कविता संग्रह "हमिंग बर्ड"

Thursday, November 29, 2018

मेरी कविताओं पर गीता श्री के शब्द



साहित्य के सलमान खान की तरह हैं हम सब की Geeta Shree। दबंगई के साथ संवेदनाओं को समेटे सबकी दोस्त हैं गीताश्री।
पिछले दिनों उन्होंने मेरे कविताओं पर छोटी सी पोस्ट बनाई और उसके दो दिन बाद ही आईआइसी में मिलने का अवसर मिला, तो इस पोस्ट को सहेजने के लिए मुझे इससे बेहतर ऑप्शन नहीं दिखा 😊
गीताश्री उवाच-
कथादेश के नवंबर अंक में मुकेश कुमार सिन्हा की कविताएँ मुझे अचंभित कर गई. उनके पहले काव्य संग्रह पर लिखने का सौभाग्य मिला है मुझे. तब से अब तक उनका कवि कितना परिपक्व हो गया है. मुझे पसंद आई कविताएँ. जीवन के गझिन अनुभवों से सींझ कर निकली हुई कविताएँ. कुछ चिंताएँ हैं तो कुछ प्रतिरोध के स्वर. इनमें प्रेम चुपके चुपके चमकता है... जैसे शिखरों पर बर्फ चमकती है.
पत्रिका में चार कविताएँ. कुछ अंश शेयर करती हूँ.
यह सच है कि कविताओं में हम कहीं ढूँढते हैं खुद को...
वैसे भी कुछ अच्छा लगे तो बिना आह वाह किए मुझसे नहीं रहा जाता.
अपनी फ़ितरत ही कुछ ऐसी है कि.... !!
1.
मैं भी बेवजह ही कह उठूँगा
क्या बात, आज भी उतनी ही ख़ूबसूरत !
ऐसे ही बेवजह के संवाद के मध्य
ख़ूबसूरती के बखान के साथ
संबोधित करुंगा “ मोटी”
और कभी कहूँगा “ बेवकूफ”
पर तुम खिलखिलाते हुए
इन पर्यायवाची शब्दों में ढूँढ लोगी
आत्मीयता और स्नेह !
2.
दिन बीता
अब गोधूली के पहर पर
पार्क में दूर वाले पेड़ के पीछे से
आया भोर का तारा
मध्यस्थता करने को शायद
ताकि सूरज तारे चंदा जैसे
खगोलीय नैसर्गिक पिंडों-सा
समझा जाए तुम्हें भी
उतना ही पवित्र
उतना ही प्यारा
- मुकेश कुमार सिन्हा


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