कविता संग्रह "हमिंग बर्ड"

Thursday, May 1, 2014

अजीब सी होती है मनुष्य के अंदर की गर्मी, बेवजह की ऊष्मा !! शावर के नीचे ठंडे पानी से अपने वजूद को लाख भिंगो दो, सारा ठंडा पानी शरीर से फिसल कर फर्श पर बिखरता चला जाएगा। अंदर तो जैसे एक सहारा मरुस्थल मिलों तक रेत की गरम सांस लेता महसूस होगा। एसी की ठंडी ब्रीज भी साँय साँय करती नीरवता को सुकून नहीं दे पाएगी । यहाँ तक की प्राकृतिक तारों भरा आसमान भी ऐसे लगेगा जैसे ढेरों हैलोजन बल्ब ताप बढ़ा रहे हों ।

पर ऐसे मे ही किसी की अनर्गल सी बातें भी भक्क से तापमान को दूध के पश्चुराइजेशन के तरह की स्थिति ला देती है, पल भर मे सब कुछ ठंडा ........... कूल कूल :)
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संवाद कायम रहे, ............. गर्मी बढ़ रही है :D

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