कविता संग्रह "हमिंग बर्ड"

Monday, April 21, 2014

ये स्मृतियाँ भी अजीब होती है न !!

बड़ी सारी खिलखिलाती खुशियाँ blooming flowers जैसे ढूँढने पर दिखेंगी, जो ता-जिंदगी आपके अंदर सहेजी हुई है ।

तो इसी स्मृति के हवन कुंड को प्रज्वलित करेंगे तो कुछ लाचार, बेबस, बासी शब्दो की आहुती भी हो जाएगी । किसी अलाव पर पानी मार दो फिर भी वाष्पित धुआँ जैसा कुछ रिस रिस कर निकलता रहता है। खिलखिलाते वक़्त में कुछ शख्स जो "हैं" से बंधे थे, जिसकी छाया मात्र आपको पुरसुकून भरी जिंदगी देती थी, वो कब "थी/था" में एक पल में बदल जाता है, पता ही नहीं चलता । जरूरी नहीं होता जो आपके जीवन से जुड़ा हो उसके साथ आप समय काटें, भाव व एहसास का जुड़ा होना ही संबंधो के बीच कस्तुरी सी खुशबू भरती है ।

बचपन में याद है कोई पूछता कितने भाई-बहन हो, तो बड़े शान से कहते पूरे बारह !! आखिर चचेरा भी कुछ होता है, कहाँ पता था। दूरियाँ तो वक़्त और जरूरतें लाती है ।
हाँ, आज कोई नहीं पूछता फिर भी रात मे बिस्तर पर बंद आंखो में चिहुँक कर सोच आती है, अब तो सिर्फ दस रह गए।

दीदी व नीटू कब कैसे गए, ये बेकार की बात है, बस चले गए दोनों !!
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अभी भी और भाई बहनों से दूर ही हूँ, पर भैया हूँ सबका, मन को गर्वित करने के लिए यही काफी है :)

1 comment:

  1. दूर रहना मज़बूरी भले ही हो लेकिन ये मजबूरियां कभी अपनों का प्यार कम नहीं कर पाते हैं ....
    बस प्रेम बना रहना चाहिए

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