कविता संग्रह "हमिंग बर्ड"

Monday, December 22, 2014

मनीषा जैन के शब्दों में हमिंग बर्ड

चंद्रकांत देवताले जी के साथ मैं और हमिंग बर्ड 

मित्रों, आज मैं अपने भैया मुकेश कुमार सिन्हा के काव्य संग्रह "हमिंग बर्ड" पर अपने विचार व्यक्त करना चाहूँगी।
किताब हाथ में आते ही सबसे पहले मुकेश जी के ऑटोग्राफ से परिचय हुआ। मन खुश हो गया। पहले ही पृष्ठ पर सुन्दर लिखावट में ऑटोग्राफ कवि की सुगढ़ता व स्थायित्व का परिचय देता है और फिर हमिंग बर्ड के चहकने यानि कविताओं के पढ़ने का दौर शुरू हुआ और मैंने पाया कि काव्य संग्रह में जीवन जीने का सलीका है, एक संवेदना है जीवन के प्रति और जीवन के उतार चढ़ाव का आख्यान है। सुख दुख तो हम सब के जीवन में आते जाते रहते हैं लेकिन इस कवि की कविताओं में रोजाना के जीवन जीने की सलाहयित है। रोजाना के भावो की अभिव्यक्ति है, संवेदना है, संप्रेषणीयता है। जो कि कविता का एक बड़ा गुण माना जाता है। न भूतकाल न भविष्य सिर्फ वर्तमान की बात, जिसमें हम जी रहे है, उसी में खुश व आशावादी बने रहना ही इन कविताओ का संदेश है। एक कविता-"तब मुझे आया समझ/ जब तक दुख न होगा/ दर्द न होगा/ नहीं भोग पाएँगे सुख/ अहसास न हो पाएगा खुशी का।"
काव्य संग्रह की एक कविता "मकान" में एक स्त्री के पूरे जीवन को समेटा गया है। एक स्त्री की आशायें, आकांक्षाये, परिवार ही तो होता है सब कुछ। यही सब कुछ इकट्ठा होने से बनता है मकान एक घर। बेहद संवेदनशील कविता। समकालीन जीवन के लगभग सभी विषय इस संगृह में समाये हुए है। इन कविताओ में बहन भाई का प्यार है ,जीवन का यथार्थ है, संवेदनहीन समाज के दृश्य हैं। एक कविता "लाइफ इन मेट्रो" में असंवेदनशील समाज का विद्रूप चेहरा दिखाई देता है। आज के कठिन दौर मे ये कविताऐ कुछ देर के लिए चैन की साँस देती है। कि भैय्या कुछ देर कविताऐ पढ़ो और कुछ देर जी लो। और इन कविताओं से गुजरते हुए मैंने पाया कि ये सीधे साधे अंदाज में बहुत कुछ कह जाती हैं और हमे सीखा जाती हैं कि जीवन में सरलता ही सब कुछ है व्यक्ति का जीवन जितना सरल होगा उसका जीवन उतना ही आसान होगा। संग्रह की एक कविता "अजीब सी लड़कियाँ" सबसे ज्यादा चिन्हित करने योग्य है। इसी उम्मीद के साथ, इस कविता की कुछ पंक्तियो के साथ, कि इस काव्य संग्रह का साहित्य जगत में उचित सम्मान किया जायेगा-
"काश! हर लड़की जन्म के बाद हो सिर्फ
एक लड़की, एक इंसान
अजीब सी लड़की तो कत्तई नहीं!
पर क्या ये संभव है, इस दुनिया में।" (पृष्ट97)
~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~
****मनीषा जैन*****

लेखक- मुकेश कुमार सिन्हा
प्रकाशक- हिन्दी युग्म