कविता संग्रह "हमिंग बर्ड"

Wednesday, June 21, 2017

~अबेफेटोहमारमूत~


बेवकूफी से भरे इस शीर्षक को देख कर या तो आप मुस्कुराते हुए स्टेटस स्किप करेंगे या फिर गुस्से में कहेंगे, मुकेश पगलाया क्या 
पर बात कुछ उन दिनों की है, जब नौकरी पाने के कोशिश तो थी ही साथ ही हॉबी के रूप में क्वीज का नशा कुछ दोस्तों ने चढ़ा दिया था | तब मेरे मित्र मेरे हमनाम मुकेश ने कुछ हथकंडे अपनाए, ऐसे बहुत से नए-नए सूत्र इजाद किये ताकि बहुत से ऑब्जेक्टिव प्रश्नों का जबाब दिया जा सके ! अब जैसे अबेफेटोहमारमूत में अकबर के दरबार में रहने वाले नवरत्नों का नाम छिपा था  अबुल फजल, बीरबल, फैजी, टोडरमल, हकिम हुमाम, मान सिंह, रहीम, मुल्ला दो प्याजा, तानसेन ! ऐसा ही एक था जिसमे सभी विटमिन के साइंटिफिक नेम छिपे होते थे, यथा "AरेB1था2रा3नी5पे6पा12साCएDकेEटोKमेंHबा" | इस तरह के कई अजीब अजीब से हमने सूत्रों को रटा, बेवकूफों के तरह ! गणित में भी ऐसे ही ढेरों रीजनिंग लगाते रहे, आज वो सब कहाँ रह गया, पता नहीं, पर उन दिनों की स्मृतियाँ यादगार हैं |
अपने उस समय के बौद्धिक ग्रुप में फिर भी शायद सबसे कमजोर कड़ी मैं ही था, पढ़ाई में कम खिलंदड़ापन ज्यादा था मेरे में, बेशक किसी भी खास विषय पर पकड़ नहीं होता था, पर कभी कभी कोई बहुत ही कठिन प्रश्न का जबाब भक से मेरे मुंह पर आ जाता, विसुअल्स पर पकड़ थी . और साथ ही दोस्ती जिंदाबाद का नारा लगाते हुए उस समय भी सभी ब्रिलियंट दोस्तों का पेयर कभी न कभी बन कर, कुछ यादगार क्विज फाइनल्स तक की यात्रा की (क्विज में प्रतिभागी पेयर यानी जोड़े में होते हैं), जिसमे एक बार आल बिहार क्विज के फाइनल तक पहुंचना जहाँ यशवंत सिन्हा ने पुरस्कृत किया था! तो एक बार सभी शानदार क्विज के पेयर के बन जाने के बाद मैं और मेरे से थोडा बेहतर मेरा एक और मित्र संजय मालवीय ने मिल कर राज्य स्तरीय प्रतियोगिता में प्रथम स्थान हासिल किया था, वो खास चांदी का यादगार टुकड़ा आज भी अपने गोल्डन दिनों के रूप में सहेज रखा है मैंने ! वो छोटी सी पेपर कटिंग लेमिनेट करवा कर रख ली थी  । बहुत से अन्य क्विजों में मैं और मेरा मित्र मुकेश पार्टनर बनते और मुकेश स्क्वायर कहलाते 
प्रो.एम सी घोष सर के वरदहस्त से एक सोसायटी चलती थी - यूथ वेलफेयर सोसायटी, जहाँ हर शनिवार या रविवार को हम मिलते और फिर क्विज का दौर चलना पक्का रहता  उन वीकली क्विज में जीते हुए पेन भी वर्ल्ड कप जैसी फीलिंग्स देते थे। बाद में मैंने स्वयं आगे बढ़कर 'दस्तक' के नाम से एक सोसायटी बनाई, अपने छोटे से शहर के नए नए बच्चों में जीके का जीन भरने की अजीब सी कोशिश की | आज मेरा मित्र मुकेश बरनवाल इसी 'दस्तक' के नाम से इलाहाबाद में एक बहुत बड़े सिविल सर्विसेज और बैंकिंग/एसएससी इंस्टिट्यूट का निदेशक है ।
जिंदगी मेरी जैसी भी रही, हर उन दिनों को याद कर लिख सकता हूँ, जरूरी थोड़ी है कि सेलेब्रिटी बनने के बाद ही संस्मरण लिखा जाय 😊
~मुकेश~

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