बलजीत कौर के हाथों हमिंग बर्ड |
एक चिट्ठी अपने मित्र
के नाम
दोस्त तुम्हारी किताब 'हमिंग बर्ड 'मेरे हाथ में 50 दिन पहले आई थी | उसी
शाम ख़ुशी से उसे हाथ में लेकर पढ़ने भी बैठ गयी लेकिन दूसरे ही पेज पर
"दीदी-नीटू : लड़ते प्यार करते ,साथ छोड़ गए"
पंक्तियों को पढ़ते ही आँखों से अविरल
अश्रु धारा बह निकली ,क्योकि
इस से 15 दिन पूर्व हमने अपना नन्हा बच्चों जैसा देवर खोया था| बस फिर क्या था किताब
सिरहाने रख दी |
उसके बाद रोज़ उस किताब
को उठाती लेकिन खोलने की हिम्मत न जुटा पाती|
कभी कभी ज़िंदादिल दिखने वाला इंसान भी दर्द से भीतर से खोखला हो चुका होता है| खैर कल हिम्मत करके इस किताब को उठाया और फिर तो रात तक पूरी ही पढ़ डाली | दोस्त तुम्हारे 5 मिलीग्राम के छोटे से मन ने मन भर वजन की रचनाएँ लिख डाली|
चालीस की उम्र की बात हो या बिटिया की बात,हर रचना दिल को छु गयी|
इसी तरह मनोभावों को लिखते रहो ये ही मेरी शुभकामना है|
कभी कभी ज़िंदादिल दिखने वाला इंसान भी दर्द से भीतर से खोखला हो चुका होता है| खैर कल हिम्मत करके इस किताब को उठाया और फिर तो रात तक पूरी ही पढ़ डाली | दोस्त तुम्हारे 5 मिलीग्राम के छोटे से मन ने मन भर वजन की रचनाएँ लिख डाली|
चालीस की उम्र की बात हो या बिटिया की बात,हर रचना दिल को छु गयी|
इसी तरह मनोभावों को लिखते रहो ये ही मेरी शुभकामना है|
और हाँ आज तुम्हारा जन्मदिन भी है मेरी शुभकामनाएं स्वीकार करो
- बलजीत कौर
कंचन गुप्ता, मुंबई के हाथों हमिंग बर्ड |
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