अन्दर के दुर्गुण की लेयर्स सहेजें हुए परत दर परत
हो रहा संग्रहित !

‘कोख से बेटी की पुकार’ एक मार्मिक कथ्य है | एक अजन्मी बेटी कैसे अपनी माँ से प्रश्न कर रही है –
मम्मा !! तुम स्वयं बेटी हो / हम जैसी हो
तो क्यों न / बेटी की माँ बनकर देखो

समय का चक्र कब व्यक्ति को जिम्मेदारियों व व्यस्तताओं की उठापटक  में बाँध देता है, इसकी अभिव्यक्ति ‘खुली आँखों से देखा सपना’ में मिलती है “ अतं में कवि को मलाल है –
उफ़ ! खुली आँखों से देखा था जो सपना
जो था सुहाना / पर सब हुआ बेगाना !

एक मार्मिक कहानी लिखती कविता है – मैया | चाहे अभिव्यक्ति के स्तर पर हो या भावों के स्तर पर या संप्रेषणीयता की कसौटी पर, ‘मैया’ कविता कदाचित संग्रह की सबसे सुन्दर व छूने वाली कविता है | एक बच्चा अपने बड़े होने की कथा को सूत्र रूप में यहाँ लिखता है | पंक्तियों की मार्मिकता देखिये –
मैया अब तू नहीं है पर मैं सच्ची में बड़ा हो गया
मेरा मन कहता है
एक बार तू मेरे गोद में सर रख के देख
एक बार मेरी बच्ची बन कर देख !

जहाँ तक भाषा – शैली की बात है, कवि ने पूरी पुस्तक में सामान्य बोलचाल के ही शब्दों को काव्यपंक्तियों में पिरोया है | अनके शीर्षकों में अंग्रेजी के शब्दों का प्रयोग है | परन्तु ये प्रयोग कविता की सौंदर्यधर्मिता को बढाते ही है | आज के तकनिकी युग में इन शब्दों का प्रचुर प्रयोग कवी की भाषा के साथ इमानदारी ही दर्शाता है| अधिकाँश कविताओं का बौधिक स्तर उच्च है | भले ही कवितायेँ अतुकांत है परन्तु आंतरिक नाद-सौंदर्य एक नवीन आकर्षण उत्पन्न कर रहा है | लक्षणा शब्दशक्ति कवि को आधिक प्रिय है | मुहावरेदार भाषा का प्रयोग कविताओं की सुन्दरता बढ़ा रहा है | उर्दू के शब्दों का प्रयोग भी कवी ने अधिकारपूर्वक किया है| ‘हमिंग बर्ड’ की अधिकांश कवितायेँ चित्रात्मकता का गुण भी रखती है | अनुप्रास व उप्माहों का प्रयोग सार्थकता से किया गया है | विचार कहीं से भी बोझिल व उलझे हुए से नहीं लगते हैं | यही कवि की सबसे बड़ी जीत कही जा सकती है | आकर्षक आवरण पृष्ठ पुस्तक की शोभा में चार चाँद लगाता है | अत्यंत आकर्षक छपाई संग्रह को सुन्दर सहेजनीय बनाती है | कवि मुकेश कुमार सिन्हा की भविष्य में ऐसे ही अत्यंत सुन्दर व सार्थक कृतियों की प्रतीक्षा रहेगी !!

पुस्तक: हमिंग बर्ड
कवि: मुकेश कुमार सिन्हा
प्रकाशक: हिन्दयुग्म, दिल्ली
मूल्य : 100/-
पृष्ठ: 112

(डॉ. नितिन सेठी)
शाहदाना कॉलोनी, मॉडल टाउन, बरेली
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एक अनजाने पाठक डॉ. नितिन सेठी के द्वारा भेजा गया रजिस्टर्ड पत्र, मुझ जैसे रचनाकार के लिए कितना बड़ा उपहार है, ये मैं ही समझ सकता हूँ !!
एक व्यक्ति जो कहीं भी मुझसे नहीं जुडा फिर भी किताब मंगवाता है, और फिर इतना विस्तृत समीक्षा कर के भेजता है, मुझे टॉप ऑफ़ द वर्ल्ड पहुंचा गया !!
शुक्रिया दोस्त !! शुक्रिया नितिन सेठी जी !!