प्रीति सुराना, प्रीति अज्ञात और मैं (पुस्तक मेले में) |
वो चिरैया "हमिंगबर्ड" है ना,...??
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एक अरसे से
सूना पड़ा था मेरा आंगन
कोई शोर नहीं
कोई चहल पहल नहीं
मन को चीरता हुआ सा सन्नाटा,..
सूना पड़ा था मेरा आंगन
कोई शोर नहीं
कोई चहल पहल नहीं
मन को चीरता हुआ सा सन्नाटा,..
मानो पंथी तो क्या
किसी पंछी को भी
ना दिखती हो
मेरे घर की मुंडेर
या मेरे आंगन में लगा पेड़,..
किसी पंछी को भी
ना दिखती हो
मेरे घर की मुंडेर
या मेरे आंगन में लगा पेड़,..
यूं लगता था मानो
मेरे भीतर का सूनापन
बिखर गया हो
मेरे जीवन के साथ साथ
मेरे घर आंगन में भी,..
मेरे भीतर का सूनापन
बिखर गया हो
मेरे जीवन के साथ साथ
मेरे घर आंगन में भी,..
तभी एक दिन अचानक
एक चहचहाहट सुनी
एक पल को लगा भ्रम हो मेरा
बाहर जाकर देखा
एक विलुप्तप्राय प्रजाति की नन्ही सी चिड़िया 'हमिंगबर्ड'
मेरे आँगन में फुदकती हुई कलरव करती नज़र आई,..
एक चहचहाहट सुनी
एक पल को लगा भ्रम हो मेरा
बाहर जाकर देखा
एक विलुप्तप्राय प्रजाति की नन्ही सी चिड़िया 'हमिंगबर्ड'
मेरे आँगन में फुदकती हुई कलरव करती नज़र आई,..
मानो बुला रही हो
मुझे अपने साथ खेलने को
उसी पल खयाल आया
परिंदों के स्थान परिवर्तन का मौसम है
कहीं ये हमिंगबर्ड रास्ता तो नहीं भूल गई,..
मुझे अपने साथ खेलने को
उसी पल खयाल आया
परिंदों के स्थान परिवर्तन का मौसम है
कहीं ये हमिंगबर्ड रास्ता तो नहीं भूल गई,..
बहुत सुन्दर कविता लिखी है,प्रीति ने
ReplyDeleteहमिंग बर्ड की उड़ान जारी रहे!
शुभकामनाएँ :)
अति सुंदर प्रीति जी
ReplyDeleteअति सुंदर प्रीति जी
ReplyDeleteआपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" शनिवार 06 फरवरी2016 को लिंक की जाएगी ....
ReplyDeletehttp://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा ....धन्यवाद!
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ReplyDeleteसुंदर कविता के लिए बहुत2 बधाई !! ...