ऑरकुट के जमाने में याद होगा testimonials हुआ करता था प्रोफाइल खोलते ही नीचे लगातार दिखते चले जाते थे, ऐसे लगता था जैसे प्रोफाइल के लिए कैरेक्टर सर्टिफिकेट हो!!
जब ऑरकुट दुनिया से विदा लेने लगा तो इन testimonials का स्नेप शॉट लेकर मैंने एक एल्बम बना लिया, इस लिंक पर सहेजा हुआ है !!
एल्बम ऑरकुट testimonials का
2011 में रश्मि प्रभा दी ने ऐसे ही एक ब्लॉग बना कर उस पर बहुत से ब्लोगर्स के लिए शब्द दिए, तो obvious था, मेरे लिए भी लिखती, पर खास ये था, की उस पर 50 लोगो के कमेंट्स थे, और हर कमेन्ट से खुद को जुड़ा हुआ महसूस करता हूँ, ......कल बहुत दिनों बाद, घूमते हुए वहां पहुंचा तो सहेजने की इच्छा हो गयी, और हाँ तुकबंदी से ज्यादा मेरे पास कुछ नहीं होते थे तब भी, अब भी वही हाल है ! रश्मि दी के शब्द:
जब मैंने इन्टरनेट का प्रयोग करना शुरू किया और ऑरकुट प्रोफाइल बन गया तो मेरे बच्चों के बाद मेरा पहला ऑरकुट दोस्त बना ' मुकेश ' . इन्टरनेट तो मुझे यूँ भी जादूनगरी लगी और नगरी में मुकेश ने बड़े प्यार से मुझे दीदी कहा . इतना मज़ा आया कि पूछिए मत .... उसकी कम्युनिटी थी ' JOKES, SHAYERIES & SONGS![JSS]' और मेरी 'मन का रथ' .... शुरुआत में वह मेरे हर लिखे पर कहता - ' कुछ नहीं समझे , कितनी बड़ी बड़ी बातें करती हो ...' पर एक बार उसने कहा -'दीदी मेरा मन कहता है तुम बहुत आगे जाओगी...' ..... जब भी मुझे कोई पड़ाव मिला मुकेश की यह बात मुझे याद आई . एक बार हमारी लड़ाई भी हुई , न उसने मनाया न मैंने - लेकिन रिश्ते की अहमियत थी , हम फिर बिना किसी मुद्दे को उठाये उतनी ही सरलता से बातें करने लगे !
फिर वह दिन आया जब मुकेश ने कुछ लिखा .... हर पहला कदम अपने आप में डगमगाता है , उसे भी खुद पर भरोसा नहीं था . पर मैंने कहा , लिखते तो जाओ ... और आज मुकेश की सोच ने शब्दों से मित्रता कर ली है और शब्दों ने उसे एक सफल ब्लॉगर बना दिया . अब ब्लॉग की दुनिया में उसकी अपनी एक पहचान है .
चुलबुला तो वह आज भी है , पर उस चुलबुलेपन के अन्दर एक शांत, गंभीर व्यक्ति है , जो हँसते हुए भी ज़िन्दगी को गंभीरता से समझता है .
कई बार हम ज़िन्दगी की ठोकरों से आहत कुछ लोगों से कतराते हैं, खुद पे झुंझलाते हैं - फिर अचानक हम बड़े हो जाते हैं और खुद से बातें करते हुए सुकून पाने लगते हैं कि यदि ज़िन्दगी यूँ तुड़ीमुड़ी न होती, अभाव के बादल घुमड़कर न बरसे होते तो जो खिली धूप आज है, वह ना होती !
मुकेश से मेरी मुलाकात 'अनमोल संचयन' के विमोचन में प्रगति मैदान में हुई , बोलने में शालीनता ,बैठने में शालीनता , चलने में शालीनता ...पूरे व्यक्तित्व में कुछ ख़ास था , जिसे शब्दों में नहीं बता सकती , ..... हाँ मुकेश का परिचय - संभव है , आपसे बहुत कुछ कह जाए -
४ सितम्बर १९७१, आनंद चतुर्दशी के दिन मेरा जन्म एक गरीब कायस्थ परिवार में बिहार के बेगुसराय जिला में हुआ था...! वैसे तो राष्ट्रकवि "दिनकर" का जन्म स्थान भी इसी जिले में है....:)...गरीब परिवार और छः भाई बहन में सबसे बड़ा होना...शायद मेरे जीवन में मेरे लिए एक अवरोधक की तरह था..उस पर ये भी पता नहीं था की पढाई क्यूं कर रहे हैं...! विज्ञान(गणित) में स्नातक(प्रतिष्ठा) प्रथम स्थान से उतीर्ण हुआ...क्योंकि घर वालो का मानना था की विज्ञान की पढाई ही सर्वश्रेष्ट है..!काश कुछ और विषय लिया होता..! बाद में ग्रामीण विकास में स्नातकोतर डिप्लोमा भी किया...! चूँकि नौकरी जरुरी थी...तो एक आम छात्र की तरह सामान्य ज्ञान को hobby की तरह अपना लिया..! इस कारण quiz में बहुत सारे पुरूस्कार मिले, all bihar quiz championship में एक बार runner - up भी रहा..! भाग्य का जायदा साथ न दे पाना और शुरू से आर्थिक रूप से आत्म निर्भर होने के कोशिश के कारण भी जायदा कुछ अर्जित नहीं कर पाया...वो तो भगवन का शुक्र है की उम्र बीतने से पहले ही सरकारी नौकरी मिल गयी! सम्प्रति अभी कृषि राज्य मंत्री के साथ जुड़ा हुआ हूँ! मेरी जिंदगी मेरी पत्नी अंजू और दो बेटे यश और ऋषभ हैं...! रश्मि दी के द्वारा संकलित "अनमोल संचयन" में मेरी एक कविता प्रकाशित हो चुकी है....! बहुत बेहतर तो नहीं लिख पता हूँ..पर रश्मि दी के motivation से आज से तीन साल पहले ब्लॉग बनाया था.."जिंदगी की राहें" के नाम से...
मैं हूँ मुकेश कुमार सिन्हा ..
सरकारी नौकर ही नहीं ..कवि भी हूँ सरकार
विवाहित हूँ..और हूँ दो बच्चों का बाप..
खुशियाँ उनकी
बस इतनी सी है दरकार
सीधा सरल सहज..
साधारण सा हूँ इंसान..
सादगी है मेरी पहचान ....
नैतिक कर्त्तव्य ..
सामाजिक दायित्व..
इन सबका मुझे है भान
भावों की रंगोली सजाना
खुशियों के बीज बोना
.आनंद के वृक्ष उगाना
जीवन का है ये अरमान
बस इतना सा ही है मेरा काम.
मुकेश का ब्लॉग - जिंदगी की राहें
_________________________
ये शब्द इस ब्लॉग से लिए गए हैं
शख्स मेरे कलम से
(कल राखी है, तो याद आ गयी दीदी की बातें, वैसे इस पोस्ट पर और भी बहुत सी दी सदृश मित्रों ने अपनी बातें रखी है)
जब ऑरकुट दुनिया से विदा लेने लगा तो इन testimonials का स्नेप शॉट लेकर मैंने एक एल्बम बना लिया, इस लिंक पर सहेजा हुआ है !!
एल्बम ऑरकुट testimonials का
2011 में रश्मि प्रभा दी ने ऐसे ही एक ब्लॉग बना कर उस पर बहुत से ब्लोगर्स के लिए शब्द दिए, तो obvious था, मेरे लिए भी लिखती, पर खास ये था, की उस पर 50 लोगो के कमेंट्स थे, और हर कमेन्ट से खुद को जुड़ा हुआ महसूस करता हूँ, ......कल बहुत दिनों बाद, घूमते हुए वहां पहुंचा तो सहेजने की इच्छा हो गयी, और हाँ तुकबंदी से ज्यादा मेरे पास कुछ नहीं होते थे तब भी, अब भी वही हाल है ! रश्मि दी के शब्द:
जब मैंने इन्टरनेट का प्रयोग करना शुरू किया और ऑरकुट प्रोफाइल बन गया तो मेरे बच्चों के बाद मेरा पहला ऑरकुट दोस्त बना ' मुकेश ' . इन्टरनेट तो मुझे यूँ भी जादूनगरी लगी और नगरी में मुकेश ने बड़े प्यार से मुझे दीदी कहा . इतना मज़ा आया कि पूछिए मत .... उसकी कम्युनिटी थी ' JOKES, SHAYERIES & SONGS![JSS]' और मेरी 'मन का रथ' .... शुरुआत में वह मेरे हर लिखे पर कहता - ' कुछ नहीं समझे , कितनी बड़ी बड़ी बातें करती हो ...' पर एक बार उसने कहा -'दीदी मेरा मन कहता है तुम बहुत आगे जाओगी...' ..... जब भी मुझे कोई पड़ाव मिला मुकेश की यह बात मुझे याद आई . एक बार हमारी लड़ाई भी हुई , न उसने मनाया न मैंने - लेकिन रिश्ते की अहमियत थी , हम फिर बिना किसी मुद्दे को उठाये उतनी ही सरलता से बातें करने लगे !
फिर वह दिन आया जब मुकेश ने कुछ लिखा .... हर पहला कदम अपने आप में डगमगाता है , उसे भी खुद पर भरोसा नहीं था . पर मैंने कहा , लिखते तो जाओ ... और आज मुकेश की सोच ने शब्दों से मित्रता कर ली है और शब्दों ने उसे एक सफल ब्लॉगर बना दिया . अब ब्लॉग की दुनिया में उसकी अपनी एक पहचान है .
चुलबुला तो वह आज भी है , पर उस चुलबुलेपन के अन्दर एक शांत, गंभीर व्यक्ति है , जो हँसते हुए भी ज़िन्दगी को गंभीरता से समझता है .
कई बार हम ज़िन्दगी की ठोकरों से आहत कुछ लोगों से कतराते हैं, खुद पे झुंझलाते हैं - फिर अचानक हम बड़े हो जाते हैं और खुद से बातें करते हुए सुकून पाने लगते हैं कि यदि ज़िन्दगी यूँ तुड़ीमुड़ी न होती, अभाव के बादल घुमड़कर न बरसे होते तो जो खिली धूप आज है, वह ना होती !
मुकेश से मेरी मुलाकात 'अनमोल संचयन' के विमोचन में प्रगति मैदान में हुई , बोलने में शालीनता ,बैठने में शालीनता , चलने में शालीनता ...पूरे व्यक्तित्व में कुछ ख़ास था , जिसे शब्दों में नहीं बता सकती , ..... हाँ मुकेश का परिचय - संभव है , आपसे बहुत कुछ कह जाए -
४ सितम्बर १९७१, आनंद चतुर्दशी के दिन मेरा जन्म एक गरीब कायस्थ परिवार में बिहार के बेगुसराय जिला में हुआ था...! वैसे तो राष्ट्रकवि "दिनकर" का जन्म स्थान भी इसी जिले में है....:)...गरीब परिवार और छः भाई बहन में सबसे बड़ा होना...शायद मेरे जीवन में मेरे लिए एक अवरोधक की तरह था..उस पर ये भी पता नहीं था की पढाई क्यूं कर रहे हैं...! विज्ञान(गणित) में स्नातक(प्रतिष्ठा) प्रथम स्थान से उतीर्ण हुआ...क्योंकि घर वालो का मानना था की विज्ञान की पढाई ही सर्वश्रेष्ट है..!काश कुछ और विषय लिया होता..! बाद में ग्रामीण विकास में स्नातकोतर डिप्लोमा भी किया...! चूँकि नौकरी जरुरी थी...तो एक आम छात्र की तरह सामान्य ज्ञान को hobby की तरह अपना लिया..! इस कारण quiz में बहुत सारे पुरूस्कार मिले, all bihar quiz championship में एक बार runner - up भी रहा..! भाग्य का जायदा साथ न दे पाना और शुरू से आर्थिक रूप से आत्म निर्भर होने के कोशिश के कारण भी जायदा कुछ अर्जित नहीं कर पाया...वो तो भगवन का शुक्र है की उम्र बीतने से पहले ही सरकारी नौकरी मिल गयी! सम्प्रति अभी कृषि राज्य मंत्री के साथ जुड़ा हुआ हूँ! मेरी जिंदगी मेरी पत्नी अंजू और दो बेटे यश और ऋषभ हैं...! रश्मि दी के द्वारा संकलित "अनमोल संचयन" में मेरी एक कविता प्रकाशित हो चुकी है....! बहुत बेहतर तो नहीं लिख पता हूँ..पर रश्मि दी के motivation से आज से तीन साल पहले ब्लॉग बनाया था.."जिंदगी की राहें" के नाम से...
मैं हूँ मुकेश कुमार सिन्हा ..
सरकारी नौकर ही नहीं ..कवि भी हूँ सरकार
विवाहित हूँ..और हूँ दो बच्चों का बाप..
खुशियाँ उनकी
बस इतनी सी है दरकार
सीधा सरल सहज..
साधारण सा हूँ इंसान..
सादगी है मेरी पहचान ....
नैतिक कर्त्तव्य ..
सामाजिक दायित्व..
इन सबका मुझे है भान
भावों की रंगोली सजाना
खुशियों के बीज बोना
.आनंद के वृक्ष उगाना
जीवन का है ये अरमान
बस इतना सा ही है मेरा काम.
मुकेश का ब्लॉग - जिंदगी की राहें
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ये शब्द इस ब्लॉग से लिए गए हैं
शख्स मेरे कलम से
(कल राखी है, तो याद आ गयी दीदी की बातें, वैसे इस पोस्ट पर और भी बहुत सी दी सदृश मित्रों ने अपनी बातें रखी है)