कविता संग्रह "हमिंग बर्ड"

Monday, December 22, 2014

मनीषा जैन के शब्दों में हमिंग बर्ड

चंद्रकांत देवताले जी के साथ मैं और हमिंग बर्ड 

मित्रों, आज मैं अपने भैया मुकेश कुमार सिन्हा के काव्य संग्रह "हमिंग बर्ड" पर अपने विचार व्यक्त करना चाहूँगी।
किताब हाथ में आते ही सबसे पहले मुकेश जी के ऑटोग्राफ से परिचय हुआ। मन खुश हो गया। पहले ही पृष्ठ पर सुन्दर लिखावट में ऑटोग्राफ कवि की सुगढ़ता व स्थायित्व का परिचय देता है और फिर हमिंग बर्ड के चहकने यानि कविताओं के पढ़ने का दौर शुरू हुआ और मैंने पाया कि काव्य संग्रह में जीवन जीने का सलीका है, एक संवेदना है जीवन के प्रति और जीवन के उतार चढ़ाव का आख्यान है। सुख दुख तो हम सब के जीवन में आते जाते रहते हैं लेकिन इस कवि की कविताओं में रोजाना के जीवन जीने की सलाहयित है। रोजाना के भावो की अभिव्यक्ति है, संवेदना है, संप्रेषणीयता है। जो कि कविता का एक बड़ा गुण माना जाता है। न भूतकाल न भविष्य सिर्फ वर्तमान की बात, जिसमें हम जी रहे है, उसी में खुश व आशावादी बने रहना ही इन कविताओ का संदेश है। एक कविता-"तब मुझे आया समझ/ जब तक दुख न होगा/ दर्द न होगा/ नहीं भोग पाएँगे सुख/ अहसास न हो पाएगा खुशी का।"
काव्य संग्रह की एक कविता "मकान" में एक स्त्री के पूरे जीवन को समेटा गया है। एक स्त्री की आशायें, आकांक्षाये, परिवार ही तो होता है सब कुछ। यही सब कुछ इकट्ठा होने से बनता है मकान एक घर। बेहद संवेदनशील कविता। समकालीन जीवन के लगभग सभी विषय इस संगृह में समाये हुए है। इन कविताओ में बहन भाई का प्यार है ,जीवन का यथार्थ है, संवेदनहीन समाज के दृश्य हैं। एक कविता "लाइफ इन मेट्रो" में असंवेदनशील समाज का विद्रूप चेहरा दिखाई देता है। आज के कठिन दौर मे ये कविताऐ कुछ देर के लिए चैन की साँस देती है। कि भैय्या कुछ देर कविताऐ पढ़ो और कुछ देर जी लो। और इन कविताओं से गुजरते हुए मैंने पाया कि ये सीधे साधे अंदाज में बहुत कुछ कह जाती हैं और हमे सीखा जाती हैं कि जीवन में सरलता ही सब कुछ है व्यक्ति का जीवन जितना सरल होगा उसका जीवन उतना ही आसान होगा। संग्रह की एक कविता "अजीब सी लड़कियाँ" सबसे ज्यादा चिन्हित करने योग्य है। इसी उम्मीद के साथ, इस कविता की कुछ पंक्तियो के साथ, कि इस काव्य संग्रह का साहित्य जगत में उचित सम्मान किया जायेगा-
"काश! हर लड़की जन्म के बाद हो सिर्फ
एक लड़की, एक इंसान
अजीब सी लड़की तो कत्तई नहीं!
पर क्या ये संभव है, इस दुनिया में।" (पृष्ट97)
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****मनीषा जैन*****

लेखक- मुकेश कुमार सिन्हा
प्रकाशक- हिन्दी युग्म

Friday, November 28, 2014

हमिंग बर्ड की समीक्षा: अभिवृत अक्षांश के शब्दों में

शब्द मात्र व्याकरणिक ज्ञान ही नहीं, भाव भी हैं, और भाव तभी जीवंत होते है जब वो समझ में आते हैं, और समझ में तभी आते है जब वो सरल होते है ...
मुकेश जी का काव्यसंग्रह ' हमिंग बर्ड ' 70 सहज कविताओं का संकलन है ..अलग - अलग विषय पर, अलग अलग परिद्रश्य में , अलग अलग भाव लेकर लिखी गई कवितायेँ ...पर एक बात है जो आपस में सबको बांधती है ..वह है मुकेश जी की रचनाओं की सरलता ....
हमिंग बर्ड की सरलता ही उसकी सार्थकता है ...
मुकेश जी को बहुत बहुत बधाई एवं उज्जवल साहित्यिक जीवन के लिए अग्रिम शुभकामनाएं
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अभिवृत | कर्णावती | गुजरात

फेसबुक पर एक मित्र के बेटे के साथ, हमिंग बर्ड 

Thursday, November 13, 2014

हमिंग बर्ड की समीक्षा - प्रीती जैन अज्ञात के शब्दों में !

'हमिंग बर्ड', ये नाम सुनते ही आँखों के सामने एक सुनहरी, नीली-हरी सी चिड़िया फुदकने लगती है. जो दूर आसमान को छूना चाहती है, अपनी हदों का भी खूब अंदाज़ा है, इसे.....कभी इस डाल तो कभी उस डाल पे, जहाँ जी चाहा, फुदक ली ! ठीक ऐसी ही हैं, इस 'काव्य-संग्रह' की कविताएँ. आम आदमी के जीवन से जुड़ी हुई, ज़िंदगी के हर रंग को छूती हुई, इसमें रिश्तें हैं, जीवन है, एक नौकरीपेशा इंसान की सीमित क्षमताएँ हैं, थोड़ी आकांक्षाएँ हैं. सपने भी हैं और आश्वासन भी, कहीं मन हताश हो उठता है तो कभी खुद ही अपने को दिलासा देता नज़र आता है. यहाँ सपने टूटने का ग़म नहीं, निराशा दूना उत्साह भर देती है और एक उम्मीद जगाती है, जो पूरे विश्वास के साथ, सफलता की ओर धीरे-धीरे कदम बढ़ाती है ! यहाँ प्रेम है, पर देवदास-सा ग़म नहीं, दिल उदास है, पर आँखें नम नहीं !
सकारात्मक कविताएँ ही, इस 'काव्य-संग्रह' की सबसे बड़ी खूबी है. इसमें हर कविता की खुशी, अपनी-सी लगती है और हर दुख भी कभी-न-कभी महसूसा हुआ...लेकिन, मन फूट-फूटकर रोता नहीं, क्योंकि कविताएँ एक अलग ही आशावादी ऊर्जा का संचार करती हैं और पाठक को महसूस होता है कि वो यूँ ही छोटी-छोटी बातों को तूल देता रहा है, 'ज़िंदगी' इतनी भी बुरी नहीं'.
'हमिंग बर्ड' की चहक के साथ पहला पन्ना खुलता है, जो प्यार की पगडंडी को पार कर एक मकान में पहुँचता है, जहाँ आपकी मुलाक़ात एक ४० के ऊपर के इंसान से होती है, जो कभी अपने अंदर के बच्चे का ज़िक्र करता है, कभी प्रेम कविताएँ लिखता है, तो कभी, अपने शहर और परिवार को साथ लेकर चलता हुआ, बीच-बीच में हाथों की लकीरों को चुपके से ताक लिया करता है. डस्टबिन, अख़बार, तकिये, यहाँ तक कि गाँव का पुल भी पार करती है, इस संग्रह की कविताएँ, इनमें मिट्टी की खुश्बू है, अपनापन है और ये चकाचौंध से कोसों दूर सरल, सहज शब्दों के साथ अपना अर्थ बेहद आसानी से स्पष्ट कर देती हैं. अंत मैं ये स्वीकारोक्ति कि 'मैं कवि नहीं हूँ'....इन कविताओं को और भी पठनीय और रोचक बना देती है !
बधाई,  लेखक की पहली उड़ान को.....शुभकामनाएँ, जाकर छू लो आसमान को ! 
- प्रीति 'अज्ञात'


Friday, October 24, 2014

"दिवाली"


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कुछ बीडी वाले पटाखे,  बहुत थोड़ी सी फुलझड़िया, पिस्तौल में लगा कर फोड़ने वाली ......लम्बी सी लत्ती ..........आलू पटाखा जिसको जोर से दीवाल पर मारने से आवाज होती, और सांप की टेबलेट .. बस हमारी दिवाली इतनी ही होती थी !!
पर तैयारी खूब चलती थी............ आखिर पैसे की अहमियत थी :)
घंटो उन पटाखों को सूप (बांस की बनी होती थी) में रख कर धुप में सुखाते थे, और साथ में खुद भी सूखते :) .........

जिस पेड़ से "जुट" निकलता है उसके सूखे तने को संठी कहते हैं, उनको बाँध फिर घर के अन्दर जलती  दिए से जलाते और फिर दरवाजे पर अन्दर / बाहर करते हुए कहते "लक्ष्मी घर, दरिदर बाहर"  बोलते......... और फिर मैया के साथ चलकर सबको बाहर एक जगह जमा कर देते !!

दीदी घर-कुन्ना (घरोंदा) बानाती, छोटे पापा उसकी रंगाई पुताई करते और हमें सिर्फ ईंट विनट लाने का काम मिलता .......... रात में उसके सामने सारी बहने पूजा कर के  मिटटी के छोटे छोटे गोले में भर कर मुढी और बतासा देती :)

सबसे मजेदार बात मिस हुए पटाखे से निकले बारूद को जमा कर के दुसरे दिन उसको जलाने की होती ........... वैसे आज भी जब ऐसा कुछ करते बच्चो को देखने पर, बचपन फटाक से सामने आ जाता है . ......... ऐसा ही कुछ एक बार मैंने अपने मौसी के शादी के दुसरे दिन किया था और पूरा हाथ जल कर गल गया था :( दाहिने हाथ की हड्डियाँ दिखने लगी थी !
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कपडे नए नहीं होते थे, पर पूरी दुनिया साथ थी अपनी, घर के सारे लोग, बड़ा परिवार, मैया बाबा ...... खीर पूरी ............ और दिवाली का चमकता प्यार !!

अब भी पूरी दुनिया साथ होती है, पर दुनिया सिमट गयी
अंजू - यश - रिषभ ...........और मैं !!

चमकती शुभकामनायें ............ आप सबको :) :)

Monday, October 13, 2014

टेलीफोन के रिसीवर और सेट के बीच के तार सी जिंदगी .......... उलझी हुई :)
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साला जब भी जिंदगी को फ़ोन मिलाओ, रिसीवर उलझ कर रह जाता है, ........
सुन रही हो जिंदगी :)



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मेरी एक सामान्य सी सोच ऐसे ही बनी है .....
अगर मर जाओ तो लोग कुछ दिन तो बहुत याद करते हैं न :)
बेशक वो व्यक्ति कैसा भी हो ......... लोग भरे आँखों और लरजते आंसुओं के साथ कहेंगे, ऐसा हीरा व्यक्ति शानदार व्यक्तित्व का स्वामी अब नहीं दिखेगा :)
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काश फेसबुक के प्रोफाइल डी-एक्टिवेशन के तरह कुछ दिनों के लिए मरने का आप्शन होता ....... :)
पर साला मरने के बाद तो आने का आप्शन ही नहीं .......यहीं तो झोल है :)

फिर भी बिना किसी कष्ट का मरने का मन तो करता है :)

हमिंग बर्ड ......... ले चल रे :) :D

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Thursday, September 18, 2014

हमिंग बर्ड

कार्टूनिस्ट काजल भाई  के अनुसार  हमिंग बर्ड के बदले शाउटिंग करने वाली बर्ड होती तो कुछ और बात होती ............. :) :P
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अब उम्मीद तो हमें अपने हम्मिंग बर्ड से ही है ....... देखते हैं, होता है क्या :) , वैसे इन्फिबिम और होम शॉप 18 पर उपलब्ध है ......हमिंग बर्ड !! :)
थैंक्स काजल भाई, मेरे लिए इतना समय देने के लिए :)


Wednesday, September 17, 2014

"हमिंग बर्ड के फ़ाइनल कवर बनने के क्रम में :) "

"हमिंग बर्ड के फ़ाइनल कवर बनने के क्रम में :) "

शैलेश जो मेरे मित्र और मेरे "हमिंग बर्ड" के प्रकाशक हिंदी युग्म के सर्वे सर्वा भी हैं, औरों से कैसे अलग हैं, बस ये दिखाना चाहता हूँ !!

चूँकि मेरी कवितायेँ जो सिर्फ मेरी संवेदना और सोच है, जो साहित्यक रूप से बहुत दमदार नहीं होती, इसलिए मैं चाहता था, उसका नाम और उसका कवर कुछ इतना अलग हो की लोगो को अपने और खिंच पाए !!

मेरे हमिंग बर्ड के  कवर डिजायनर विजेंद्र जी ने जो पहले कवर पेज बनाया (उसको फिर कभी पोस्ट करूँगा) वो थोडा ऑफ बिट था, और मुझे उसमे चमक चाहिए था, इस वजह से नया बनने में समय लग रहा था, शैलेश को लगा, मुझे थोडा गुस्सा आ रहा है, तो बस उन्होंने अपने मित्रता के कारण खुद से ही एक कवर पेज बना दिया ............ और अचरज ये है, की मुझे वो बेहतरीन भी लगा !!

पर, शैलेश ने कहा, नहीं ये तो टाइम पास  है, विजेंद्र जी कल परसों तक नया बना देंगे :)
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आप भी देखिये, कैसे एक बुक के बनने के क्रम में कितनी सारी कठिनाइयां आती है :)

हम जैसे "लल्लू" रचनाकार, ऐसे ही कुछ भी शेयर करेंगे :)

झेलिये !! और हाँ !! 'हमिंग बर्ड' मंगवाना भूलियेगा मत :D



Monday, September 8, 2014

मेरा जन्मदिन

आज मैं 43 वर्ष का हो गया :)
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कल रात नींद नहीं आ रही थीं, खुद के जन्मदिन से जुडी सारी स्मृतियाँ सामने से गुजरती चली जा रही थी :)

मैया से ही सुना था, याद नहीं ... कैसे बचपन में तैयार वैयार कर के खीर से दिन की शुरुआत होती थी :D

फिर कुछ उम्र गुजरी, अब जन्मदिन के दिन सत्यनारायण भगवान् का पाठ होने लगा, पर वो दिन सबसे बेकार था, खुद के जन्मदिन में भूखे रह कर पूजा करना पड़ता था ... :) छिप छिपा कर फिर भी कुछ न कुछ खा ही लेते थे, एक बार पकडे भी गए थे :P, तो फिर मेरे बदले बाबा को पूजा करना पड़ा था :) :D

कुछ दिनों बाद, पूजा के साथ-साथ शाम में हलवा से बने केक को भी काटने लगे :) अब गाँव में और कुछ तो मिलता नहीं था, और न ही सोचते थे की कैसे लाया जाये ...... पर हाँ उन पर मोमबत्तियां पूरी होती थी, यानी जन्मदिन वाले वर्ष से एक अधिक ........ और फिर फूंक :) और हैप्पी बर्थडे :)

फिर मैया कहती सभी बड़ो को पैर छुओ :) , हम भी जरुर पैर छूते, आखिर गिफ्ट में 5 ya 10 रूपये का नोट या फिर एम्प्रो / मिल्क बिकिस बिस्किट मिलता :) दौड़ कर उसको छिपा देते :)

और दिन गुजरे, अब मैया गाँव में होती, और हम मम्मी पापा के साथ शहर में ......... एक आध बार ओरिजिनल वाला केक भी कटा, कुछ कोलेज वाले दोस्त भी आ जाते :)

फिर शादी हुई, अंजू दुनिया में आयी .......... हर बार मेरे सोने का वेट करती है, और फिर चुप चाप से गिट्स के पैकेट से रसगुल्ला बना कर, ठीक 12 बजे उठाने की कोशिश ......... :) एक आध बार हम नहीं सोते हैं, फिर भी सोने का नाटक करते हैं .......... और फिर बर्थडे मन जाता है :) ........... वैसे इस बार रसगुल्ला बनने में समय लग गया .......... और हमें 12.15 बजे हैप्पी बर्थडे का आवाज सुनाई पड़ा :)
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इन सबके साथ एक और बात ख्याल में आया, वो अहम् है ...... :)
मान लो मेरा जन्म नहीं हुआ होता तो, तो क्या हो जाता ......... ऐसा कुछ भी तो नहीं किया अब तक मैंने की मेरे जाने के बाद कोई भी मुझे एक पल को भी याद रखे ....... !!

बस ऐसे ही जिए जा रहें, एक और वर्ष जुड़ गया ........ :)

Tuesday, August 19, 2014

मेरी परवरिश एक वैरी लो मीडियम इनकम ग्रुप के बिहारी संयुक्त ग्रामीण परिवार जिसमे बारह तो हम बच्चे ही थे, में हुई ।

बाबा घर में यूज करने के लिए टूथ पेस्ट के बदले डाबर या बैद्यनाथ का लाल दन्त मंजन लाते थे. उफ़ !! हर सुबह हमारी कोशिश बस ये होती थी, की कैसे भी दांत साफ़ करने से बचा जाया, हाँ याद आया, उस मंजन से दांतों में रगड़ने के लिए ब्रश का उपयोग और पेनफुल था . इतना बाहियात और तीखा होता था वो मंजन की हर दिन लगता जैसे पूरा मुंह छिल गया हो. पर सुबह सुबह बाबा की नजर पुरे बच्चों में सिर्फ मेरे पर ही टिकी रहती थी, मुक्कू ब्रश किया, मुक्कू ब्रश किया, चिल्लाते रहते थे, कभी कभी तो पकड़ कर खुद भी साथ में खड़े हो जाते थे  !! हद है !! हाँ, बाबा शुद्ध हिंदी में बात करते, पर मैया ठेठ आंचलिक भाषा में - मुक्कू !! बाबा के बात काहे न माने हिन्, जो जल्दी से ब्रश कर :), चाय देबो :D (मीठी चाय का लालच हर समय से था)

हाँ स्कीप करने के लिए, एक और साधन था, मैया को प्यार से मना कर, मंजन के बदले नमक में सरसों तेल डाल कर उसको दांत पर रगडा जाए, ये थोडा बहुत सुख कर होता था :)
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एक दिन मैंने मैया को कहा - न मंजन है, न नमक !! बोल दांत में चीनी रगड़ लियो :) :)

हम तो ऐसे ही थे, थोड़े बकलोल टाइप :) :)

Tuesday, August 12, 2014

मन भी कितना उच्छ्रन्खल होता है न, अब देखो न पिछले दो दिन से मेरा मन कहता है काश मैं भी कोई ऐसी शख्सियत होता जिसके शब्द मायने रखते, भेड़-चाल की तरह लोग पीछे पड़े रहते :) , एक शानदार बड़ी फैन फोलोविंग होती :D और मैं ......... इंदिरा गांधी के उस शानदार भाषण.......

‘मैं आज यहां हो सकती हूं, कल नहीं हो सकती हूं.. मुझे चिंता नहीं कि मैं जीवित रहूं या नहीं रहूं। मेरी लम्बी उम्र रही है और मुझे गौरव किसी चीज़ पर है तो इस पर है कि मेरा सारा जीवन सेवा में गया और जब तक मुझमें सांस है तब तक सेवा में ही जाए। जब मेरी जान जाएगी तो मैं कह सकती हूं की एक—एक खून का कतरा जितना मेरा है, वो एक—एक खून का कतरा एक भारत को जीवित करेगा, भारत को मजबूती देगा’।"

............. के तरह मैं भी कुछ कहता, स्वतंत्रता दिवस के पूर्व और फिर किसी दिन मर-वर जाता :)
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खुद को याद करवाने के लिए एक बेहतरीन तरीका है न !!
कोई नहीं, लिखी हुई किताबें/कवितायेँ भी कभी न कभी उस शख्स को जीवित कर देती है ....... !!

लगता है खुद को छपवाए बिना मुझे चैन नहीं मिलेगा :) :) .......... शुभ दिन, हर दिन की तरह एक बार फिर झेलिये :D 

Monday, August 4, 2014

स्कूल - कालेज के दिनों में, कितने थेथर से होते थे दोस्त !!
साले !! चेहरा देख कर व आवाज की लय सुनकर परेशानी भाँप जाते थे । एक पैसे की औकात नहीं होती थी, खुद की, पर साथ खड़े रहते थे । और फिर फीलिंग ऐसी आती थी जैसे अंबानी/टाटा हो गया हूँ ।
मेरे गाँव से 2 किलो मीटर दूर हाई स्कूल था, छोटा सा 4 कमरे का, पर हाँ नाम बहुत बड़ा था ..
श्री सीता राम राय उच्च विद्यालय, रजौरा, बेगुसराय :)
छोटे से स्कूल में छोटा सा निक्कर पहने, बड़ी बड़ी कारस्तानी करते और वो थेथर दोस्त बड़े प्यार से अपना पीठ आगे कर देते......... काहे का फ्रेंडशिप बैंड, पजामे की डोरी से ही काम चल जाता है !!
पर उम्र के बढ़ते कदमों के साथ, ऐसी दूरी बढ़ गई कि एक दूसरे के चिंता को भाँप कर भी अनदेखी करना ही सहज लगता है ......... है न !! सच !!
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एवें हैप्पी फ्रेंडशिप डे कह कर खुद को खुश करते हैं, ............. जैसे दोस्तों के दोस्त हो गए हों

अच्छे थे .......... साले :) , वही पुराने वाले !!  

Wednesday, July 2, 2014

अंतिम फेंकने से पहले शेविंग क्रीम या टूथ पेस्ट के ट्यूब से अंतिम कोशिश करो तो एक दम से पिचक कर थोड़ा सा क्रीम या पेस्ट बाहर आ ही जाता है 
हम मध्यम वर्गीय मेनटॅलिटी के लोग, एक सुखद अहसास इस छोटे से कार्य से भी फील कर लेते हैं, जंग जितने जैसा लगने लगता है 
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ऐसा करते समय ही सोच जन्मी, क्या अंतिम विदाई, ऐसे समझो जैसे डाइवोर्स के समय अलग अलग कटघरे मे पति और पत्नी खड़ें हो, और निर्णय आने ही वाला हो तभी एक मासूम मुस्कुराहट दोनो मे से किसी एक की, और सब कुछ सही ........... फिर से एक नयी जिंदगी !! नया सतरंगा आसमान !!  

Monday, May 19, 2014

चाभी वाले अलार्म घड़ी के आवाज पर उठकर, लंबे धारीदार ढीले पैजामे व बुशर्ट में निकलता था, हल्की फुलकी भोर के बीच तेज ठंडी हवा ..... चिड़ियों की आवाजें ... पत्तों पर ऑस की बूंदें ---- भिंगी घास की गंध और मिट्टी की ललछौंही पर पसरी गहरी शांति ........ तेज कदमों से चलते .... आखिर वही नदी के ऊपर का पुल .......... सफर का अंत होता था हर सुबह का, पहुँचने के लिए ! हर दिन यही लगता जैसे वो कल-कल दौड़ती - कूदती - भागती जलधारा बुला रही हो। और पहुँचते ही बस एक काम ........पूल से तांगे लटका कर नमी महसूसना !! लोहे के खंबे मे लटकते हुए कुछ बूंदें जैसे ही चेहरे से टकराती .......... एक प्यारी सी सुकून चेहरे पर आ जाती .......... ऐसे लगता जैसे सुबह सुबह नहा लिए  !! 
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बड़ा होता बचपन शायद प्रकृति में ही किसी को ढूँढता था  अब महसूस रहा 

Saturday, May 17, 2014

आशा / आकांक्षा / उम्मीदों की जीत !!

आशा / आकांक्षा / उम्मीदों की जीत !!

भारतीय लोकतन्त्र ने आखिर 30 वर्षों बाद एक बार फिर से आशा / आकांक्षा / उम्मीदों के साथ पूर्ण बहुमत के साथ सरकार चुनी है ।

याद रखना होगा, सफलताओं के पंख होते हैं पर असफलता के पैर भी टूट चुके होते हैं, वो सबको लंगड़ा, लूलहा सा नजर आता है । ऐसा नहीं है की अब तक जो होता आया, वो गलत या बुरा था मेरी समझ कहती है, आज का भारत पूर्ण सुदृढ़ है वो चाहे आर्थिक पक्ष हो या सुरक्षा की दृष्टि से हो, हमारी सारी सीमाएं महफूज हैं, हमारा नाम विश्व मे हैं ..........

समान्यतः विजयी टीम का कप्तान अपने विजयी भाषण मे अपने खेल की तारीफ करता है, न की ये बताता है की हारी हुई टीम में क्या क्या गलतियाँ थी । उन गलतियों पर नजर दौड़ाने के लिए बहुत सारा समय मिलेगा ! अभी तो बस जश्न मनाएँ और ये जश्न बनाना बहुत जायज है !

अब मेरी बात !! एक साधारण सा व्यक्ति, जो सरकारी सेवा में है, तो क्या उसकी अपनी मर्जी उसकी अपनी सोच नहीं हो सकती, क्या वो अपने चश्मे से अपने तरीके से अपनी बात नहीं कह सकता ? मज़ाक उड़ाने वाले बाज आयें !!

मेरी सोच आज भी कहती है नए लोक सभा मे अरुण जेटली / शाहनवाज़ हुसैन / सचिन पायलट / शरद यादव / रघुवंश प्रसाद सिंह / जतिन प्रसाद / मेधा पाटेकर /  सलमान खुरशिद / चरण दास महंत / नन्दन नीलेकनी जैसे लोगों को जरूर पहुँचना चाहिए था । मुझे तो केजरीवाल और स्मृति ईरानी भी लोक सभा मे चाहिए, बशर्ते वो कहीं और से लड़ते !!

अगर शरद यादव, पप्पू यादव से हारते हैं, तो ये लोकतन्त्र की मजबूती नहीं है ।
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देश ने आखिर नरेंद्र मोदी को सरकार चलाने की चुनौती दी है तो राहुल गांधी को राजनीति में अगर प्रासंगिक रहना है तो उन्हे भी संगठन को बचाने की चुनौती दी है ...........  !!

पर मेरी शुभकामनायें मेरे भारत को, जो भी अच्छा हो और सिर्फ अच्छा हो वो मेरे भारत के लिए हो, मेरी मिट्टी के लिए हो .............. !

Thursday, May 1, 2014

अजीब सी होती है मनुष्य के अंदर की गर्मी, बेवजह की ऊष्मा !! शावर के नीचे ठंडे पानी से अपने वजूद को लाख भिंगो दो, सारा ठंडा पानी शरीर से फिसल कर फर्श पर बिखरता चला जाएगा। अंदर तो जैसे एक सहारा मरुस्थल मिलों तक रेत की गरम सांस लेता महसूस होगा। एसी की ठंडी ब्रीज भी साँय साँय करती नीरवता को सुकून नहीं दे पाएगी । यहाँ तक की प्राकृतिक तारों भरा आसमान भी ऐसे लगेगा जैसे ढेरों हैलोजन बल्ब ताप बढ़ा रहे हों ।

पर ऐसे मे ही किसी की अनर्गल सी बातें भी भक्क से तापमान को दूध के पश्चुराइजेशन के तरह की स्थिति ला देती है, पल भर मे सब कुछ ठंडा ........... कूल कूल :)
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संवाद कायम रहे, ............. गर्मी बढ़ रही है :D

Wednesday, April 23, 2014

मेट्रो रुकती है, अनिकेत अपना बैकपैक संभाले हल्के कदमों के साथ मस्ती में गुनगुनाते हुए चढ़ता है। इस्स !! पूरा मेट्रो कम्पार्टमेंट खाली, व दूर वाली सीट पर एक खूबसूरत व भोली से नवयुवती बैठी थी। सधे कदमों से गुनगुनाते हुए अनिकेत वहीं पास पहुँच जाता है । पल भर में आंखे चार होती है, फिर एक जोड़ी खिलखिलाती हंसी, और समय कटने लगता है, मेट्रो के रफ्तार के साथ। 

नवयुवती का गंतव्य आने ही वाला है, वो पास आती है और फिर बिन कुछ कहे उसका हाथ अनिकेत के कमर मे होता है । उफ़्फ़ एक नवयुवक के लिए, ताजिंदगी याद करने लायक सफर लग रहा था। मेट्रो के रुकते ही वो स्वीट सी स्माइल के साथ जा चुकी होती है। दरवाजा बंद हुआ, अनिकेत व्हिसिल करते हुए सेल निकाल कर अपने किसी मित्र से बात करना चाहता है, चहकते हुए अपने सफर की मस्तियाँ शेयर करना चाहता है।

उफ़्फ़ !! आह !! सेल व वैलेट गायब हो चुका था !!!
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मानता हूँ, थर्ड क्लास कहानी है, पर पिछले तीन महीने की मेट्रो की रीपोर्ट कहती है की 126 में से 114 पॉकेट मार महिलाएं/युवतियाँ थी यानि 95%!!

तो सफर में अनिकेत न बनें !! सावधान रहें ........

Monday, April 21, 2014

ये स्मृतियाँ भी अजीब होती है न !!

बड़ी सारी खिलखिलाती खुशियाँ blooming flowers जैसे ढूँढने पर दिखेंगी, जो ता-जिंदगी आपके अंदर सहेजी हुई है ।

तो इसी स्मृति के हवन कुंड को प्रज्वलित करेंगे तो कुछ लाचार, बेबस, बासी शब्दो की आहुती भी हो जाएगी । किसी अलाव पर पानी मार दो फिर भी वाष्पित धुआँ जैसा कुछ रिस रिस कर निकलता रहता है। खिलखिलाते वक़्त में कुछ शख्स जो "हैं" से बंधे थे, जिसकी छाया मात्र आपको पुरसुकून भरी जिंदगी देती थी, वो कब "थी/था" में एक पल में बदल जाता है, पता ही नहीं चलता । जरूरी नहीं होता जो आपके जीवन से जुड़ा हो उसके साथ आप समय काटें, भाव व एहसास का जुड़ा होना ही संबंधो के बीच कस्तुरी सी खुशबू भरती है ।

बचपन में याद है कोई पूछता कितने भाई-बहन हो, तो बड़े शान से कहते पूरे बारह !! आखिर चचेरा भी कुछ होता है, कहाँ पता था। दूरियाँ तो वक़्त और जरूरतें लाती है ।
हाँ, आज कोई नहीं पूछता फिर भी रात मे बिस्तर पर बंद आंखो में चिहुँक कर सोच आती है, अब तो सिर्फ दस रह गए।

दीदी व नीटू कब कैसे गए, ये बेकार की बात है, बस चले गए दोनों !!
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अभी भी और भाई बहनों से दूर ही हूँ, पर भैया हूँ सबका, मन को गर्वित करने के लिए यही काफी है :)

Sunday, April 20, 2014

ये जिंदगी की रफ्तार भी परेशानी का सबब होती है !! बहुत दिक्कत है............

कभी मेट्रो की तरह सुपर फास्ट व स्मूथ बिना किसी जाम के धराधार भागती हुई, तो कभी पथड़ीली सड़क पर पुराने सायकल के तरह  धीमी व खड़खड़ाती हुई, खीझ देती है । अत्यधिक तेजी खुद को एडजस्ट करने में दिक्कत देती है तो धीमापन मायूसी देता है, न हारते हुए भी कहीं लगता है सब कुछ छुट जाएगा, कितने पीछे रह जाएंगे । मन खटारे तिपहिये रिक्शे के ड्राइवर सा परेशान रहता है, ऐसा ल अगता है जैसे तीन मोटे सवारी के साथ रायसीना हिल्स पर चढ़ रहे हों।

"क्या करें, क्या न करें, ये कैसी मुश्किल आई, कोई तो बता दे इसका हल ओ मेरे भाई ....... !"
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उफ ये ऊब, मायूसी, उम्र की निशानी तो नहीं ......... :) :)

Friday, April 11, 2014

ये तितलियाँ भी बिला वजह इस फूल से उस फूल, इस कली से उस कली तक मंडराती है, फरफराते सुनहले पंखो के साथ ... उन्हे क्या पता उनके सुकोमल पैर व पर पराग निषेचन का काम करते हैं, जिंदगी देते हैं, नई खुशियाँ वो बिना वजह ही फैलाती रहती हैं ॥ :)

शोख चमकते फूल, खिलखिलाते हुए अपने रंगीन पुष्प दल फैला देते हैं .......... आओ आओ न !! और बेचारी अचंभित तितलियाँ , इन रंगिनियों मे नए बहारों मे हँसती ठिठोली करती ....... और सतरंगे रंग भर देती है ...... :)
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आओ न कुछ रंग हम भी भरें, कुछ खुशियाँ मेरे कारण हो, कुछ खिलखिलाहट की वजह हम बनें ............. !!

आखिर मुसकुराना और मुस्कुराहट देखना उम्र बढ़ाती है :)

Tuesday, April 8, 2014

कितना अच्छा और मजेदार होता न, जो मानवीय भावनाओं को स्थूल रूप दिया जा सकता | पागलपन की गोलियां बनाई जाती - जो खोले, वही साहित्यकार | प्रेम की रंग बिरंगी टिकिया होती , जिसे दे दो वही रात के तारे गिने | कविता का भी पाउडर बाजार में बिका करता| तब तो हम हर मित्र को यही उपहार में भेजते | कविता की पुडिया पानी के साथ खाओ और फिर छंद लिखो, ज्यादा खा लिया तो धनाक्षरी, माहिया सोहर संगीत सब लिख डालो............... 
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सोचो सोचो, कोई ऐसी ईजाद क्यों नहीं !! आखिर ऐसी उल जलूल सोच ही तो खुशी देती है