'हमिंग बर्ड', ये नाम सुनते ही आँखों के सामने एक सुनहरी, नीली-हरी सी चिड़िया फुदकने लगती है. जो दूर आसमान को छूना चाहती है, अपनी हदों का भी खूब अंदाज़ा है, इसे.....कभी इस डाल तो कभी उस डाल पे, जहाँ जी चाहा, फुदक ली ! ठीक ऐसी ही हैं, इस 'काव्य-संग्रह' की कविताएँ. आम आदमी के जीवन से जुड़ी हुई, ज़िंदगी के हर रंग को छूती हुई, इसमें रिश्तें हैं, जीवन है, एक नौकरीपेशा इंसान की सीमित क्षमताएँ हैं, थोड़ी आकांक्षाएँ हैं. सपने भी हैं और आश्वासन भी, कहीं मन हताश हो उठता है तो कभी खुद ही अपने को दिलासा देता नज़र आता है. यहाँ सपने टूटने का ग़म नहीं, निराशा दूना उत्साह भर देती है और एक उम्मीद जगाती है, जो पूरे विश्वास के साथ, सफलता की ओर धीरे-धीरे कदम बढ़ाती है ! यहाँ प्रेम है, पर देवदास-सा ग़म नहीं, दिल उदास है, पर आँखें नम नहीं !
सकारात्मक कविताएँ ही, इस 'काव्य-संग्रह' की सबसे बड़ी खूबी है. इसमें हर कविता की खुशी, अपनी-सी लगती है और हर दुख भी कभी-न-कभी महसूसा हुआ...लेकिन, मन फूट-फूटकर रोता नहीं, क्योंकि कविताएँ एक अलग ही आशावादी ऊर्जा का संचार करती हैं और पाठक को महसूस होता है कि वो यूँ ही छोटी-छोटी बातों को तूल देता रहा है, 'ज़िंदगी' इतनी भी बुरी नहीं'.
'हमिंग बर्ड' की चहक के साथ पहला पन्ना खुलता है, जो प्यार की पगडंडी को पार कर एक मकान में पहुँचता है, जहाँ आपकी मुलाक़ात एक ४० के ऊपर के इंसान से होती है, जो कभी अपने अंदर के बच्चे का ज़िक्र करता है, कभी प्रेम कविताएँ लिखता है, तो कभी, अपने शहर और परिवार को साथ लेकर चलता हुआ, बीच-बीच में हाथों की लकीरों को चुपके से ताक लिया करता है. डस्टबिन, अख़बार, तकिये, यहाँ तक कि गाँव का पुल भी पार करती है, इस संग्रह की कविताएँ, इनमें मिट्टी की खुश्बू है, अपनापन है और ये चकाचौंध से कोसों दूर सरल, सहज शब्दों के साथ अपना अर्थ बेहद आसानी से स्पष्ट कर देती हैं. अंत मैं ये स्वीकारोक्ति कि 'मैं कवि नहीं हूँ'....इन कविताओं को और भी पठनीय और रोचक बना देती है !
बधाई, लेखक की पहली उड़ान को.....शुभकामनाएँ, जाकर छू लो आसमान को !
'हमिंग बर्ड' की चहक के साथ पहला पन्ना खुलता है, जो प्यार की पगडंडी को पार कर एक मकान में पहुँचता है, जहाँ आपकी मुलाक़ात एक ४० के ऊपर के इंसान से होती है, जो कभी अपने अंदर के बच्चे का ज़िक्र करता है, कभी प्रेम कविताएँ लिखता है, तो कभी, अपने शहर और परिवार को साथ लेकर चलता हुआ, बीच-बीच में हाथों की लकीरों को चुपके से ताक लिया करता है. डस्टबिन, अख़बार, तकिये, यहाँ तक कि गाँव का पुल भी पार करती है, इस संग्रह की कविताएँ, इनमें मिट्टी की खुश्बू है, अपनापन है और ये चकाचौंध से कोसों दूर सरल, सहज शब्दों के साथ अपना अर्थ बेहद आसानी से स्पष्ट कर देती हैं. अंत मैं ये स्वीकारोक्ति कि 'मैं कवि नहीं हूँ'....इन कविताओं को और भी पठनीय और रोचक बना देती है !
बधाई, लेखक की पहली उड़ान को.....शुभकामनाएँ, जाकर छू लो आसमान को !
- प्रीति 'अज्ञात'
Thanks for sharing ! Best Wishes :)
ReplyDeleteस्वागत
Deleteये प्यारी सी हम्मीग बर्ड हमारे आंगन मे भी चहचहा रही है आप यूँ ही लिखते रहिए
ReplyDeleteबहुत बधाई !
ReplyDeleteबेहद खुबसूरत.... ढेरों शुभकामनाएँ.....!!!
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