दो महीने पहले रेलवे टिकट लिया था उसने, होली पर अम्मा-बाबा-दोस्तों से जो मिलना था !
एस-7 के बर्थ न. 17 पर खिड़की के साथ लग कर आने वाले गाँव की होली के सतरंगी मस्ती को फील ही कर रहा था कि
झपाक से एक तीखी मीठी आवाज -
प्लीज मुझे भी बैठने दीजियेगा ! पटना जाना है, पर टिकट ही कन्फर्म नही हुई .....
उफ्फ्फ!! नजर है जो हटती नही !! बेचारा लड़का ।।
बैठिये न!!
एक पल में लड़की की नजरों की तिर्यक रेखा से ऐसा घायल हुआ कि ज्यामिति के सारे नियमों को धता बता कर 180 डिग्री के कोण के साथ बिछते हुए जगह छोड़ चुका था !!
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रात में लड़की उस बर्थ पर सो रही थी और बेचारा लड़का उसके पांव के पास सकुचाते हुए बैठ कर रविश कुमार की "इश्क में शहर होना" पढ़ रहा था !!!!
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