सुनहरे पल
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बात 25 दिसंबर 2003 की है, मेरी पोस्टिंग प्रधानमत्री कार्यालय में हुआ करती थी. उस समय के तत्कालीन प्रधानमन्त्री श्री अटल बिहारी वाजपेयी जी का जन्मदिन था, छुट्टी का दिन था, मेरे ऑफिसर ने एक दिन पहले ही कहा था मुकेश तुम्हे आना होगा सारे सीनियर ऑफिसर्स शाम में प्रधानमन्त्री जी को बुके प्रदान करेंगे, तुम ये सारा अरेंजमेंट देख लेना !!
ज्यादा पुरानी नौकरी थी नहीं, और न ही उस समय फेसबुक जैसी कोई बुरी आदत थी, तो कुछ ज्यादा ही सीरियस हुआ करते थे काम के प्रति :)
मुझे तो ये भी याद है मेरी प्रधानमन्त्री कार्यालय में पोस्टिंग के बाद जो पहली चिट्ठी पापा को लिखी थी उसमे बताया था की पापा यहाँ तो बाथरूम में भींगे हुए हाथो को सुखाने के लिए भी गरम पंखे लगे हैं :D, यानी ऐसे बैकग्राउंड से दिल्ली पहुंचे थे !!
हाँ तो बुके के साथ हम इन्तजार कर रहे थे प्रधानमन्त्री के कमरे के बाहर कोरिडोर में, सारे ऑफिसर्स, जिनमे से तत्कालीन प्रमुख सचिव ब्रजेश मिश्र और सभी आ गए, करीब साढ़े पांच बजे आदरणीय अटल जी ने कमरे में कदम रखा, करीब चार पांच मिनट बाद संयुक्त सचिव सेकिया सर ने दरवाजे से मुंह निकाल कर हौले से कहा - मुकेश बुके लेकर आओ, !! मुझे लगा बुके उन्हें पकड़ाना है, वो लोग खुद ही देंगे, ऐसा ही होना भी चाहिए था !!
पर ये क्या, कमरे में घुसते ही, सबने अटल जी को घेर रखा था, सर ने कहा - "दो बुके !!"
आश्चर्यचकित सा, एक क्षण को मेरी टाँगे कांपी, मैंने आगे बढ़ कर, बुके आदरणीय अटल जी को पकडाया, उन्होंने बस पकडे रखा, सबने तालियाँ बजाई, फिर मैंने ही बुके को साइड के टेबल पर रख दिया !!
उस समय कैमरा या सेल्फी तो होता नहीं था, जो उस क्षण को तस्वीर में कैद किया जा सके, पर हाँ, झपकते पलकों के अन्दर कहीं, सहेज कर रख लिया मैंने !! में तो बस कैरियर ही तो था बुके का, लेकिन आंतरिक ख़ुशी, बेवजह हो गयी...... !!
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जिंदगी के कुछ ऐसे ही #सुनहरेपलमुकेशके :) :)
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बात 25 दिसंबर 2003 की है, मेरी पोस्टिंग प्रधानमत्री कार्यालय में हुआ करती थी. उस समय के तत्कालीन प्रधानमन्त्री श्री अटल बिहारी वाजपेयी जी का जन्मदिन था, छुट्टी का दिन था, मेरे ऑफिसर ने एक दिन पहले ही कहा था मुकेश तुम्हे आना होगा सारे सीनियर ऑफिसर्स शाम में प्रधानमन्त्री जी को बुके प्रदान करेंगे, तुम ये सारा अरेंजमेंट देख लेना !!
ज्यादा पुरानी नौकरी थी नहीं, और न ही उस समय फेसबुक जैसी कोई बुरी आदत थी, तो कुछ ज्यादा ही सीरियस हुआ करते थे काम के प्रति :)
मुझे तो ये भी याद है मेरी प्रधानमन्त्री कार्यालय में पोस्टिंग के बाद जो पहली चिट्ठी पापा को लिखी थी उसमे बताया था की पापा यहाँ तो बाथरूम में भींगे हुए हाथो को सुखाने के लिए भी गरम पंखे लगे हैं :D, यानी ऐसे बैकग्राउंड से दिल्ली पहुंचे थे !!
हाँ तो बुके के साथ हम इन्तजार कर रहे थे प्रधानमन्त्री के कमरे के बाहर कोरिडोर में, सारे ऑफिसर्स, जिनमे से तत्कालीन प्रमुख सचिव ब्रजेश मिश्र और सभी आ गए, करीब साढ़े पांच बजे आदरणीय अटल जी ने कमरे में कदम रखा, करीब चार पांच मिनट बाद संयुक्त सचिव सेकिया सर ने दरवाजे से मुंह निकाल कर हौले से कहा - मुकेश बुके लेकर आओ, !! मुझे लगा बुके उन्हें पकड़ाना है, वो लोग खुद ही देंगे, ऐसा ही होना भी चाहिए था !!
पर ये क्या, कमरे में घुसते ही, सबने अटल जी को घेर रखा था, सर ने कहा - "दो बुके !!"
आश्चर्यचकित सा, एक क्षण को मेरी टाँगे कांपी, मैंने आगे बढ़ कर, बुके आदरणीय अटल जी को पकडाया, उन्होंने बस पकडे रखा, सबने तालियाँ बजाई, फिर मैंने ही बुके को साइड के टेबल पर रख दिया !!
उस समय कैमरा या सेल्फी तो होता नहीं था, जो उस क्षण को तस्वीर में कैद किया जा सके, पर हाँ, झपकते पलकों के अन्दर कहीं, सहेज कर रख लिया मैंने !! में तो बस कैरियर ही तो था बुके का, लेकिन आंतरिक ख़ुशी, बेवजह हो गयी...... !!
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जिंदगी के कुछ ऐसे ही #सुनहरेपलमुकेशके :) :)
16.10.2016 के लोकमत समाचार के राष्ट्रीय संस्करण के रविवारीय परिशिष्ट 'लोकरंग ' में |
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