जिंदगी राष्ट्रीय समाचार पत्र के दक्षिणी दिल्ली परिशिष्ट के तीसरे पृष्ठ के एक कॉलम सी ही रही ताउम्र | ढेरों सरकारी टेंडर और छोटे-छोटे खोया-पाया सुचना को अपने में समेटे, बिलख रहा इधर-उधर .
यानी उस अखबार तक हर पाठक की पहुँच होने के बावजूद, उस ख़ास पृष्ठ के कॉलम तक शायद कबाड़ी भी नहीं पहुँचता, सीधा बन जाता है ठोंगा
याद है मुझे अपना बचपन, क्रिकेट अत्यधिक पसंद था, पर अन्दर वो टैलेंट दूर दूर तक नहीं था कि बड़का प्लेयर कहलाऊं |
बचपन में गाँव फिर कॉलोनी के टीम में बडी मेहनत करेक गेंद बल्ला, पेड ढोता तो साथ में मैच खिलाने भी ले जाते, पर बराबर बारहवां खिलाडी ही रहता, लेकिन प्लेयर लिस्ट में नाम होने भर से अन्दर उर्जा भर जाती थी, फिर वो ब्रेड-केले बारह खिलाडियों को मिलता था, तो फीलिंग ऐसे रहती जैसे गावस्कर की तरही खेल रहे
काश क्रिकेट खेलने के गुर भी ध्यान से सीखा होता ... !
काश क्रिकेट खेलने के गुर भी ध्यान से सीखा होता ... !
कॉलेज पहुंचे, शहर भी बदल गया !
फिर से क्रिकेट का नशा, पुरे कमरे में गावस्कर, कपिल, श्री कान्त भरे पड़े थे, बेशक खेलने न आये, पर स्टेटिस्टिक्स पूरा पता होता था
आर्थिक अवस्था बडी खराब सी थी, ट्यूशन/टाइपिंग/स्कूल आदि से जिंदगी चलती थी, पर क्रि्केट मैच में खेलने की इच्छा हर समय जवान रहती, इस चक्कर में मेहनत के पैसे और समय बर्बाद कर देते और फिर से वही ढाक के तीन पात, कमीने खेलने ले जाते, पर हर बार कोई न कोई वजह से स्कोरर बना देते थे, वो भी सिर्फ इस वजह से क्योंकि मेरी हैण्ड राइटिंग अच्छी थी, क्रिकेट की समझ थी !!
फिर से क्रिकेट का नशा, पुरे कमरे में गावस्कर, कपिल, श्री कान्त भरे पड़े थे, बेशक खेलने न आये, पर स्टेटिस्टिक्स पूरा पता होता था
आर्थिक अवस्था बडी खराब सी थी, ट्यूशन/टाइपिंग/स्कूल आदि से जिंदगी चलती थी, पर क्रि्केट मैच में खेलने की इच्छा हर समय जवान रहती, इस चक्कर में मेहनत के पैसे और समय बर्बाद कर देते और फिर से वही ढाक के तीन पात, कमीने खेलने ले जाते, पर हर बार कोई न कोई वजह से स्कोरर बना देते थे, वो भी सिर्फ इस वजह से क्योंकि मेरी हैण्ड राइटिंग अच्छी थी, क्रिकेट की समझ थी !!
बात अगर साहित्य की हो तो, इनदिनों जब मैं अपने समकालीनों को पढता हूँ, तो मैं खुद भी महसूस पाता हूँ कि अपने कविताओं को स्तरीय बनाने के लिए बेशक मीलों चल चुका पर शायद गोल गोल घूमते हुए फिर से अपने पुराने जगह पर पहुँच जाता हूँ, जबकि सफ़र सीधी हो तो शीर्ष तक पहुंचा जा सकता है |
उम्मीदों की गठरी लिए बस जिए जा रहे ......... !!
~मुकेश~
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