"कितना अच्छा होता जो मानवीय भावनाओं को स्थूल रूप दिया जा सके | पागलपन की गोलियां बने - जो खोले, वही साहित्यकार | प्रेम की टिकिया हो, जिसे दे दो वही रात के तारे गिने | कविता का भी पाउडर बाजार में बिका करे | तब तो हम हर मित्र को यही उपहार में भेजा करें | कविता की पुडिया पानी के साथ खाओ और फिर छंद लिखो ...............:))"
1 pudiya mujhe bhi ubhar me bhej dijiyega.... :)
ReplyDeleteKash esa ho jaye ...
ReplyDeleteVery nice
;-);-)
patiपन की गोलियां बने - जो खोले, वही pati sath ho !!! |
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर
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