कविता संग्रह "हमिंग बर्ड"

Tuesday, August 19, 2014

मेरी परवरिश एक वैरी लो मीडियम इनकम ग्रुप के बिहारी संयुक्त ग्रामीण परिवार जिसमे बारह तो हम बच्चे ही थे, में हुई ।

बाबा घर में यूज करने के लिए टूथ पेस्ट के बदले डाबर या बैद्यनाथ का लाल दन्त मंजन लाते थे. उफ़ !! हर सुबह हमारी कोशिश बस ये होती थी, की कैसे भी दांत साफ़ करने से बचा जाया, हाँ याद आया, उस मंजन से दांतों में रगड़ने के लिए ब्रश का उपयोग और पेनफुल था . इतना बाहियात और तीखा होता था वो मंजन की हर दिन लगता जैसे पूरा मुंह छिल गया हो. पर सुबह सुबह बाबा की नजर पुरे बच्चों में सिर्फ मेरे पर ही टिकी रहती थी, मुक्कू ब्रश किया, मुक्कू ब्रश किया, चिल्लाते रहते थे, कभी कभी तो पकड़ कर खुद भी साथ में खड़े हो जाते थे  !! हद है !! हाँ, बाबा शुद्ध हिंदी में बात करते, पर मैया ठेठ आंचलिक भाषा में - मुक्कू !! बाबा के बात काहे न माने हिन्, जो जल्दी से ब्रश कर :), चाय देबो :D (मीठी चाय का लालच हर समय से था)

हाँ स्कीप करने के लिए, एक और साधन था, मैया को प्यार से मना कर, मंजन के बदले नमक में सरसों तेल डाल कर उसको दांत पर रगडा जाए, ये थोडा बहुत सुख कर होता था :)
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एक दिन मैंने मैया को कहा - न मंजन है, न नमक !! बोल दांत में चीनी रगड़ लियो :) :)

हम तो ऐसे ही थे, थोड़े बकलोल टाइप :) :)

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