मुझे लगता है, किसी भी कवि के शुरूआती दौर की कोई भी कवितायेँ बेहद संवेदनशील और दिल से निकले लफ्ज से रचे होते हैं, जिन्हें उनके साधारण पर टटके शब्दों और बेहद साधारण बिम्बों के आधार पर कचरा कह कर खारिज नहीं किया जा सकता है |
ठीक इसके उलट जब रचनाकार को शब्दों से खेलने का हुनर आ जाता है, तब बेशक उनकी कवितायेँ साहित्यिक दृष्टि से लुभाती है, पर उसमे संवेदनशीलता की कमी, मैंने हर समय अनुभव किया, फिर वास्तविक दुनिया में इन दोनों तरह के रचनाकारों को देखते ही लगता है, कौन कितना सच के करीब है !!
इसलिए मेरी नजरों में हर व्यक्ति जो अपने सोच को शब्दों के माध्यम से परोसता है, उसको किसी भी तरह से कचरा तो नहीं ही कहना चाहिए, क्योंकि शब्द ऊँगली और मन के तंतु के माध्यम से बहते हुए प्रवाह का एक दृश्य मात्र है, उसको सिर्फ पढ़िए नहीं, उस रचनाकार को भी सामने रखिये, फिर फील कर पायेंगे
:)

बाकी तो पुस्तक मेले में बड़े नामों के किताब सजें हैं
:)
_____________________________
बस कुछ नवांकुरों के प्रकाशित किताबों पर पैसे खर्च कर उनके छलछलाते आँखों में देखिये, कैसे उसकी हाथे कांपेगी आपको स्व-हस्ताक्षरित प्रति देते हुए
:) .........हमने स्वयं ये फील कर रखा है
:) .........शुक्रिया बहुतों को ........आज भी !!

_____________________________
बस कुछ नवांकुरों के प्रकाशित किताबों पर पैसे खर्च कर उनके छलछलाते आँखों में देखिये, कैसे उसकी हाथे कांपेगी आपको स्व-हस्ताक्षरित प्रति देते हुए

