कविता संग्रह "हमिंग बर्ड"

Saturday, August 18, 2018

किताब_समीक्षा_लाल_फ्रॉक_वाली_लड़की



लेखक : मुकेश कुमार सिन्हा
श्रेणी : लप्रेक (लघु प्रेम कथा) संग्रह
प्रकाशक : बोधि प्रकाशन, जयपुर (राजस्थान)
कीमत : ₹100
किताब के बारे में कुछ कहने से पहले ‘दो शब्द’ इस किताब के लेखक और मेरे मित्र ‘मुकेश कुमार सिन्हा’ के बारे में कहना चाहती हूँ जिन्हें माँ शारदे से कलम का वरदान प्राप्त हुआ है इसलिये कविता लिखे या कहानी सब में अपना विशेष प्रभाव डाल देते हैं जो इनकी अपनी पहचान हैं बोले तो आम बोलचाल के साधारण शब्दों को इस तरीके से बड़े ही रोचक अंदाज में प्रस्तुत करते कि उनसे आँखों के समक्ष चित्र तैरने लगते हैं । यही तो एक कुशल कलमकार की ख़ासियत होती कि उसके लिखे को पढ़ने पर पन्नों के अक्षर मानव आकृति धारण कर लेते और जो कुछ भी हम पढ़ते वो हमें अपने आस-पास घटता हुआ महसूस होता जिससे कि हम उससे जुडाव महसूस करने लगते और ‘मुकेश कुमार सिन्हा’ इस कला के जादूगर है जिनकी कलम से निकलकर अल्फाज़ जीवंत चित्रों में परिवर्तित हो जाते है । उनके लिखे काव्य-संग्रह ‘हमिंग बर्ड’ को पढ़कर भी कुछ ऐसा ही अहसास हुआ और ‘फेसबुक’ पर भी वे जो भी लिखते उसमें हमेशा कुछ नवीनता और अनोखापन होता क्योंकि, वे असामान्य से लगने वाले विषयों व शब्दों का इस तरह साधारणीकरण करते कि उनका मिजाज बदल जाता याने कि उनमें ‘मुकेश कुमार सिन्हा’ का फ्लेवर आ जाता तो वे अद्भुत लगने लगते है । उनके इस ‘फ्लेवर’ का स्वाद आप इस कहानी संग्रह में भी ले सकते हैं जिसे पढ़ते-पढ़ते न जाने कितनी बार होंठों पर मुस्कराहट तैर गयी और न जाने कितनी दफा ऐसा लगा जैसे कि ये सब कुछ सबके साथ ही होता पर कुछ ही इसे इतने अनोखे तरीके से व्यक्त कर पाते जिसमें ‘मुकेश कुमार सिन्हा’ जिन्होंने प्रेम के छोटे-छोटे पलों को कहानी में बांधकर ये गुलदस्ता बनाया जिसका नाम ‘लाल फ्रॉक वाली लड़की’ है ।
‘सफ़र’ कहानी से प्रेम का आगाज़ होता हैं जो किसी दूसरे पल में यात्रा के दौरान महसूस करता है ‘इश्क़ में शहर हो जाना’ वास्तव में होता क्या है । जब रिश्तों की डोर पुकारती हो तो आँखों में आये आंसू बेसबब नहीं होते ‘मानसून’ की तरह जिसकी वजह ‘तृतीय प्रेम सिद्धांत’ भी हो सकती है ये आगे आकर पता चलता जब हम अगली कहानी पर पहुँचते है । ‘परीक्षा’ प्रेम की हो जब, तब शत-प्रतिशत पास होना कितने मायने रखता ये इस कहानी को पढ़कर ही पता चलता जो ‘ओनली फ्रेंडशिप’ की तरह विखंडित नहीं होती । आगे पन्ने पलटे तो किसी हिट फिल्म के ‘हाउसफुल’ शो में हुई मुलाकात का सिरा ‘कक्षा-९, सेक्शन-बी की छठी घंटी’ से जुड़ जाता हैं । कुछ प्रेम सिगरेट की तरह सेहत के लिये हानिकारक होते है और ‘क्लासिक माइल्ड’ के धुंए की तरह भीतर-ही-भीतर अंतर को सुलगाते है और ऐसे में याद आती ‘थेथरई-दोस्तों की’ तो उदास चेहरे पर भी मुस्कान आ ही जाती है । कभी-कभी यूँ भी होता कि जो हमें प्रेम नजर आता वो नजरों का धोखा होता जिसका अहसास तब होता जब वो किसी ‘मेट्रो’ स्टेशन पर उतर जाता और ‘ब्लड-डोनेशन कैंप’ में बैठकर लड़का किसी तरह अपने गम को भूलाने सुंदर नर्स को देखकर अपने मन को समझाता है कि सफ़र में प्रेम से बचना चाहिये अखिरकार, परदेसियों को तो कहीं न कहीं साथ छोड़ना ही है । ‘आल बिहार क्विज चैंपियनशिप’ जैसी प्रतियोगिता में रनरअप बनकर जिस लडकी की वजह से विनर बनते-बनते बचा वही उसे आखिर में विजेता होने का गौरव महसूस कराती है । प्रेम दूर-दूर रहकर भी पास-पास लगता जब प्रेम दिल के करीब होता तब कभी-कभी मन में भी अप-डाउन चलता रहता ‘दूर-दूर, पास-पास’ लव मी, लव मी नॉट की तरह और कोई सीनियर ऑफिसर किसी जूनियर से इमोशनली ‘ब्लैकमेल’ हो जाती सिर्फ़ इश्क़ की खातिर और कहीं कोई ‘इनबॉक्स’ में प्रेम पा जाता तो कहीं बस में टिकट खरीद ‘गिव एन टेक’ करते-करते दिल भी आदान-प्रदान कर दिया जाता और ये ‘तालमेल’ आपसी सोच का होता जहाँ ‘फैंटेसी’ महज़ एक स्वप्न ही होती है ।
प्रेम कथाएं बेशक छोटी-हो, इकतरफ़ा हो पर, उनकी ‘स्मृतियाँ’ गुदगुदी होती एक ‘अमरुद का पेड़’ भी प्रेम के लिये उत्प्रेरक का काम कर सकता है और एक ‘इंजन’ रूपी लड़के को कोई कुशल महिला ड्राईवर मिल सकती तो ‘व्हाई शुड बॉयज हेव आल फन’ की टैग लाइन लगाये कोई टीन ऐज लडकी किसी प्रोढ़ को अंकल कहकर न केवल उसका दिल साथ ही सपना भी तोड़ सकती है । फोर्टी प्लस में सोना चाँदी ‘च्यवनप्राश’ प्रेम को बल देता वैसे तो ‘प्रेम टीचर’ नहीं होते पर, जिन्हें चाहे हम ये दर्जा दे सकते ज्यादातर मामलों में तो ‘प्रेम’ ही ‘टीचर’ होता जो जीवन के महत्वपूर्ण सबक देता । बचपन में तो ‘कंचों का व्यापार’ करते हुये कोई प्रेम पनप जाता जो अंततः ‘पाइथोगोरस प्रमेय’ की तरह सिद्ध हो जाता और टीन ऐज तो ऐसी जिसमें हर किसी का कोई न कोई ‘क्रश’ होता पर, किसी का ही सक्सेस होता लेकिन, जिनका फ्लॉप होता वो भी कहाँ भूल पाते जब-तब उन दिनों की जुगाली करते रहते जब कभी किडनी ‘ट्रांसप्लांट’ के साथ हार्ट भी एक्सचेंज हो गया था । एक दिन किसी सुहाने मौसम में लॉन्ग ड्राइव के इरादे से यूँ ही ‘एनफील्ड बुलेट की यात्रा’ पर निकल जाते कि किसी अजनबी हसीना को लिफ्ट देकर कुछ हसीन पल बितायेंगे मगर, जब हसीना मिली तो मन ही बदल गया ये मन भी साला, बहुत बड़ा नौटंकी है । ‘रेनिंग विथ कैट्स एंड डॉग्स’ एक इत्तेफाक था पर, उसने एक नासमझ लडके को एकाएक ही समझदार व जिम्मेदार बना दिया था । ‘मांझी-द माउंटेन मैन’ फिल्म भले न देख पाये पर, जिंदगी ने जो दिखाया उससे पाया कि उम्मीद सिर्फ़ मांझी से ही होती है । ‘कॉलेज क्लास रूम’ में फिजिक्स-केमेस्ट्री की क्लासेस भले लग जाये पर, इन्हें पढ़ने वालों की केमिस्ट्री बड़ी मुश्किल से मिलती है जब गलतफहमियां क्लियर होती तब ‘क्विज चैंपियनशिप’ हारकर प्रेम की बाज़ी जीतने का मज़ा तो प्रेमी ही जानते है । बनारस की गलियों में एक अनजान अपना एग्जाम सेंटर ही नहीं अनायास ‘प्रेमिका’ भी खोज लेता और ‘माली’ बनकर ताउम्र प्रेम बगिया सींचता है ।
‘H2O’ में कौन हाइड्रोजन और कौन ऑक्सीजन का अणु ये भले समझ नहीं पाते पर, दो अजनबी खुद पानी की तरह आपस में घुल-मिल जाते है । सिगरेट के धुएं के छल्ले में अपनी प्रेमिका की छवि देखना या ‘प्रेम प्रतीक’ बनाकर अपने प्रेम के बारे में सोचना या फिर ‘जानी दुश्मन’ जैसी हॉरर मूवी दिखाकर अपने प्रेम को नजदीक लाना ऐसा बहुत कुछ आम जीवन में होता जो कालांतर में लप्रेक का कथानक बन जाता है । कभी कोई लड़की ‘मरखड़ गैया’ सी अचानक ही आ जाती जीवन में और बन जाती सीधी-नेक अल्लाह की गाय सरीखी तो कभी-कभी प्रोढ़ावस्था में ‘अनुलोम विलोम’ करते किसी प्रोढ़ पर योग से अधिक मुस्कान असर कर जाती तो वो खुद को जवान महसूस करने लगता है । नोटबंदी जैसे आपातकाल में भी प्रेम कहानियां लिखी जा सकती हैं वो भी एक नहीं तीन और तीनों ही बेहतरीन जहाँ ‘एक’ में पुराना प्रेम पिंक नोटों की तरह गुलाबी हो गया तो ‘दो’ में नया प्रेम शुरू होकर ‘तीन’ में परवान चढ़ गया गोया कि एक, दो, तीन अलग-अलग कहानियां नहीं प्रेम की थ्री स्टेप्स है । यूँ तो मेले प्रेम कहानियों के लिये मुफ़ीद स्थान होते पर, ‘पुस्तक मेला’ भी मन में कोई प्लाट बना सकता हैं क्या ? पर, जब लेखक ‘मुकेश कुमार सिन्हा’ हो तो अपनी ‘हमिंग बर्ड’ के प्रमोशन के जरिये दूसरे के दिल को धड़का भी सकते है बिना संवेदनाओं के लेखक होना आसान भी तो नही वरना, ‘एक शाम’ दो प्रेमियों के बीच की दूरी किस तरह कर पायेगी और प्रेमिका अपने कंजूस प्रेमी को अपनी पहली सैलरी से ट्रीट देने की ख़ुशी की तरह बटोर पायेगी । ‘भैया की शादी’ हो और भाभी की छोटी बहनिया दिल न चुराये ये तो हो नहीं सकता जनाब पर, हीरो तो अपनी हीरोइन के ‘सुनिये’ कहने का ऐसा दीवाना हुआ कि सुध-बुध भूला बैठा कमबख्त होश आया भी तो तब, जब उसके बच्चे उसे मामा कह रहे थे । उफ़, ये ट्रेजेडी किसी के भी साथ न हो कि आपके बड़े भाई आपसे आपके प्रेम को मिलवाने का वादा करें पर, जब वक़्त आये तो वो ‘अप्रैल फूल’ बना जाये । ऐसा शायद, कोई नही जो संडे का इंतजार न करता हो देर तक सोने के लिये आखिर, वही तो संडे का पर्याय हैं पर, कभी-कभी कुछ ऐसी घटनायें एक के बाद एक लगातार होती जो अहसास कराती कि ‘इतवार भी शनिच्चर हो सकता है’ ऐसे में प्रेम का मखमली स्पर्श ही जख्मों पर मरहम लगाता है ।
‘मुकेश कुमार सिन्हा’ विज्ञान गणित से स्नातक होते हुये भी प्रेम जैसे विषय में पी.एच.डी. किये मालूम होते है जो किसी भी परिस्थति, किसी भी घटना या स्थान में ‘प्रेम’ ढूंढ लेते है और उनके इस लघु कथा प्रेम संग्रह ‘लाल फ्रॉक वाली लड़की’ में सर्वत्र प्रेम बिखरा हैं । इसमें आपको लव का हर फ्लेवर चाहे वो नमकीन हो या चटपटा या फिर खट्टा-मीठा या रसीला मिला जायेगा शोर्ट में बोले तो यह लव स्टोरीज का चटाकेदार पैकेट हैं जिसे खरीदकर पढ़ने पर मनचाहे जायके की फुल गारंटी है ।
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© ® सुश्री इंदु सिंह “इन्दुश्री’
नरसिंहपुर (म.प्र.)
०८ अगस्त २०१८


Saturday, August 4, 2018

"कुत्ते की दुम" --


“कुत्ते के दुम हो तुम”, कभी सीधी नहीं हो सकते !!
उफ ! हर दिन अपने लिए अँग्रेजी के शिक्षक से ये खास वक्तव्य सुन कर थेथर से हो गए थे । कितना बुरा लगता था, अँग्रेजी के शिक्षक हो कर भी उनसे हिन्दी में कुछ सुनना। काश ! अँग्रेजी में ही कोई खतरनाक सी गाली देते जिससे कि हम अपनी मैया को भी शान से बता पाते, ताकि मैया भी बिना सोचे समझे हुए कह देती, वाह !! अब लग रहा है तुम्हें ट्यूशन पर भेजने से पैसा व्यर्थ नहीं जा रहा है। पर स्साला ! कुत्ते का दुम !! कितना शौक से मैया अँग्रेजी ट्यूशन पर भेजने के लिए बाबा से लड़ी थी, फिर पर्मिशन मिला था, ताकि ग्रामर ठीक होने के बाद मैं भी बाबा के तरह अँग्रेजी में फूँ फाँ कर पाऊँगा। पर अपन तो “माय नेम इस ..........” और “आई एम एट इयर्स ओल्ड” से आगे बढ़ ही नहीं पा रहे थे।
एक दिन तो हमने सर को प्यार से समझाने की कोशिश भी कि, सर मैं तो ईडियट, नॉनसेन्स जैसा कुछ हूँ, ये कुत्ते का दुम तो वो शिवम हो सकता है । पर काहे समझेंगे सर!! उनको तो बस जब तब मैं ही कुत्ते के दुम जैसा टेढ़ा दिखता था। नाउम्मीदी के दरिया में बह रहा था।
आखिर एक दिन ट्यूशन से लौटते हुए अपने अजीज मित्र शिवम को बोला – यार, एक काम करें, आज ट्राय मारें ??
शिवम – अबे, कईसन ट्राय मारेगा ? बेटा ठुकाई हो जाएगी, देख लेना, अपने क्लास की सारी लड़कियां चन्ठ हैं।
यार! लड़की-वड़की नहीं, तुम भी साले बस् एक ही तरफ देखते हो। अबे, ये मास्साब रोज हमको कुत्ते का दुम कहते हैं, जो सीधा नहीं हो सकता। स्साला ! हाथी, घोडा, बाघ, शेर ... इतना सारा जानवर है, उनसे तुलना करते तो खुशी भी हो, कुत्ता तक भी गिरा कर लाते तो भी खुद को समझा लेते, इस्स, उस मुड़े, पीछे से जुड़े “दुम” जैसा बना दिया इस मुए सर ने ।
“आज ट्राय करते हैं, क्या कुत्ते का दुम सीधा हो सकता है या नहीं।“
शिवम ठहरा मेरा मित्र, मेरे से सीनियर बकलोल, बड़ी मासूमियत से मुंडी हिलाते हुए मुस्कुरा दिया। उसे लगा मैं बेवकूफ, खुद मे बदलाव लाने के लिए कोई गूढ मंत्र उससे शेयर करने वाला हूँ। हाय! इस मासूमियत पर कौन न मर जाए, तभी तो मेरे जैसे मंद बुद्धि ने ढूंढ कर एक दोस्त रखा था, जो मेरी हर बकलोली पर मुसकुराता और मैं उसकी सहमति समझता। वैसे बाद में उसको भी समझ में आ गया था कि मेरी खोपड़ी मे क्या चल रही है।
हम दोनों ने अपने घर के बाहर ही एक बिलबिलाते हुए पिल्ले को पकड़ा, उसके दुम को पकड़ कर सीधी की और चीख पड़े, लो हो गई सीधी, ये मारा पापड़ वाले को, स्साला ये मास्टर साब ही बुरबक हैं। उफ! पर जैसे ही पिल्ले को जमीन पर उतारा वो तो फिर से टेढ़ी की टेढ़ी, गोल घूम गई। हाय मर जावां !!
अब तो कोई जुगाड़ लगाना पड़ेगा, शिवम ने सुझाया, इसकी पुंछ को एक छोटे से खपची से बांध देते हैं, कुछ दिन मे सीधी हो जाएगी, देखा नहीं था वो भैया को, जो हाथ मुड़ गया था, तो खपची से बांधे थे।
बेचारा पिल्ला !! सर के बोले गए “कुत्ते के दुम” के वजह से शहीद होने वाला था। हमने दो पतली छोटी बांस की खपची में उसके दुम को दबा कर, बड़े प्यार से मानवता और दयालुता दिखाते हुए ऊन से बांध दिया वो भी रुई डालकर, ताकि दर्द कम हो। बंधने के बाद, वो कू-कु करता हुआ ओझल हो गया, हमने भी खुद को समझाया, कुछ घंटो का दर्द है, अब इतना तो दर्द उसको सहना चाहिए, आखिर मेरे इज्जत का सवाल है। उसकी दुम सीधी हो कर रहेगी, फिर सर को कहेंगे, अँग्रेजी मे गालियां दिया कीजिये।
हाय वो रब्बा। एक आध घंटे के बाद ही वो पिल्ला फिर से दिखा, पर खपची निकल चुकी थी, कैसे क्यों निकली, ये तो जांच का विषय था। और दुम – उफ!! मेरी तरह टेढ़ी की टेढ़ी।
तो अंततः हमने खुद को समझाया! सर ही सही थे, फिर शिवम भी तो बोल उठा – तू सच मे कुत्ते का दुम है। टेढ़े का टेढ़ा। पर “टेढ़ा है पर मेरा है”, ये भी तो एक एड-लाइन है।
तो जैसे मास्साब, शिवम, मैया सब झेलते रहे मुझे, आप भी झेलिए ........ !! बेशक जो भी कह दीजिये !!
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लीजिये झेलिए, और हाँ, पक्का पक्का बताइये कइसन लगा :) :)
~मुकेश~