कविता संग्रह "हमिंग बर्ड"

Tuesday, April 25, 2017

कुछ ऐसे ही ....

1. 
कोफ्त होती है 😊😂
मुझे लगता है मैं ऐसे निम्न मध्यम आय वर्ग के परिवार से belong करता हूँ, जिनके यहाँ कबाड़ बेचने से भी जो पैसे आएंगे वो भी अगले महीने के खर्च के लिए बजट का हिस्सा होगा ।:D
हम कभी एक बार शिमला जाते है, पर अगले 7-8-10 साल तक उसके यादें-एहसास-फोटोज के कारण गर्मी के मौसम को बसंत जैसा महसूस करते हैं । :D आखिर हर एक्सपेंडिचर का सौ प्रतिशत से ऊपर का उपयोग करना जरूरी भी है 😂
कभी गलती से या प्यार से ही गुलाब देना पड़ता है तो उसको फिर तुरंत एक ठन्डे कोने में ग्लास में पानी भर कर रख देते हैं, और तो और समय समय पर सुगंध लेने भी वहां पहुँचते हैं, और फिर कुछ दिनों बाद उनके पंखुरियों को भी सहेज लिया जाता है :)
आखिर फुल पैसा वसूल करना भी जरुरी😀😎
एक बार किसी यादगार मित्र ने कैडबरी दी तो उसके रैपर को तब तक इतिहास के किताब में दबाये रखे, जब तक की चींटियों ने वहां तक की यात्रा न कर ली 😂
हमारे घर में टूथपेस्ट के ट्यूब को अंतिम समय में इतने बेलन सहने होते हैं कि वो भी कह बैठता है अबे एक दिन ब्रश मत कर, कुछ न होता 😍
टूटे मग्गे को भी मनीप्लांट का गमला बना कर, अमीरी के आने का ख्वाब पालते हैं :) :D
और तो और घर में AC का कार्टून भी रख लें तो कंबल निकालना पड़ता है !! :D
________________________________
उफ ये जोड़ तोड़, ये हाय तौबा !! हाय जीया जाये न 

2.2.
 2.
2.

कुछ लोग सच्चे में "साइलेंट रीडर" होते हैं, कभी कमेंट क्या लाईक तक नहीं दिखा साहब का, पर मिलने पर बोले मैं आपके सारे पोस्ट्स पढता हूँ, आपकी फलाना कविता लाजबाब थी, ढीमाका कविता में उतना जान नहीं आया, वो पंक्ति उफ़ दिल को छू लिया बस !! कभी कभी आप भी न पंगे लेते रहते हो !! प्रशंसा का ओवर डोज उफ्फ्फ, जवानी का गुलाबीपन बुढ़ापे में भक्क से पुरे चेहरे पर उतर आया 😊
________________________
साला मन किया एक हजार आठ कमेन्ट का एक माला पहना ही दूं, एक दम से ही :) 
ऐसे भी कहीं दिल जीता जाता है क्या :) 

2. )



1 comment: