कविता संग्रह "हमिंग बर्ड"

Monday, April 4, 2016

लघु प्रेम कथा - 12




देर रात, शायद अंतिम मेट्रो !
अनिमेष बैगपैक संभाले हलके थके क़दमों के साथ चढ़ता है!

आह, पूरा मेट्रो खाली बस दूर वाली सीट पर अकेली खुबसूरत भोली सी नवयुवती बैठी थी !

सधे क़दमों से गुनगुनाते हुए अनिमेष वहीँ पास पहुँच जाता है !

पल भर में होती हैं आँखे चार
एक जोड़ी खिलखिलाती हंसी व समय कटने लगता है !

गंतव्य के आने से पहले, नवयुवती पास आकर बिना कुछ कहें अनिमेष के बाहों में होती है

अनिमेष के लिए एक छोटा सा सफ़र ताजिंदगी याद रखने लायक लगता है !

मेट्रो के रुकते ही युवती स्माइल के साथ जा चुकी होती है !

धीरे-धीरे दरवाजा बंद हुआ, अनिमेष विस्सल करते हुए सेल पॉकेट से निकालना चाहता है !

इस्स्स्स्स्स्स!! सेल और वेलेट गायब हो चुका था!!
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एक बाहियात लप्रेक :-D
पर मेट्रो में 95% पकडे गये पॉकेटमार युवतियाँ ही होती हैं!!


तो सफ़र में अनिमेष न बनें :-D


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