देर रात, शायद अंतिम मेट्रो !
अनिमेष बैगपैक
संभाले हलके थके क़दमों के साथ चढ़ता है!
आह, पूरा मेट्रो खाली बस दूर वाली सीट पर अकेली
खुबसूरत भोली सी नवयुवती बैठी थी !
सधे क़दमों से
गुनगुनाते हुए अनिमेष वहीँ पास पहुँच जाता है !
पल भर में होती
हैं आँखे चार
एक जोड़ी
खिलखिलाती हंसी व समय कटने लगता है !
गंतव्य के आने से
पहले, नवयुवती पास आकर बिना कुछ
कहें अनिमेष के बाहों में होती है
अनिमेष के लिए एक
छोटा सा सफ़र ताजिंदगी याद रखने लायक लगता है !
मेट्रो के रुकते
ही युवती स्माइल के साथ जा चुकी होती है !
धीरे-धीरे दरवाजा
बंद हुआ, अनिमेष विस्सल करते हुए
सेल पॉकेट से निकालना चाहता है !
इस्स्स्स्स्स्स!!
सेल और वेलेट गायब हो चुका था!!
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एक बाहियात
लप्रेक :-D
पर मेट्रो में 95% पकडे गये पॉकेटमार युवतियाँ ही होती हैं!!
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