कविता संग्रह "हमिंग बर्ड"

Monday, February 23, 2015

पुराने जर्द पन्ने की एलआईसी की एक है डायरी मेरे पास तबकी, जब शब्द कम क्या बहुत कम थे पर अरमानों का ज्वारभाटा ज्यादा ही उच्छ्रिन्खल था :-)
उसके शब्दों को पढने से लगता है उन शब्दों को धक् धक् साँसों के साथ जी रहा होता हूँ :-)
अधिकतर उडाये हुए शायरी हैं पर हर शेर में दिल :-D फड़क फड़क कर कहता है मुक्कू क्या मस्त फाके के दिन थे न :-)
खाली पॉकेट की मस्तीखोरी यादगार :P
मेरे लिए शब्दों का ताजमहल मेरी डायरी
उसमें दफ़न एक बेहतरीन मुक्कू :-)
अब तो मुझे खुद स्वयं से नफरत है
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कितना जलनखोर हो गया मैं :-)
कोई नही झेलिये :-D

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