कविता संग्रह "हमिंग बर्ड"

Tuesday, July 7, 2015

अपर्णा शाह के शब्दों में ....... हमिंग बर्ड






मेरे आँगन चहकने की आवाज?दौड़ी गई तो देखी मुकेशजी की "हमिंग बर्ड।"तो आख़िरकार इतने देर से ही सही तुम मेरे पास पहुँच ही गई। "इतने रमणीक जगह आप रहते हो कि बस मन भटकता रहा ,मैं घूमती,आनन्द लेती आराम से आपके यहाँ पहुंची।"आह-हा !

मुकेशजी की अधिकांश कवितायेँ तो पहले पढ़ चुकी हूँ,बाकी सब भी पढ़ गई। सहजता-सरलता इनकी खासियत है ,इतने समर्पित भाव से कविता परोसते हैं कि मन को बांध लेती है अभिव्यक्ति। ग्राह्य होनेवाली आम भाव के आशुकवि हैं यें। जहाँ न पहुंचे रवि वहां पहुंचे कवि वाली उक्ति को चरितार्थ करते हैं "शेर सुनाऊँ,मेरे अंदर का बच्चा,पगडण्डी,हाथ की लकीरें----गम्भीर भाव,हल्के से शब्द। प्रेमगीत रचते शब्द,सच पूछिये तो प्यार के कितने आयाम। इतनी तन्मयता,ईमानदारी से उद्घोषणा की मैं कवि नहीं हूँ।

इनकी 'हमिंग बर्ड"की पहुँच हर सुधी मन,हर आँगन हो ऐसी ही फुदकती हुई ऊँचाई पे पहुंचे। मेरी ढेर सारी शुभकामनायें।
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2 comments:

  1. oh...bs dil se aabhar or dili dua...

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  2. बहुत सुन्दर ..
    हमिंग बर्ड यूँ ही पढ़ने वालों को पसंद आये , यही हार्दिक शुभकामनायें हैं ...

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