पुस्तक : … है न! ( कविता संग्रह )
लेखक : मुकेश कुमार सिन्हा
प्रकाशक : हिन्द युग्म
मूल्य : ₹199/-
“चला जाउँगा
किसी ख़ास दिन बिन कहे
नहीं रखूँगा सिरहाने पर
कोई भी चिट्ठी
जो बता पाए वजह कि गए क्यों?
शायद उस ख़ास दिन के बाद
आया करूँगा याद
हमेशा के लिए
क्योंकि
जानेवाले स्मृतियों में
बना देते हैं एक लाक्षागृह
जिसमें आग नहीं लगाई जाती
बल्कि स्नेह के मरहम की ठंडक में
जा चुका व्यक्ति
बना लेता है बसेरा
हमेशा के लिए”
यह हृदयस्पर्शी पंक्तियां हैं मुकेश कुमार सिन्हा द्वारा रचित कविता संग्रह “… है न ” की। ऐसी ही सुंदर कविताओं से सुसज्जित यह कविता संग्रह समाज,जीवन, मृत्यु, मित्रता, प्रेम और उम्मीद की विविध छवियां प्रस्तुत करती है।
बिहार के बेगूसराय में जन्मे मुकेश कुमार सिन्हा ने गणित विषय में बी.एससी. किया है। हमिंग बर्ड ( संग्रह ) , लाल फ्रॉक वाली लड़की ( लप्रेक ) , कस्तूरी, पगडंडियां, गुलमोहर, तुहिन, गूंज व 100 कदम ( साझा कविता संग्रह ) आदि रचनाएं पाठकों के बीच हैं। मुकेश कुमार सिन्हा को वर्ष 2015 में दिल्ली अंतरराष्ट्रीय फिल्म फेस्टिवल में ‘ पोएट ऑफ द ईयर’ अवार्ड से सम्मानित किया गया।
कविताओं और गणित की अपनी अलग अलग दुनिया है… दोनों ही ज्यादा आसान नहीं और इतने कठिन भी नहीं… पर क्या हो अगर ये साथ आ जाएं? हैरानी हुई तो आगे पढ़िए …
“ज्यामिति की रेखाएँ
और वृत्त की
परिभाषाओं को
समझने – समझाने वाली
सहपाठिन
इन दिनों जिंदगी की कक्षा में
बनाती है बेलन से
अनगढ़ षट्भुज,
पंचभुज या अर्धवृत्त
और उन्हें
तवे पर सेंक देती है बिन फुलाए
वैसे भी,
भूख ज्यामिति की सत्यता को
परिभाषित नहीं कर पाता
है न !”
ऐसी ही अनोखी कविताओं से सुसज्जित यह पुस्तक आपको हर जगह हैरान करेगी और आप एक पल को सोचने पर मजबूर हो जाएंगे एक कवि की कल्पना कहां कहां तक जा सकती है। कवि की कल्पना का आकाश इतना विस्तृत है जिसका अनुमान लगाना मानो असंभव है।
यह कविताएं आज के जीवन का दर्पण हैं जिसमें आप अपने जीवन की झलक देख सकते हैं। कवि अपनी कविताओं के जरिए आपको एक बार फिर आपके कॉलेज के कॉरिडोर, कैंटीन, पहला प्रेम, मित्रता, उस समय की हजारों ख्वाहिशों की यादें ताजा करवा देते हैं।
एक लेखक या कवि तभी सफल होता है जब उसके द्वारा बुनी गई दुनिया चाहे वो कहानी के माध्यम से हो या कविताओं के माध्यम से उसके पाठक या श्रोता के मन में अपनी छाप छोड़े और वो लेखक या कवि द्वारा बुनी गई दुनिया का हिस्सा बन जाए… कवि मुकेश सिन्हा अपनी इस कोशिश में पूर्णता सफल होते हैं।
सरल और स्पष्ट भाषा शैली कविताओं को और पठनीय बनाती है। असाधारण विषयों के चुनाव को लेकर कविताएं आपको हैरत में डाल देती हैं की दैनिक वस्तुओं को भी कविता की भाषा में पिरोया जा सकता है। कविताएं हमेशा मन को सुकून देती हैं अगर आप भी सुकून की तलाश में हैं तो जरूर पढ़िए मुकेश कुमार सिन्हा का यह खूबसूरत कविता संग्रह “…है न”
अंत में कवि को इस खूबसूरत और अनोखे कविता संग्रह के लिए हार्दिक शुभकामनाएं और बधाई!!
~ निशा (बूकवाला के लिए)
ये समीक्षा बूकवाला के साइट पर भी उपलब्ध है