कविता संग्रह "हमिंग बर्ड"

Monday, August 17, 2015

जुगाड़

बात उन दिनों की है, जब फाके की जिंदगी चल रही थी. पार्ट 1 में देवघर कॉलेज में पढ़ रहे थे शायद | उन दिनों बिहार (तब झारखण्ड का नही बना था) में प्राइवेट नौकरी का कोई ज्यादा स्कोप नही था। कॉलेज के साथ सहारा इंडिया के कमीशन एजेंट का भी कार्य करते थे, साथ में ढेरों ट्यूशन तो थे ही पर फिर भी पैसे इतने कम होते की कोई फ्यूचर ही नही दिखता था । हाँ सरकारी नौकरी की वेकेंसी भी बहुत कम निकला करती थी । 50-60 सीट का बैंक क्लर्कस ग्रेड आता था !!

हाँ तो एक दिन कहीं न्यूज़ पेपर में नेशनल स्कूल ऑफ़ बैंकिंग मुम्बई का एड दिखा ! सिर्फ 400/- में पोस्टल कोचिंग दे रही थी, यानी वो दो महीने तक लगातार स्टडी मटेरियल भेजते !! पर 400 का जोगाड़ प्रॉब्लम था ! एवैं एक दिन अपने एक मित्र से कह रहे थे कि इसको करना अच्छा रहता ! बस वो कह बैठा एक काम कर मैं 100/- देता हूँ तू बस मेटेरियल का फ़ोटो स्टेट करने देना!! 

मेरी तो बांछे खिल गयी ! तिकड़म की गोटी फिट हो गयी ! अब मैंने अलग-अलग चार लोगो से बात की सबसे 100-100 लिए, मेटेरियल आ गया !! हर को समय से फ़ोटो स्टेट करने भी दे दिया !!

तो ऐसे थे भैया !! 
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हाँ फिर अंतिम में एक और दोस्त 50/- में पूरा मेटेरियल का फोटो कॉपी लेने को राजी हो गया!

उस दिन उस पैसे से पांचो ने एक साथ मूवी देखी शंकर टॉकीज में, चिनिया बादाम के साथ!

अंतिम में पेट के गुड़ गुड़ को शांत करने के लिए सबको बता दिए क़ी क्या गुल खिलाये थे मैंने !

हींग लगे न फिटकरी रंग चोखा :-D!



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